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अगर भारत ने नहीं भेजी होती सेना तो मानचित्र पर नहीं होता फ्रांस,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

अगर भारत ने नहीं भेजी होती सेना तो मानचित्र पर नहीं होता फ्रांस,कैसे?

अगर भारत ने नहीं भेजी होती सेना तो मानचित्र पर नहीं होता फ्रांस,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दौरे के दौरान फ्रांस के लोगों का दिल जीत लिया है। राजधानी पेरिस से जो दृश्य नजर आ रहे हैं वह दर्शा रहे हैं कि भारतीय प्रवासी समुदाय के साथ ही फ्रांस के लोग भी मोदी मोदी के नारे लगा रहे हैं। यही नहीं, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर’ से नवाजा तो फ्रांस में सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे खूब सराहा।

फ्रांस के मीडिया में भी प्रधानमंत्री मोदी को देश का सर्वोच्च सम्मान दिये जाने और उनके दौरे के महत्व से जुड़ी खबरों को काफी कवरेज मिली है। फ्रांस में हालिया दंगों के बाद मोदी के रूप में आये पहले विदेशी नेता के स्वागत में फ्रांस की सरकार ने पलक-पांवड़े बिछाये हुए हैं। फ्रांस के आम लोग भी पेरिस पहुँचे भारतीय मीडिया के साथ बातचीत के दौरान भारत और फ्रांस के करीबी रिश्तों पर बात करने के अलावा वैश्विक मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी के प्रभावी नेतृत्व की जमकर सराहना कर रहे हैं।

भारतीय सेना की टुकड़ी 107 साल बाद फ्रांस की धरती पर कदम रखने जा रही है। जो कारनामा उन्होंने 107 साल पहले किया था उसे एक बार फिर दोहराने जा रही है। पीएम मोदी 14 जुलाई को पेरिस में आयोजित होने वाली वार्षिक बैस्टिल डे परेड में सम्मानित अतिथि होंगे। यात्रा के दौरान, मोदी रक्षा और सुरक्षा से लेकर व्यापार और निवेश और जलवायु कार्रवाई तक के क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाने पर मैक्रों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हैं। यह यात्रा विशेष होगी क्योंकि यह मैक्रों के वर्तमान कार्यकाल में किसी विदेशी नेता की पहली बैस्टिल डे परेड होगी।

बैस्टिल दिवस का इतिहास और महत्व

बैस्टिल डे को ‘फेटे नेशनले फ्रांसेइस या राष्‍ट्रीय दिवस के तौर पर भी जाना जाता है। 14 जुलाई सन् 1789 में हुई फ्रांसीसी क्रांति के दौरान इस दिन बैस्टिल के किले पर हमला हुआ था। 14 जुलाई, 1789 को फ्रांस के लोगों ने हथियार जब्त कर बैस्टिल पर धावा बोल दिया और वहां से सात कैदियों को रिहा कर दिया। यह अवसर ‘प्राचीन शासन’ (पुराने शासन) से जनता की पहली जीत का प्रतीक है। बैस्टिल को बाद में ज़मीन पर गिरा दिया गया।

वह दिन जब लोगों ने अपनी जीत हासिल की और राजा लुई सोलहवें के कठोर शासन को उखाड़ फेंका। एक साल बाद 1790 में, फेटे डे ला फेडरेशन (संघों का पर्व) ने बैस्टिल के पतन का जश्न बड़े उत्साह के साथ मनाया। तब से, 14 जुलाई फ्रांसीसी गौरव और संस्कृति का एक प्रमुख मार्कर बन गया है और फ्रांसीसी लोगों की एकता का जश्न मनाने के लिए हर साल बैस्टिल दिवस मनाया जाता है।

269 सैनिकों वाली टुकड़ी मार्च करती आएगी नजर

भारत ने 269 सदस्यों की एक ट्राइ सर्विसेंज कॉटिजाइंट फ्रांस को भेजा है। भारत ने भारतीय सैन्य टुकड़ी फ्रांस में भेजी है उनमें इंडियन आर्मी, इंडियन एयरफोर्स और इंडियन नेवी में से चुने गए हैं। ये फ्रांस के भीतर बेस्टाइल डे परेड के दिन फ्रांस के ट्रूप के साथ कदमताल करेंगे और परेड में हिस्सा लेंगे। सेना की टुकड़ी का प्रतिनिधित्व पंजाब रेजिमेंट द्वारा किया जा रहा है जो भारतीय सेना की एक सबसे पुरानी रेजिमेंट है। इस सैन्य टुकड़ी में राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट बैंड भी शामिल है। ये रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे वरिष्ठ राइफल रेजिमेंट है।

प्रथम विश्व युद्ध की शौर्य गाथा 

भारत और फ्रांस की सेनाओं के बीच प्रथम विश्व युद्ध से ही आपसी संपर्क जारी है। बता दें कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश इंडियन आर्मी की तरफ से भारत के कई सारे जवान लड़ने के लिए गए थे। बताया जाता है कि भारत की तरफ से फ्रांस के लिए लड़ने गए सैनिकों ने उसे जर्मनी के हाथों हारने और जर्मनी के कब्जे में जाने से 1916 में बचा दिया था। जर्मनी के साथ युद्ध में भारतीय सैनिकों ने काफी बहादुरी के साथ युद्ध लड़ा था।

प्रथम विश्व युद्ध में 13 लाख भारतीय जवानों ने हिस्सा लिया था। जिनमें से 74 हजार के करीब की कभी अपने देश वापसी नहीं हो सकी। यानी वे इस युद्ध में शहीद हो गए थे। वहीं 67 हजार युद्ध में घायल भी हुए थे। वर्ल्ड वॉर 1 जीतने के बाद जितने भी भारतीय सैनिक ब्रिटिश आर्मी  की तरफ से वहां लड़ने के लिए गए थे उन्होंने जीत के बाद एक परेड निकाली थी। जिसमें भारत की सिख रेजीमेंट के सैनिकों ने हिस्सा लिया था। प्रथम विश्व युद्ध में इन्हें 18 युद्धकतथा थियेटर सम्मान प्रदान किए गए थे।

भारत-फ्रांस की रणनीतिक साझेदारी के 25 साल

दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी के 25 साल होने पर यह दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। बीते दिनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने राष्ट्रपति मैक्रों के डिप्लोमैटिक अडवाइजर इमैनुएल बोन से मुलाकात की थी। इसके बाद दूतावास की ओर से जारी ट्वीट में कहा गया कि इस पार्टनरशिप में रक्षा, एनर्जी, स्पेस, नई तकनीक का अजेंडा शामिल है। यह दूसरी बार है, जब कोई भारतीय पीएम फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस की परेड में मुख्य अतिथि होंगे।

इससे पहले मनमोहन सिंह भी 2009 में चीफ गेस्ट रह चुके हैं। पीएम मोदी के इस दौरे में कई समझौतों पर नजर है। इनमें नौसेना के लिए राफेल एम (मरीन ) के अलावा फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए जेट इंजन बनाने को लेकर फैसले भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि जेट इंजन को लेकर सिर्फ टेक्नॉलजी ट्रांसफर नहीं होगा, बल्कि एक ऐसा मैकेनिज्म बनेगा जिससे दोनों देशों के इंजीनियर्स इसे साथ मिलकर डिवेलप कर पाएं।

वहीं, स्पेस सहयोग में फ्रांस भारत का पुराना साथी रहा है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन और फ्रेंच स्पेस संगठन CNES ने साथ मिलकर 60 के दशक में भारत के सैटलाइट लॉन्चिंग सिस्टम को आगे बढ़ाया था।

 

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