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मित्र के सुखद दांपत्य जीवन की कामना करता हूँ- अजय सिंह सिसोदिया

मित्र के सुखद दांपत्य जीवन की कामना करता हूँ- अजय सिंह सिसोदिया

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आधुनिक युग का नया चलन है कि हम प्राय: हर दिन कोई न कोई दिवस मनाते हैं। इनके मनाने और मानने का औचित्य भी यही है कि हम दिवस विशेष के प्रति अपनी कृतज्ञता, सम्मान दर्शाकर व्यक्ति या घटना का स्मरण कायम रखें।

बहरहाल तब हम लोग दशवी पास करके इंटर मे पहुचें थे उमर कुछ चौदह-पन्द्रह साल रही होगी..! अभी बचपना गया नही था और जवानी भी आई नही थी, खेल-कुद और पढाई के अलावे दुनियादारी के बारे मे एकदम अंजान थे..! शादी-ब्याह और बारात का मतलब पुड़ी खाने और नाच देखने तक ही जानते थे, तभी पता चला कि हमारे एक मित्र की शादी तय हो गई हैं..!

ऐसे तो शादी का उम्र नही था पर घर के लोगों का दुलारा बेटा होने के कारण सबने जल्दी शादी करने का फैसला कर लिया..! दुल्हन भी सुन्दर और लाडली थी इसलिए जो हाल लड़के वालो की थी वही लड़की वालो की भी थी… दोनो परिवारों का पहला बेटा और पहली बेटी का विवाह था तो दोनों तरफ से कोई कसर बाकी नही रहा.. खुब धुम-धाम से विबाह होना तय हुआ..!

शुभ मुहूर्त मे तिलक और बारात का दिन तय हो गया.. तिलक मई महिने मे था जिसका तारिक हमे याद नही है.. पर इतना जरूर याद आता है कि मई के पहले सप्ताह मे था.. ! विबाह भी पाच-सात दिन बाद था..! तिलक का दिन नजदिक आया सब जोरदार तैयारी मे लगे थे तभी एक समस्या उत्पन्न हो गई.. ! समस्या ये कि लड़का जेठ ,लड़की जेठ और तो और महिना भी जेठ का ही था..! अब करे तो क्या करे..? पहले किसी ने इसपर ध्यान ही नही दिया था.. इधर सब साटा-बयाना हो गया था ..फिर से डेट आगे बढाने पर मिलेगा या नही मिलेगा वो एक अलग टेंसन !

फिर से पंडित जी को बुलाया गया और दिन आगे बढाना ही पड़ा जो मजबुरी थी अब तिलक तय तारिक को ही चढा पर बारात एक महिना टालना पड़ा जो कि 24.06.1994 तय हुआ…!

कहते हैं कि आदमी अगर समाजिक हो तो उसका आधा से अधिक काम समाज स्वंय कर देता है..! सत्रुध्न चाचा का समाज मे एक अलग पहचान था और है भी.. इसलिए नामुमकिन लगने वाला काम भी आसानी से हो गया और बारात फिर से उसी अंदाज मे पहुंचा जैसा जाना तय था…! सैकड़ो गाड़ियाँ, हाथी-घोड़े, नाच-बाजा ये पुछिए की क्या नही था.. !

हम सभी मित्र बहुत खुश थे क्योंकि हमारे यार की शादी थी.. बचपन का लंगोटिया यार का.. ! हम भी खुब नांचना चाहते थे पर बाबुजी को देखते ही सिट्टी-पिट्टी गुल…! बाबुजी और सत्रुध्न चाचा की दोस्ती तो एक मिशाल है उनको देख कर कोई ये नही कह सकता कि इनके बेटे का विबाह नही है.. चाचा अपने सभी मित्रों के लिए एक जैसा कपड़ा बनवाए थे.. जो उनकी दोस्ती और प्यार के रंग और गहरा बना रहा था.. ! उस बात की अहमियत तब नही समझते थे अब याद तरके ही ऐसी दोस्ती पर नतमस्तक होने को जी करता है….!

हम सभी मित्र जल्दी से खाना खा कर नाच देखने चले आए थे और कोने मे दुबक कर बैठ गए थे.. क्योकि जहाँ बड़ बड़ ढोल उहाँ टीमकी के मोल..! वैसे हम लोग भी बड़ो के नजर मे नही आना चाहते थे.. तभी गोपाल चाचा आए और हमे एक अटैची थमाते हूए बोले कि ..”इसमे कुछ सामान है.. और केवल उसी को देना है जिसे हम बोले.. और हा हम जिसके हाथ मे चिट्ठी लिख के देंगे उसी को देना है ” …खैर मैने अपना काम बखुबी अंजाम दिया… ! ऐसे उस अटैची मे था क्या ये नही बताउगा….! 😁😁
आप सभी से आग्रह है कि मेरे मित्र के सुखद दांपत्य जीवन के लिए कामना करे…

आभार-अजय सिंह सिसोदिया, सिसवन,सीवान

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