विचारधारा हमारी संवेदना से निर्मित होती है- डॉ. अमरेंद्र मणि त्रिपाठी
सभी विमर्शों को एक साथ लेकर चलना संभव नहीं है- डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी स्थित हिंदी विभाग में हिंदी साहित्य सभा की ओर से गाँधी भवन परिसर के नारायणी कक्ष में “विमर्श और हिंदी साहित्य” विषयक संवाद का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पधारे हिंदी विभाग के सह-आचार्य डॉ. अमरेंद्र मणि त्रिपाठी ने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि क्या आज का साहित्य केवल हमारे मस्तिष्क को उद्वेलित ही कर रहा है या कोई परिवर्तन लाने में भी समर्थ है? आज हमारे जितने भी शोधार्थी हैं उसमें से सत्तर प्रतिशत जो शोध कार्य कर रहे हैं वह विमर्शों के आसपास ही है। सारे विमर्श अंततः अस्मितावादी विमर्श हैं। इसका तात्पर्य है यह कि कोई व्यक्ति कहीं ना कहीं अपने अस्तित्व से इसे जोड़कर देखता है।
कोई भी विचार दुनिया में ऐसा नहीं है जो मनुष्य मात्र की मुक्ति की बात करता हो, जितने भी महावृतांत हुए वे यूरोप केंद्रित हुए, जिन्होंने अपने केंद्र में श्वेत पुरुषों को ही रखा। इसके विरोध के रूप में अस्मितावादी विमर्श उत्पन्न हुआ। ये विमर्श कुछ खास मनुष्यों के नजरिए से मनुष्य की मुक्ति की बात करता है। स्त्रीवादी विमर्श केवल स्त्री की मुक्ति की बात ही नहीं करता, न ही दलित केवल दलित की ही मुक्ति की बात करता है।
कोई भी विचारधारा केवल विचार नहीं होता वरन वह संवेदना से निर्मित होता है यह परंपरा एवं मूल्य से संचालित होता है। साहित्य के इन विमर्शों के माध्यम से केवल विचार को बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि उन संस्कारों, मूल्यों, सुविधाओं को बदलने की आवश्यकता है जो गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। विमर्शों को केवल यूरोप से प्रभावित नहीं होना चाहिए अपितु भारतीय परंपरा व समाज को समझते हुए चलना चाहिए।
वहीं हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि सभी विमर्शों को एक साथ लेकर चलना संभव नहीं है। विमर्श प्रतिरोध के रूप में आया है। सभी विमर्शों का अपना अपना दायरा है,यह अनुभूतिपरक ही हो सकता है,स्नानुभूतिपूरक नहीं हो सकते हैं, जैसे स्त्री विमर्श केवल स्त्रियां ही लिख सकती है और दलित दलित विमर्श केवल दलित ही लिख सकते हैं। कुछ गैर अस्मिता मुल्क विमर्श भी आ गए हैं जिनमें वृद्ध विमर्श, बाल विमर्श,पर्यावरण विमर्श, पुरुष विमर्श और हिंदुत्व विमर्श इत्यादि।
इस मौके पर कई छात्र-छात्राओं ने मुख्य अतिथि से प्रश्न किए जिसका उन्होंने बखूबी उत्तर दिया। इस अवसर पर हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा, डॉ. गरिमा तिवारी, डॉ श्यामनंदन सहित कई शोधार्थी कक्ष में उपस्थित रहे।
पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन शोधार्थी विकास कुमार ने किया, जबकि हिंदी साहित्य सभा के अध्यक्ष शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। समारोह का समारोप करते हुए धन्यवाद ज्ञापन परास्नातक की छात्रा जूही कुमारी ने किया।
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