हमरा नीको ना लागे राम गोरी को करनी…..महेन्द्र मिसिर.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महेंदर मिसिर की 136वीं जयंती 

महेंदर मिसिर कलकत्ता गये | एक गायिका की महफिल में पहुंचे | उस गायिका ने उस शाम महेंदर मिसिर के ही गीतों को सुनाया | वह चेहरे से नहीं जानती थी महेंदर मिसिर को, इसलिए स्वाभाविक तौर पर वह जान न सकी कि श्रोताओं में महेंदर मिसिर भी हैं | लोग वाह-वाह करते रहे | असल में उस गायिका की ख्याति भी महेंदर मिसिर के गीतों को गाने की वजह से तेजी से फैली थी | महेंदर मिसिर पहुंचे भी थे ख्याति सुनकर ही | गायन खत्म हुआ | लोग नेग-न्योछावर कर रहे थे महफिल में | वह नेग या न्योछावर लेने महेंदर मिसिर के सामने पहुंची |

महेंदर मिसिर ने कहा कि आप बहुत अच्छा गायीं | और अच्छे से गा सकती थी | पुरबी गा रही थीं तो उठान-रूकान-ढलान पुरबी गायकी का मूल होता है | गायिका आग-बबूला | वह गुस्से में बोली कि आप समझाओगे मुझे महेंदर मिसिर के गीतों को गाना | मुझे उन्होंने खुद गीत दिये हैं, उनसे ही सिखी हूं कि कैसे गाना है | आप सिखाओगे पुरबी और उसमें भी महेंदर मिसिर का गाना | महेंदर मिसिर चुप | गायिका का गुस्सा उतरने का नाम नहीं ले रहा था | उसे लगा कि उसकी गाय​की पर टिप्पणी कर एक नये श्रोता ने उसकी तौहिनी कर दी | उसने महेंदर मिसिर के सामने हारमोनियम रखा | कहा कि पुरबी गा सकते हो? गा सकते हो, सउर है तो पुरबी का आलाप लेकर, गाकर सुनाओ | गायिका को यह मालूम था कि पुरबी सुनना रसदार होता है,

आनंद से भरनेवाला लेकिन पुरबी गाना सबके बस की बात नहीं होती | पुरबी गाने के लिए सुरों की साधना के साथ अंदर उर्जा भी चाहिए होती है | महेंदर मिसिर ने कहा कि आप बेजा बुरा मान गयीं , मैंने टिप्पणी नहीं की, बस लगा तो कहा | गायिका हारमोनियम सामने रखकर बदला लेने की जिद पर थी | महेंदर मिसिर हारमोनियम पर बैठे | गाना शुरू किये | अपने ही पुरबी को गाना शुरू किये | महफिल स्तब्ध | गायिका स्तब्ध | गायन खत्म हुआ | गायिका पूछी कि आप महेंदर मिसिर के गीत और उसमें भी पुरबी, इतने साधकर कैसे गा रहे? क्या आप उनके ही इलाके से हैं? उनसे सिखे हैं क्या? महेंदर मिसिर चुप थे | गायिका के बार-बार पूछने पर उन्होंने आहिस्ते से कहा-मैं ही महेंदर मिसिर हूं | गायकी रूक गयी थी | गायिका के आंखों में आंसुओं की धार शुरू हो चुकी थी |

महेंद्र मिश्र का जन्म छपरा के मिश्रवलिया में आज ही के दिन 16 मार्च 1886 को हुआ था. महेंद्र मिश्र बचपन से ही पहलवानी, घुड़सवारी, गीत, संगीत में तेज थे. उनको विरासत में संस्कृत का ज्ञान और आसपास के समाज में अभाव का जीवन मिला था जिसमें वह अपने अंत समय तक भाव भरते रहे. इसीलिए उनकी रचनाओं में देशानुराग से लेकर भक्ति, श्रृंगार और वियोग के कई दृश्य मिलते हैं.

 

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