“अगर मुझसे मुहब्बत है:लड्डू बाबू…”

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रेम…पीएच.डी…प्रवेश…परेशानी सब एकसाथ जमा हैं। घर किसका? लड्डू बाबू!
प्रेम का उनवान प्रेमी को आकाश देना है। लड्डू बाबू ने यह किया। प्रेमिका को शहर का आकाश दिया। गांव से शहर आते ही प्रेमिका ने कह दिया,
“अपने एडमीशन पर तुम्हारा ध्यान नहीं है”
तीर सीधा आरपार लेकिन लड्डू बाबू कहां हार मानने वाले हैं,
“…आते नहीं हो बाज मेरे इम्तिहान से तुम”
लड्डू बाबू इस बार कृत संकल्पित हैं। एडमीशन लेकर रहेंगे। और फिर शुरू करते हैं खोज। गाइड की खोज…शिक्षक की खोज।
लड्डू बाबू के मन में पहले से कोई स्थापित योजना नहीं है। झोला भर सेब के साथ चल पड़ते हैं। इस भीड़ में कोई तो होगा जो सुध लेगा
“इक उम्र कट गई है तेरे इंतज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात”
(फ़िराक़ गोरखपुरी)
लड्डू बाबू की व्यथा के कई लेयर्स हैं। पीएच. डी. में प्रवेश नहीं होना कोई नाकामी नहीं है। अलग_अलग समय पर शिक्षकों से कहते हैं,
“सर…पिछले दिनों डेंगू हो गया था,प्लेटलेट्स 15 पर आ गया था।”

“मैम…पिछले दिनों बीमार था बहुत। हार्निया का ऑपरेशन हुआ था।
हां! इसके बीच कॉमन घोषणा,
“इस बार एडमीशन नहीं हुआ तो आत्महत्या कर लूँगा।”
लड्डू बाबू ने विजन को लेकर कोई घालमेल नहीं की है। सब कह ही दिया लेकिन…
एरिया ऑफ इंट्रेस्ट के चक्कर में पड़े बिना सीधा टॉपिक_
देव…वृंद
मित्रों और शिक्षक ने सलाह दी
भक्तिकाल…रीतिकाल…वक्रोक्ति
सबसे जरूरी बात यह है कि लड्डू बाबू के पास अभी पढ़ने के लिए समय नहीं है। अभी सारा समय प्रवेश और शिक्षक को समर्पित है। प्रवेश के बाद पक्का पढ़ लेंगे। पहले प्रेम को साबित करता लक्ष्य मिलना जरूरी है क्योंकि,
“आने में सदा देर लगाते ही रहे तुम
जाते रहे हम जान से,आते ही रहे तुम”
(इमाम बख़्श नासिख़)

मैं लड्डू बाबू की कहानी पढ़ रही हूं। कहानी का अंतिम वाक्य है_
देव! वृंद! अदरक!

अपने लेखन से ऊपरी यथार्थ को भेद कर भीतरी यथार्थ से साक्षात्कार कराने वाली समय की महत्वपूर्ण रचनाकार अल्पना मिश्र जी पाखी पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहती हैं_
“…हमेशा समय महत्वपूर्ण होता है। वह दौर महत्वपूर्ण होता है जिस दौर में हम लिख रहे होते हैं।”
उच्च शिक्षा में शोध की स्थिति और देशभर से चुनकर आए(आने वाले भी) विशिष्ट शोधार्थियों के मर्म_कर्म की कहानी है “लड्डू बाबू मरने वाले हैं”
कलम अल्पना मिश्र जी की है। वनमाली कथा(अंक:12, जनवरी 2023) में प्रकाशित कहानी से कुछ कारक_मारक सूत्र:
•कहीं कहीं वापस जाने की संभावना बिल्कुल नहीं बची रहती।
•लड़का समझ गया था कि लड़की के मन में कोई चोर दरवाजा है।
•लड़की ने उसके हाथ की पकड़ को अपने हाथ से आजाद किया और आगे बढ़ गयी।
•दोस्त ही काम आता है आड़े वक्त में।
•उन्हें एक टीचर पकड़ने जाना था और वे यहाँ •फंसकर समय बर्बाद कर रहे।
•ये टीचर भी! किसी न किसी ऐसी बात में अटका देते हैं कि आदमी निरुत्तर हो जाए।
•रेडीमेड चाहिए। यही कमी है।कुछ पढ़ो पहले।
•पिछली बार नहीं हुआ। इस बार नहीं हुआ तो क्या होगा सर?
•किसी भी चीज के लिए पात्रता सबसे मुश्किल शर्त है।
•इतने कष्ट में पढ़ोगे कैसे?
•फेसबुक से नहीं पढ़ना है।
•आत्महत्या करना बेकार है। इससे अच्छा पढ़ लो।
•अपनी तरफ के हो तुम…कुछ करते हैं।
•धैर्य,धैर्य रखो।

आखिर में लड्डू बाबू कैसे दिखते हैं? ख़ामोश…
“उनसे कह दो मुझे खामोश ही रहने दें ‘वसीम’,
लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी”
(वसीम बरेलवी)

लड्डू बाबू से मिलना है? फिर पूरी कहानी पढ़ें•••

आभार~रश्मि सिंह

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