समान नागरिक संहिता पर कानून बना तो यह संविधान का सम्मान होगा,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
समान नागरिक संहिता यदि हकीकत बनती है तो इससे देश की आकांक्षाएं ही पूरी नहीं होंगी बल्कि हमारे संविधान निर्माताओं की अपेक्षाएं भी पूरी होंगी। हमारे संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता का पक्ष लेते हुए इसे मूर्त रूप देने का जो दायित्व आने वाली सरकारों पर छोड़ा था, उस संकल्प को यदि मोदी सरकार सिद्ध करती है तो निश्चित ही यह हमारी संविधान सभा के सदस्यों का सम्मान भी होगा।
देखा जाये तो संविधान सभा ने जो संवैधानिक प्रावधान किये थे, उन सभी का पालन देश आरम्भकाल से करता आ रहा है। लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे भी थे जिस पर संविधान सभा में सहमति तो थी लेकिन उस पर फैसला करने का दायित्व भविष्य की सरकारों के लिए छोड़ दिया गया था। यह गौर करने योग्य बात है कि उस दायित्व को पूरा करने का साहस पहली बार कोई सरकार दिखा रही है।
संपूर्ण प्रक्रिया का पालन हो रहा है
समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के समक्ष रोजाना ढेरों सुझाव आ रहे हैं। 14 जुलाई सुझाव और विचार भेजने की अंतिम तिथि है, तब तक यह संख्या लाखों में पहुँच सकती है। इसके अलावा, समान नागरिक संहिता को लेकर देश में गली-मोहल्लों से लेकर टीवी चैनलों की डिबेटों और राजनीतिक जनसभाओं के मंचों तक जो चर्चा और बहस का दौर चल रहा है वह दर्शा रहा है कि पूरा देश इस समय इस गंभीर मुद्दे पर मंथन कर रहा है।
देखा जाये तो लोकतंत्र में किसी कानून के निर्माण में जितनी ज्यादा भागीदारी होगी वह कानून उतना ही सशक्त होगा। अभी जनता संभावित कानून को लेकर बहस कर रही है। जब मसौदा प्रस्ताव सामने आयेगा तब वह उसके लाभ हानि से जुड़े मुद्दों पर बहस करेगी और जनभावना को ध्यान में रखते हुए संसद में सांसद भी प्रस्तावित विधेयक पर बहस करेंगे। इसलिए जो लोग यह भ्रम फैलाने का अभियान चला रहे हैं कि समान नागरिक संहिता को थोपा जा रहा है उन्हें देखना चाहिए कि जब किसी कानून को बनाने से पहले संपूर्ण प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है तब वह थोपा हुआ कैसे हो सकता है?
समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद नागरिकों में समानता का भाव आएगा। इसका सबसे अधिक लाभ मुस्लिम महिलाओं को होगा। पुरुषों को चार शादियों का अधिकार, हलाला, उत्तराधिकार जैसे विषयों में उन्हें अन्य महिलाओं के समान ही अधिकार मिलेंगे। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद मजहब आधारित पर्सनल लॉ बोर्ड समाप्त हो जाएंगे। हिजाब और फतवों की राजनीति मंदी पड़ेगी।
यही कारण है कि धर्मनिरपेक्षता का पाखण्ड करने वाले सभी दल गोलबंद होकर मुस्लिम समाज को भड़काने के लिए निकल चुके हैं। भारत में समान नागरिक संहिता का विरोध केवल मजहबी आधार पर व मजहबी राजनीति को चमकाने के लिये किया जा रहा है जबकि अमेरिका, आयरलैंड, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र आदि जो धर्मनिरपेक्ष देश हैं वहां पर भी समान नागरिक संहिता लागू है। भारत में ही क्यों विरोध हो रहा है ? यह समझने व समझाने की आवश्यकता है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री की ओर से समान नागरिक संहिता की बात कहे जाने के बाद जिस तरह बिना मांगे ही आम आदमी पार्टी और शिवसेना यूबीटी ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का समर्थन कर दिया है उससे विपक्षी एकता को भी धक्का पहुँचा है। पटना में विपक्षी दलों की बैठक में तय किया गया था कि मोदी सरकार के खिलाफ लड़ाई एकजुट होकर लड़ी जायेगी लेकिन सिर्फ समान नागरिक संहिता आने की सुगबुगाहट पर ही जिस तरह कुछ विपक्षी दलों ने सरकार का समर्थन कर दिया वह दर्शाता है कि यह मुद्दा मोदी सरकार का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक साबित होने वाला है।
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