पुरुषों को भी मासिक धर्म होता, तो पता चलता- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई एमपी हाईकोर्ट को फटकार?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि पुरुष जजों पर भी ऐसे मानदंड लागू किए जाएंगे. मुझे यह कहने में कोई झिझक महसूस नहीं हो रही. महिला गर्भवती हुई और उसका गर्भ गिर गया. गर्भ गिरने के दौरान महिला को मानसिक और शारीरिक आघात झेलना पड़ता है. …काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता, तो उन्हें इससे संबंधित दुश्वारियों का पता चलता.”
उन्होंने न्यायिक अधिकारी के आकलन पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की, जिसने दीवानी न्यायाधीश को गर्भ गिरने के कारण पहुंचे मानसिक व शारीरिक आघात को नजरअंदाज कर दिया था. शीर्ष अदालत ने कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार द्वारा छह महिला दीवानी जजों की बर्खास्तगी पर 11 नवंबर, 2023 को स्वत: संज्ञान लिया था.
महिलाओं की परेशानियों का अंदाजा है?
जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन.कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने सवाल उठाया कि महिला न्यायिक अफसरों का मूल्यांकन करते हुए गर्भपात के कारण हुई उनकी शारीरिक और मानसिक पीड़ा को क्यों नजरअंदाज किया गया। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सख्त लहजे में कहा, ‘मैं उम्मीद करती हूं कि पुरुष जजों पर भी यही नियम लागू किए जाते होंगे। एक महिला जज गर्भवती हो गईं थीं और फिर उनका गर्भपात हो गया था। इन हालात में एक महिला कितनी शारीरिक और मानसिक परेशानियों से जूझती है, इसका अंदाजा है? काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता। तब उन्हें इसका पता चलता।’
सुप्रीम कोर्ट ने लिया खुद संज्ञान
मध्य प्रदेश सरकार के विधि विभाग ने जून, 2023 में बर्खास्तगी का फैसला लिया था। याचिकाकर्ता जज की वकील चारु माथुर ने दलील दी कि चार साल के उम्दा सेवा रिकार्ड के बावजूद बिना तय प्रक्रिया अपनाए बर्खास्त किया गया। उनकी कामकाज की अवधि में गर्भधारण और बच्चे की देखभाल के अवकाश को भी शामिल किया। यह मूलभूत अधिकार का उल्लंघन है।