आज नहीं तो कल होगा, जनता की सहयोग से ही समस्या का हल होगा!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जिन माननीय सदस्यों ने इस बहस के दौरान जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारतीय सरकार की नीति के विषय में उदारता से बोला है, मैं उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूं। आज हमारी उस नीति को खुले दिल से स्वीकार किया गया है? चुनांचे उसकी आलोचना भी की गई है और मैं उसका स्वागत करता हूं, क्योंकि आलोचना से कोई भी विशेष स्थिति समझी जाती है और कश्मीर जैसी कठिन और नाजुक समस्या के जितने भी पहलुओं पर बहस हो, उतनी ही बातों पर प्रकाश पड़ेगा और उतना ही वह हम सबके लिए अच्छा रहेगा।

अब हम पांच वर्षों से कश्मीर की समस्या पर विचार करते रहे हैं। एक वर्ष से अधिक समय तक हमने वहां लड़ाई लड़ी और हमारे बहुत से वीर युवक वहां जाकर रहे भी। और इस कश्मीर की समस्या को हमने संसार के कई एक न्यायमंडलों के समक्ष रखा, हम संयुक्त राष्ट्र संघ के पास भी गए। कुछ भी हो, सबसे बड़ी बात जो हुई, वह यह है कि हमने जम्मू-कश्मीर के निवासियों के हृदयों में संघर्ष की आग भड़का दी है।

इस संसद के प्रति पूरा सम्मान रखते हुए मैं यह कहना चाहता हूं कि अंत में कश्मीर के लोग – वहां के पुरुष और वहां की ्त्रिरयां – ही इस बात का निर्णय करेंगे, यहां की संसद और संयुक्त राष्ट्र संघ इस बात का निर्णय नहीं कर सकते। हमने कश्मीर की इस समस्या को कई तरीकों से हल करने का प्रयास किया है, किंतु हमने अभी उसे सुलझाया नहीं है। मैं सदन में स्पष्टवादिता के साथ कहना चाहता हूं कि मैं इस मामले को जल्दी से निबटाने की कोई प्रतिज्ञा भी क्यों करूं, जो मैं बाद में पूरी न कर सकूं।

मैं सदन को यह भी बतला दूं कि आज के संसार में रोज ही ऐसी समस्याएं होती हैं, जो छोटी या बड़ी होने के नाते संसार के भविष्य पर अपना प्रभाव रखती ही हैं, किंतु प्रति मास  प्रति वर्ष ऐसी की ऐसी बनी रहती हैं, सुलझती नहीं हैं। इतना ही बहुत कुछ है कि ये समस्याएं बिगड़ती नहीं हैं। इसी को बहुत कुछ समझना चाहिए कि कोई समस्या बिगड़ती न हो। … विदेश में बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं, जो हमें उदारता से परामर्श देते हैं। उनको सुनकर हमें उन्हें यह कहने की तबियत होती है कि क्या वे भी दूरपूर्व या यूरोप की कई समस्याओं में व्यस्त हैं और उनकी समस्याएं दिन प्रति दिन एवं वर्ष प्रति वर्ष क्यों वैसी की वैसी बनी रहती हैं। …किंतु हम ऐसी थोथी बात नहीं कहेंगे…।

मेरे मान्य मित्र डॉक्टर मुखर्जी ने कभी इस खंड और कभी उस खंड पर बहुत कुछ कहा है। यदि मेरे पास समय होता, तो मैं उन सभी खंडों पर विचार कर लेता, किंतु सत्य यह है कि ऐसी बातों का कोई महत्व नहीं…।

महत्वपूर्ण बात यह है कि वास्तव में आपका क्या उद्देश्य है और उसे पाने का मार्ग क्या है? …भला बताइए कि आप क्यों धमकियां देते हैं? उनसे क्यों कहा जाता है कि आप इस तरह करें और उस तरह करें? इन बातों से कोई भी अंतर नहीं पड़ता। मुझे इस अर्थ में कश्मीरी कहा और समझा जाता है कि आज से दस पीढ़ियां पहले मेरे पूर्वज कश्मीर से भारत के इधर के भाग में आए थे। आज मैं पुराने बंधन से बंधा नहीं, अपितु उन बंधनों से बंधा हूं, जो इधर पांच वर्ष में पैदा हुए हैं और जिनके कारण हम एक दूसरे के निकट पहुंचे हैं। मैं ही नहीं बंधा हूं – मैं जनता का एक प्रतीक हूं। … अंतत: कश्मीर की जनता की सद्भावना और उनके सहयोग से ही इस प्रश्न को हल किया जाएगा।

… हमें बुनियादी बात को समझना होगा और इसके संबंध में अपना मस्तिष्क स्वच्छ रखना होगा। आप शेख अब्दुल्ला की आलोचना कर सकते हैं।  शेख अब्दुल्ला कोई ईश्वर नहीं, वह बहुत गलतियां करते हैं और बहुत सी गलतियां करेंगे। वह बहादुर मनुष्य हैं और अपनी जनता के बड़े नेता हैं। यही बहुत बड़ी बात है। …सैंकड़ों गलतियों के बावजूद बड़प्पन बड़प्पन कहलाता है।

…यह पाकिस्तान के एक बुनियादी झूठ पर ही आधारित है कि वह कश्मीर पर आक्रमण करने के बाद आक्रमण की बात नहीं मानता। मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि वे कश्मीर पर आक्रमण करना चाहते हैं। वे चले जाएं और लड़ें, किंतु वे झूठ क्यों बोलते हैं? छह महीने तक वे वहां लड़ते रहे और बाद में कहने लगे कि उन्होंने नहीं लड़ा। जब भी कोई बात किसी झूठ पर आधारित की जाए, तो सुरक्षा परिषद में प्रतिमाह झूठ दोहराया जाएगा। …पाकिस्तान तो विभाजन के समय ही अलग कर दिया गया। भारत पहले से था, भारत बाद में भी रहा, भारत इस समय भी है और भारत हमेशा रहेगा।

 

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