रूस और चीन के बीच सुदृढ़ हो रहे गठबंधन का भारत की विदेश नीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रूस और चीन के बीच लंबे समय से एक मज़बूत रणनीतिक साझेदारी रही है, जो सोवियत संघ और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के समय से चली आ रही है। यह साझेदारी आपसी हितों पर आधारित है, जिसमें आर्थिक एवं राजनीतिक सहयोग के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर एक साझा दृष्टिकोण शामिल है। कुछ उतार-चढ़ाव के बावजूद, रूस और चीन के बीच मज़बूत संबंध बने रहे हैं, जहाँ दोनों देश कई तरह की परियोजनाओं एवं पहलों पर एक साथ कार्य कर रहे हैं।

  • फरवरी 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस साझेदारी को और मज़बूत करने की दिशा में कदम उठाते हुए प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों के रूप में रूस एवं चीन की भूमिका को सुदृढ़ किया और दोनों देशों के बीच सहयोग के एक नए युग का संकेत दिया।
  • अमेरिका, रूस और चीन के बीच की त्रिकोणीय गतिशीलता लंबे समय से स्वतंत्र भारत की भू-राजनीति को आकार देने वाली प्रमुख कारक रही है। पिछले वर्ष एक नए चीन-रूस गठबंधन के अनावरण, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण तथा पश्चिम और रूस एवं चीन के बीच गहराते टकराव ने भारत को अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की पुनर्कल्पना के लिये विवश किया है।

चीन-रूस गठबंधन के वैश्विक निहितार्थ

  • अमेरिकी नेतृत्व में पश्चिमी एकता:
    • रूस और चीन के गठबंधन ने विश्व में अमेरिका के प्रभुत्व की समाप्ति के बजाय अमेरिका और पश्चिमी देशों को अमेरिका के नेतृत्व में और अधिक एकजुट होने का एक कारण प्रदान किया है।
    • यूक्रेन पर आक्रमण ने अमेरिका को रूस और चीन दोनों पर दबाव बनाने का अवसर दिया है।
      • यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने यूरोप में अमेरिका को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) को प्रेरित करने और विस्तारित करने में मदद की है।
      • रूसी आक्रमण ने एशिया में चीनी क्षेत्रीय विस्तारवाद के भय को भी जन्म दिया है। इससे ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ अमेरिका के द्विपक्षीय गठजोड़ मज़बूत हुए हैं।
  • अनिच्छुक और शांतिवादी शक्तियों का उदय:
    • चीन-रूस गठबंधन और यूक्रेन के युद्ध ने दो अनिच्छुक एवं शांतिवादी शक्तियों (जर्मनी और जापान) को रूस एवं चीन के विरुद्ध संघर्ष में शामिल होने के लिये प्रेरित किया है।
      • जापान और जर्मनी दुनिया की क्रमशः तीसरी और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं तथा उनकी लामबंदी पश्चिम और रूस-चीन धुरी के बीच तथाकथित ‘शक्ति के सहसंबंध’ (Correlation Of Forces) को महत्त्वपूर्ण रूप से बदल रही है।
      • जर्मनी और जापान दोनों अब रूस और चीन की ओर से सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिये अपने रक्षा व्यय में वृद्धि करने हेतु प्रतिबद्ध हुए हैं।
  • यूरोप और एशिया में अमेरिकी गठबंधन:
    • एक गठबंधन के माध्यम से यूरेशिया पर हावी होने की रूस और चीन की इच्छा विफल हो गई है, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका भी यूरोप और एशिया में अपने गठबंधनों एवं साझेदारियों को सुदृढ़ करने के लिये कुछ ऐसा ही कर रहा है।
      • जून 2022 में आयोजित नाटो शिखर सम्मेलन में अमेरिका के एशियाई सहयोगियों ने पहली बार भागीदारी की और नाटो ने हिंद-प्रशांत शक्ति संतुलन को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाने का संकल्प लिया है।

चीन-रूस गठबंधन भारत को किस प्रकार प्रभावित करता है?

  • भू-राजनीतिक:
    • चीन और रूस के बीच गठबंधन क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदल सकता है, यह भारत के प्रभाव को सीमित कर सकता है तथा क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ा सकता है।
      • उदाहरण के लिये, चीन-रूस गठजोड़ के परिणामस्वरूप दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एक विशेष स्थिति का समर्थन कर सकते हैं, जिससे भारत के लिये अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना कठिन हो सकता है।
  • आर्थिक:
    • भारत को विशेष रूप से ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधनों एवं व्यापार जैसे क्षेत्रों में चीन और रूस से बढ़ती आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता है।
      • उदाहरण के लिये, चीन और रूस के बीच गठजोड़ के परिणामस्वरूप उनके परस्पर आर्थिक सहयोग (जिसमें संयुक्त उद्यम और व्यापार सौदे शामिल हैं) में वृद्धि हो सकती है, जो भारतीय व्यवसायों के लिये कुछ बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को अधिक कठिन बना सकते हैं।
  • सैन्य:
    • गठबंधन के परिणामस्वरूप चीन और रूस के बीच सैन्य सहयोग में वृद्धि हो सकती है, जो उनकी सैन्य क्षमताओं को सुदृढ़ करेगी और इससे भारतीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है।
      • चीन और रूस के बीच संबंधों के मज़बूत होने से सैन्य एवं तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ सकता है, जो संभावित रूप से भारत की सैन्य क्षमताओं के लिये चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
  • राजनयिक:
    • रूस-चीन गठबंधन के परिणामस्वरूप भारत को एक अधिक जटिल राजनयिक परिदृश्य में अपनी राह खोजनी पड़ सकती है, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे अंतर्राष्ट्रीयय मंचों पर, जहाँ चीन और रूस महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं।
      • उदाहरण के लिये, चीन-रूस गठजोड़ के परिणामस्वरूप दोनों देश संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत द्वारा समर्थित कुछ पहलों को अवरुद्ध करने के लिये मिलकर प्रयास कर सकते हैं।

आगे की राह

  • बहु-संरेखित विदेश नीति का अनुसरण करना:
    • भारत को परस्पर चिंता के क्षेत्रों को संबोधित करने और किसी भी संभावित संघर्ष को प्रबंधित करने के लिये चीन एवं रूस दोनों के साथ संवाद में संलग्न होना चाहिये।
    • चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला कर सकने के लिये भारत को अन्य देशों के साथ, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी साझेदारी को सुदृढ़ करना चाहिये।
      • भारत अपने आर्थिक विकास एवं प्रगति को बढ़ावा देने के लिये इस भूभाग और इससे बाहर के देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को गहन करने के लिये भी प्रयासरत है।
    • इन प्रयासों के माध्यम से भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है और एक स्थिर क्षेत्रीय एवं वैश्विक व्यवस्था बनाए रखने में योगदान कर सकता है।
    • भारत, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, अन्य देशों के साथ अपनी स्वयं की सैन्य क्षमताओं एवं गठजोड़ को सुदृढ़ करने का भी प्रयास कर सकता है।
  • तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठाना:
    • भारत की तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्था और विशाल बाज़ार का क्षेत्रीय एवं वैश्विक मंचों पर अपने हितों को बढ़ावा देने के लिये (विशेष रूप से बढ़ते चीन-रूस गठबंधन के संदर्भ में) एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में लाभ उठाया जा सकता है।
    • तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्था और एक विशाल बाज़ार के रूप में भारत की स्थिति इसे व्यापार वार्ताओं और अन्य आर्थिक मंचों पर महत्त्वपूर्ण सौदेबाजी शक्ति (Bargaining Power) प्रदान कर सकती है।
    • भारत इस सौदेबाजी की शक्ति का उपयोग अपने आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और संसाधनों एवं बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये कर सकता है।
    • भारत अपने आर्थिक विकास का लाभ उठाकर क्षेत्रीय एवं वैश्विक मंचों पर अपने राजनीतिक प्रभाव की भी वृद्धि कर सकता है, जिससे बढ़ते चीन-रूस गठबंधन को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
  • ‘सॉफ्ट पावर’ के रूप में अपनी स्थिति का लाभ उठाना:
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने और विभिन्न देशों के साथ गठबंधन निर्माण के लिये सांस्कृतिक विरासत, लोकतंत्र एवं एक शांतिप्रिय राष्ट्र के रूप में अपनी प्रतिष्ठा जैसे अपने ‘सॉफ्ट पावर’ का उपयोग कर सकता है।
    • इससे भारत को, विशेष रूप से चीन-रूस गठबंधन के संदर्भ में, वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति और प्रभाव को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
    • अपने सॉफ्ट पावर का लाभ उठाते हुए भारत एक सकारात्मक छवि पेश कर सकता है और अन्य देशों के बीच एक अनुकूल धारणा का सृजन कर सकता है, जिससे उसके लिये साझेदारियों एवं गठबंधन का निर्माण आसान हो जाएगा।
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