बिहार के जेलों में सैकड़ों कैदी कर रहे छठ पूजा
महापर्व छठ में किन्नरों की भी है आस्था, सालों से कर रहें पर्व
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
लोक आस्था का महापर्व छठ की महिमा ऐसी है कि क भी इस पर्व को करने में पीछे नहीं रहता. ऐसे में बिहार के जेलों में बंद कैदी भी इस पर्व को कर रहे हैं. इस वर्ष बिहार के जेलों में बंद 838 कैदी छठ कर रहे हैं. इनमें 361 महिला एवं 476 पुरुष शामिल हैं. इन कैदीओं में कुछ मुसलमान भी हैं.
मुजफ्फरपुर के जेल में सबसे अधिक कैदी कर रहे छठ
जेलों में छठ करने वाले कैदीओं में सबसे अधिक मुजफ्फरपुर में हैं. यहां 169 कैदी छठ महापर्व कर रहे हैं. जिनमें 78 पुरुष व 91 महिला हैं. इसके बाद सीतामढ़ी में 117 कैदी छठ व्रत कर रहे हैं. यहां व्रत करने वालों में 73 पुरुष एवं 44 महिला हैं. इसी तरह मोतीहारी में 112 और दरभंगा में 85 कैदी छठ महापर्व का अनुष्ठान कर रहे हैं.
बेऊर जेल में बंद 22 बंदियों द्वारा छठ पर्व किया जा रहा
पटना के बेऊर जेल में बंद 22 बंदियों द्वारा छठ पर्व किया जा रहा है. इसमें पुरुष बंदियों की संख्या 12 है, जिसमें दो सजावार हैं और दस विचाराधीन हैं. जबकि दस महिला बंदी छठ पर्व कर रही हैं. महिला बंदियों में चार सजावार हैं और चार विचाराधीन हैं. जानकारी के अनुसार, पुरुष बंदियों में अकलेश साह, मुकेश कुमार, विनोद कुमार, मद्येश्वर यादव, रामनारायण महतो, सतीश कुमार, कृष्णा राय, वकील पासवान, शंकर राय, मनोज कुमार, दिलीप कुमार व सत्येंद्र नाथ प्रसाद शामिल हैं. महिला बंदियों में प्रियंका कुमारी, किरण कुमारी, सुनैना देवी, संगीता देवी, कौशल्या देवी, राधा देवी, सिया देवी, रीता राय, प्रिया पूजा व गीता देवी शामिल हैं.
जेल प्रशासन ने उपलब्ध कराई जरूरी सामग्री
बेऊर जेल अधीक्षक इंजीनियर जीतेंद्र कुमार ने बताया कि छठ व्रतियों को पूजा संबंधित सभी सामग्रियां दे दी गयी है. इनमें पुरुषों के लिए धोती, महिलाओं के लिए सूती साड़ी एवं अन्य जरूरी सामान शामिल हैं. जेल के अंदर साफ-सफाई करा दी गयी है और तालाब में सभी व्रतियों के अर्ध देने की व्यवस्था की गयी है. तालाब के साथ पूरे परिसर में सजावट किया गया और सुरक्षा व्यवस्था पर भी निगरानी की जा रही है.
महापर्व छठ में किन्नरों की भी है आस्था, सालों से कर रहें पर्व
लोक आस्था का महापर्व छठ यूं तो हिंदूओं का सबसे महान और पवित्र पर्व है. जिसमें समाज के सभी तबके के लोग पूरी आस्था और विश्वास के साथ सूर्य भगवान की पूजा करते हैं, लेकिन जब किन्नर समाज भी उतनी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ इस पर्व को मनाये तो निश्चित तौर पर इस पर्व का महत्व कहीं अधिक बढ़ जाता है. कहा भी जाता है कि इस महापर्व छठ पूजा की बात ही निराली है. छठ में जितनी अनेकता में एकता है, उतनी शायद ही किसी और पूजा में दिखती है.
पटना के किन्नर भी कर रहें व्रत
सूर्य की उपासना का यह महापर्व सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी कायम करता है. छठ पर्व की आस्था ऐसी की ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी, जाति -धर्म और लिंग तक की बाध्यता मिट जाती है. शायद ही कहीं किसी दूसरे पर्व में ऐसे अनूठे संगम देखने को मिलते होंगे. ऐसे में भला समाज का तीसरा लिंग कैसे अछूता रह सकता है. कुछ इसी सोच के साथ शहर में रहने वाले किन्नर समुदाय यह व्रत कर रहे हैं
लोगोंं की सुख-समृद्धि के लिए करती हैं यह व्रत
दानापुर कैंट निवासी सुमन मित्रा भी पिछले 12 सालों से छठ कर रही हैं. वे बताती हैं कि बचपन से ही अपनी मां को छठ करते देखा करती थी और सोचती थी जब वे बड़ी होंगी तो इस पर्व को जरूर करेंगी. अब मां नहीं है लेकिन मैं इस परंपरा को निभा रही हूं. इस बार मैं अपनी दोस्त के साथ बीएमपी 16 में पर्व कर रही हूं. गंगा नदी से लाये मिट्टी से चूल्हा तैयार कर लिया है. नहाय-खाय की तैयारियां पूरी हो चुकी है. सभी के सुख-समृद्धि के लिए इस बार पूजा करेंगी. इस बार मेरे साथ रायपूर छत्तीसगढ़ की रहने वाली अमृता इस पर्व में शामिल होने के लिए
यह ऐसा पर्व है जिसमें धर्म या जाति नहीं देखी जाती
खगौल की रहने वाली मनीषा किन्नर दूसरी बार छठ व्रत कर रही हैं. वे बताती हैं कि यह एकमात्र ऐसा पर्व हैं जहां पर किसी भी धर्म और समुदाय के लोग इसे कर सकते हैं. छठ मां सभी की इच्छा पूरी करती हैं. मैं इस साल अपने अपनों की सलामती के लिए यह पर्व कर रही हूं. नहाय-खाय के दिन गेहूं और चावल धोकर सुखाती हूं और फिर प्रसाद तैयार करती हूं. इस पर्व में छोटी सी चूक और इसका असर दिख जाता है. पूरी विधि-विधान के साथ सारी चीजों को करती हैं.
15 सालों से सभी की सलामती करती हैं दुआ
गायघाट पटना सिटी की रहने वाली साधना किन्नर पिछले 15 सालों यह पावन पर्व करती आ रही हैं. उन्होंने ललन किन्नर को पहली बार छठ करते हुए देखा था तभी से उनके इस पर्व के प्रति आस्था बढ़ी. वे बताती हैं कि हर साल वे इस व्रत को अपने से जुड़े लोगों की सालमती, सुख और बेहतर स्वास्थ्य के लिए करती हैं. सारी तैयारियां हो चूकी है और घाट पर जाकर ही पूजा संपन्न होगी.