बाबा को खोजने का श्रेय उस दिन मुझे ही मिल गया होता-दामोदरचारी मिश्रा.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बात उन दिनों की है जब मैं बनारस में ही BHU से परास्नातक इतिहास विषय से कर रहा था । एक दिन विश्वनाथ मंदिर घूमते हुए मैंने श्रृंगार गौरी के दर्शन के लिए ज्ञानवापी के पश्चिमी दीवार के पीछे से जा कर दर्शन किए। फिर अचानक मेरे अंदर का इतिहासकार जाग उठा। और मैं ज्ञानवापी के अंदर जा कर नजदीक से उस ऐतिहासिक मस्जिद को देखने का निर्णय लिया। फिर मैं उत्तर के तरफ से उसके मुख्य दरवाजे से सीढियां चढ़ अंदर मस्जिद परिसर में दाखिल हुआ। कुछ मिनट हुए होंगे मुझे उसके अंदर उसका सूक्ष्म अवलोकन करते हुए।
तभी एक लंबी दाढ़ी वाले शख्स ने मुझे तीखी निगाहों से घूरते हुए पास आ कर बोला कि भाईसाहब नमाज़ पढ़ लीजिए। मैं थोड़ा असहज हुआ पर अगले ही पल बिना देरी किए मैंने जबाब दिया कि मैं तो नमाज नहीं पढ़ता। उसने कहा क्यो ?? क्या नाम है?? मैं अपना पूरा नाम बता दिया। नाम सुनते ही वो व्यक्ति तेज कदमो से मस्जिद के मुख्य गेट पर बैठे CRPF के अधिकारी से जा कर कुछ कहा। वो लोग मेरे पास आ कर अंदर आने का कारण पूछने लगे। मैंने बताया कि जैसे दिल्ली में जामा मस्जिद एक ऐतिहासिक मस्जिद है और मैं इतिहास विषय का विद्यार्थी होने के कारण इन ऐतिहासिक भवनों को देखने घूमने में गहरी रुचि रखता हूं और उनके अंदर भी गया हूं।
तो इसी ऐतिहासिक दृष्टिबोध के कारण इस ऐतिहासिक स्थल को देखने आ गया। खैर वो लोग मेरे BHU के परिचय पत्र और संतोषजनक जबाब से संतुष्ट हो जाने दिए। परंतु अगले दिन से उसके मुख्य दरवाजे के पास एक आवश्यक सूचना टँग गयी कि इस रास्ते से केवल मुस्लिम ही प्रवेश करें। जिसका उल्लंघन सिर्फ कोर्ट के आदेश से ही विगत दिनों सर्वे कार्य के लिए हुआ। जिसमें बाबा मिल गए। आज मुझे लग रहा कि अगर उस शख्स ने मुझे डिस्टर्ब न किया होता तो बाबा को खोजने का श्रेय उस दिन मुझे ही मिल गया होता।
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