कैसे होंगे इसरो के अगले बड़े मिशन- गगनयान, चंद्रयान-3 और शुक्रयान-1?

कैसे होंगे इसरो के अगले बड़े मिशन- गगनयान, चंद्रयान-3 और शुक्रयान-1?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत का 75 साल में जमीन पर ही नहीं अंतरिक्ष में भी सफर शानदार रहा है। इसरो के खाते में कामयाबी के कई सितारे हैं। इसरो का पहला प्रोजेक्ट सैटेलाइट टेलिकम्युनिकेशन एक्सपेरिमेंट प्रोजेक्ट (स्टेप) था, जिसने गांवों तक टीवी की पहुंच सुनिश्चित की। आज इसरो मछुआरों की मदद के लिए रीयल टाइम सैटेलाइट का प्रयोग कर रहा है, तो डिफेंस से जुड़े सैटेलाइट दुश्मनों पर नजर रखते हैं। वहीं भारत के चंद्रयान और मंगलयान अभियान ने पूरी दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा को और बढ़ाया है।

ऑप्टिकल एस्ट्रोनार्मर शशि भूषण पांडेय इस विषय में यह कहना बहुत ही सामयिक होगा कि अंतरिक्ष में जितने भी शोध हुए हैं। उसमें पिछले कुछ दशकों में भारत का योगदान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की ओर से स्पेस के कई आयामों में अध्ययन जारी हैं। जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हैं। इसके अलावा स्पेस में भारत में कई पहलुओं पर शोध किए जा रहे हैं।

खगोल विज्ञान के माध्यम से हम अंतरिक्ष और सुदूर अंतरिक्ष के विषय पर अध्ययन करते हैं। विद्युत चुंबकीय तरंग दैर्ध्य पर विभिन्न वेधशालाओं द्वारा अंतरिक्ष का अध्ययन किया जाता है। जैसे रेडियो तरंग दैर्ध्य पर जीएमआरटी (ज्वाइंट मीटर प्लांस रेडियो टेलीस्कोप) जो पुणे में स्थित है। वहीं आप्टिक तरंग दैर्ध्य कि बात करें तो हाल में 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन देहरादून में स्थापित की गई है। 2015 में भारत ने इसरो की मदद एस्ट्रो सेट नाम की खगोल वेधशाला की स्थापना की है।

अगले पांच साल में क्या होने वाला है

1. लांच होंगे 14 मिशन

इसरो कई बड़ी योजनाओं पर काम कर रहा है जो अगले कुछ सालों में भारत के स्पेस प्रोग्राम को और ऊंचाईयों पर पहुंचा देंगी। इसरो आने वाले दिनों में करीब 14 मिशन लॉन्च करेंगे। इनमें से सात लॉन्च व्हीकल मिशन, जबकि छह सैटेलाइट मिशन होंगे।

2. आदित्य एल-1

भारत का महत्वाकांक्षी पहला सौर मिशन आदित्य-एल 1 पहली बार 2008 में घोषित किया गया था। यह सूर्य के लगभग पूर्ण क्षेत्र और गर्म प्लाज्मा का अध्ययन करेगा। आदित्य- एल1 400 किग्रा वर्ग का उपग्रह होगा। इसका मेल पेलोड विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफी (वीईएलसी) होगा। यह मिशन 2022 तक लांच हो सकता है।

3. चंद्रयान 3-250 करोड़ का रोवर

इस रोवर को 2022 की तीसरी तिमाही में भेजने की योजना है। 250 करोड़ रोवर की कीमत होगी और कुल लागत आएगी 715 करोड़ रुपये। वहीं जनवरी 2023 में निसार सैटेलाइट एसएआर लांच करने की योजना है।

4. 2022-23 में लांच होगा मिशन गगनयान

मानव अंतरिक्ष यान गगनयान मिशन के तहत तीन अंतरिक्ष मिशनों को कक्षा में भेजा जाएगा। पहला मिशन दिसंबर 2021 में भेजे जाने का प्रस्ताव है। दूसरा मानव रहित मिशन जिसे वर्ष 2022-23 में लॉन्च किया जाना है। गगनयान मिशन के तहत तीन भारतीय को 2023 तक अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इसके लिए चार टेस्ट पायलट का चयन किया गया है और उनकी रूस में ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है।

5. 2024 में तीन मिशन

इसरो 2024 में वीनस पर पहला मिशन शुक्रयान 1 लांच करेगा और इसी साल चांद पर एक अन्य मिशन की योजना है। वहीं मंगलयान 2 भी 2024 में ही लांच करने की योजना है। हालांकि कुछ रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शुक्रयान वन 2026 तक टल सकता है।

6. अपना स्पेस स्टेशन बनाने की तैयारी

इसरो गगनयान मिशन के बाद भारत का स्पेस स्टेशन बनाने की योजना पर काम कर रहा है। 2030 तक स्पेस स्टेशन लॉन्च करने की तैयारी की जाएगी।

7. स्पेडेक्स प्रोजेक्ट पर भी हो रहा है काम

स्पेस स्टेशन बनाने से पहले जरूरी है अंतरिक्ष में दो उपग्रहों के आपस में जोड़ने की क्षमता हासिल की जाए। इसे कहते हैं – स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पेडेक्स)। यह बेहद जटिल प्रयोग होगा। इससे इसरो वैज्ञानिकों को यह पता चलेगा कि वे अपने स्पेस स्टेशन में ईंधन पहुंचा पाएंगे। वहीं अंतरिक्ष यात्रियों और अन्य जरूरी वस्तुएं पहुंचा पाएंगे या नहीं। स्पेडेक्स के तहत दो स्पेसक्राफ्ट 2025 तक पीएसएलवी रॉकेट से छोड़े जाएंगे। इस प्रयोग में रोबोटिक आर्म एक्सपेरिमेंट भी शामिल होगा।

8. अवतार प्रोजेक्ट का पूरा होगा काम

AVATAR यानी एरोबिक व्हीकल फार ट्रांस एटमॉस्फेरिक हाइपरसोनिक एयरोस्पेस ट्रांसपोर्टेशन जो इसरो की सबसे महत्वाकांक्षी योजना है। इस प्रोजेक्ट के तहत उपग्रहों की लॉन्चिंग के लिए एक ही यान का उपयोग कई बार किया जा सकेगा. यह यान अंतरिक्ष में जाकर उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में स्थापित कर वापस आ जाएगा. इससे बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बचेगा. इस प्रोजेक्ट के 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर भारत, अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बन जाएगा, जिसके पास ये महारत हासिल होगी।

7 दशक के 6 बड़े पड़ाव

1. 1963 में भारत का पहला अंतरिक्ष कार्यक्रम

भारत की अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत 21 नवंबर 1963 को हुई थी जब भारत ने केरल में मछली पकड़ने वाले क्षेत्र थुंबा से अमेरिकी निर्मित दो-चरण वाला साउंडिंग रॉकेट ‘नाइक-अपाचे’ का प्रक्षेपण किया था। उस समय इसरो के हालात ये थे कि रॉकेट को लॉन्च पैड तक एक साइकिल से ले जाया गया था। रॉकेट को लांच करने के लिए लिए नारियल के पेड़ों के बीच स्टेशन का पहला लॉन्च पैड था। एक स्थानीय कैथोलिक चर्च को वैज्ञानिकों के लिए मुख्य दफ्तर में बदला गया। थोड़े समय बाद दूसरा रॉकेट लॉन्च किया गया। वह पहले वाले से थोड़ा भारी था। उसे बैलगाड़ी पर ले जाया गया था।

2. 1969 में हुई इसरो की स्थापना

15 अगस्त 1969 अंतरिक्ष की ऊंचाइयों को छूने के प्रयास का बड़ा दिन था। इस दिन डॉ.विक्रम साराभाई ने इसरो की स्थापना की थी। वहीं एसएलवी-3 भारत का पहला स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल था। डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम इस परियोजना के निदेशक थे। इसरो ने अब तक एक के बाद एक 23 पीएसएलवी सफलतापूर्वक लॉन्च किए हैं। इसरो ने अपने सैटेलाइट के अलावा अन्य देशों के सैटेलाइट भी छोड़े हैं। पिछले 40 से ज्यादा सालों में ISRO का खर्च नासा के एक साल के बजट के आधे से भी कम रहा।

3. 1975 में पहला उपग्रह और 1979 में दूसरा लांच

भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट,19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। इसका नाम भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था । इसने 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया था। लेकिन भारत के लिए ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। 1979 में भारत का दूसरा उपग्रह भास्कर भेजा गया जो 442 किलो का था। 1980 में रोहिणी उपग्रह पहला भारत-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बन गया जिसे कक्षा में स्थापित किया गया।

4. 2008 में पहला मिशन चंद्रयान

इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 भेजा, जिसने चन्द्रमा की परिक्रमा की। पहले मिशन चंद्रयान प्रथम पर करीब 390 करोड़ रुपये खर्च हुए जो नासा ने इसी तरह के मिशन पर होने वाले खर्च के मुकाबले 8-9 गुना कम है।

5. 2014 में रचा इतिहास, मिशन मंगलयान सफल

16 नवंबर 2013, को अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत ने एक नया अध्याय लिखा। इस दिन 2:39 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से PSLV C-25 मार्स ऑर्बिटर (मंगलयान) का अंतरिक्ष का सफर शुरू हुआ। 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत इस तरह के अभियान में पहली ही बार में सफल होने वाला पहला देश गया। इसके साथ ही वह सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद इस तरह का मिशन भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। इस पर महज करीब 450 करोड़ रुपए यानी 12 रुपये प्रति किलोमीटर खर्च आया। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अगर आप ऑटो से चंद्रमा पर जाए तो इतना ही खर्च आएगा।

मंगल मिशन के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने अमेरिका से सहायता मांगी थी तो अमेरिका ने इनकार कर दिया था। इससे भारतीय वैज्ञानिक निराश नहीं हुए। उन लोगों ने काफी मेहनत की और सब कुछ भारत में तैयार किया और मंगल मिशन को पूरा कर दुनिया को भारत की क्षमताओं को दिखाया। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो अपने पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंच गया। अमेरिका अपने पहले 5 प्रयासों में असफल रहा। सोवियत यूनियन अपने पहले 8 प्रयासों में असफल रहा। चीन और रूस भी अपने पहले प्रयास में असफल रहा।

वहीं उसी दौर में इसरो ने दो अन्य रॉकेट विकसित किए। पीएसएलवी और जीएसएलवी। जनवरी 2014 में इसरो सफलतापूर्वक जीसैट -14 का एक जीएसएलवी-डी 5 प्रक्षेपण में एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया गया।

6. 2017 में एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च

इसरो सहित दुनिया में सिर्फ छह अंतरिक्ष एजेंसियों के पास ही सैटेलाइट बनाने और छोड़ने की क्षमता है। अधिकतर देश अपने नेविगेशन से संबंधित मकसद के लिए अमेरिका आधारित जीपीएस सिस्टम के भरोसे रहते हैं, भारत ने सफलतापूर्वक अपना खुद का नेविगेशन सैटेलाइट आईआरएनएसएस लॉन्च किया है। इसरो ने सिर्फ अंतरिक्ष में सेटेलाइट भेजने की क्षमता ही हासिल नहीं की बल्कि 15 फरवरी, 2017 को इसरो ने एक साथ रिकॉर्ड 104 सैटेलाइट लॉन्च करके एक इतिहास रच दिया है। अब तक सबसे ज्यादा सैटेलाइट एक बार में भेजने का रेकॉर्ड रूस के नाम था।

स्पेस में छाया है भारत

यूनियन ऑफ कंसर्नड साइंटिस्ट सैटेलाइट डाटाबेस ने एक सूची तैयार की है। इस सूची में दुनिया के उन देशों के नाम दर्ज है जिन्होंने अंतरिक्ष में सफलता के झंडे गाड़े है। इस रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के स्पेस में अब तक 1038 सेटेलाइट है। चीन के स्पेस में 356 सेटेलाइट है। रूस के स्पेस में 167 सेटेलाइट, अमेरिका के 130, जापान के 78 और भारत के 58 सैटेलाइट स्पेस में है। इनमें से 339 सेटेलाइट का प्रयोग मिलिट्री के लिए, 133 का सिविल के लिए, 1440 का कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए और 318 मिक्स्ड यूज के लिए है।

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