अगर इंसान ही नहीं बचेगा, तो हम धर्म को भी नहीं बचा सकेंगे,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जिस तरह की बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय घटना हुई है, वह बहुत चिंताजनक है. समाज में लोगों को संवेदनशीलता रखनी चाहिए और धर्मांध होकर जो लोग ऐसी वारदातें कर रहे हैं, उनकी भर्त्सना की जानी चाहिए. उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि दूसरों को भी सबक मिले, लेकिन हर घटना के बाद केवल निंदा कर और दोषियों को सजा देकर ही इतिश्री नहीं होनी चाहिए. आज पूरे देश और समुदाय के लिए यह सोचने का समय है कि बढ़ती धर्मांधता को रोकने के क्या उपाय हो सकते हैं? अगर कोई कहे कि ऐसी घटनाएं प्रतिक्रियास्वरूप हो रही हैं, तो उससे पूछा जाना चाहिए कि बाकी देशों में फिर ऐसा क्यों हो रहा है? इस तरह की बातों की आड़ लेने का समय निकल गया है.
मुस्लिम समाज को समस्या को ठीक से समझने और अमल करने की जरूरत है, अन्यथा हालात और ज्यादा खराब होंगे. पूरे देश में माहौल मुस्लिम समाज के विरुद्ध होता जायेगा और इसके लिए समुदाय नहीं, बल्कि समुदाय के भीतर के कट्टरपंथी और दिशाहीन तत्व जिम्मेदार होंगे. इस कारण ऐसा हुआ, उस कारण वैसा हुआ जैसे बहाने निकालने की प्रवृत्ति उचित नहीं है. कोई ऐसी बातों को सुनना भी नहीं चाहता है.
समुदाय के वैसे संगठनों को आत्मसमीक्षा करने की आवश्यकता है, जो कट्टर विचारों को बढ़ावा देने और ऐसी मानसिकता बनाने में योगदान देते हैं. ऐसी सोच व्यक्ति को बहुसांस्कृतिक समाज में रहने योग्य नहीं बनाती है और उसे अलग-थलग कर देती है. जो समझ या शिक्षण सामग्री कट्टरता को बढ़ाने में सहायक होती है, उसे भी हटाने का समय आ गया है. यह देखना होगा कि कोई शिक्षण सामग्री समाज में समरसता पैदा करती है, भाईचारा बढ़ाती है, सामाजिक विकास में योगदान देती है या फिर कहीं न कहीं वह लोगों को अलग-थलग करती है, इस्लाम को बदनाम करती है और विकास में भी बाधक बनती है.
ऐसी प्रवृत्तियों के विरुद्ध देश को भी खड़ा होना है, लेकिन सबसे पहले मुस्लिम समाज को उन तत्वों के खिलाफ खड़ा होना होगा, जिनके विचार जाहिलाना और सोच कट्टरपंथी है. वे धर्म का जो असली व बुनियादी मर्म है, उसे समझने-समझाने की बजाय धार्मिक चिह्नों के प्रदर्शन को ही धर्म माने बैठे हैं. ऐसे तत्व आध्यात्मिकता के बजाय आडंबरवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं. आज भी अगर इस्लाम के मूल को नहीं समझा जायेगा, तो बहुत देर हो जायेगी. आप इंसानियत की खिदमत कीजिये, ईश्वर में आस्था रखिये और समाज की बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करिये, यह धर्म है. इन चीजों को छोड़ कर आडंबर की ओर रुझान होना चिंताजनक है.
इस्लाम आडंबरवाद से निकाल कर मनुष्य को सीधे ईश्वर से जोड़ने के मार्ग का संदेश लेकर आया था, लेकिन समय के साथ मुस्लिम समुदाय तुलनात्मक रूप से सबसे अधिक कर्मकांडों और आडंबर में फंसता चला गया है. तो, जो दीन की रूह है, उसे समझने और उस पर अमल की जरूरत है. हम लोग प्रयासरत हैं कि मुस्लिम समाज में सकारात्मक माहौल पैदा हो और भविष्य के भारत के निर्माण में साझी विरासत और साझे हित के आधार पर सहकार बढ़े. कट्टरपंथ, अतिवाद और उग्रवाद, जो किसी भी रूप में हो या किसी भी कारण से हो, पर परदा नहीं डाला जा सकता है.
मुस्लिम समाज से हमारा आह्वान है कि आप कट्टरपंथ और उग्र सोच को अपना दुश्मन समझिये तथा देश की साझी विरासत पर भरोसा रखिये और इसके साझा भविष्य में अपना भविष्य देखिए. इसमें समुदाय को योगदान करना होगा. शेष भारतीय समाज हमारा दुश्मन नहीं है. अगर आप समाज के लिए हितकारी होंगे, तो समाज भी आपके हितों को साधने में सहयोग करेगा. आज के समय में स्पष्ट समझ के साथ खड़े होने की जरूरत है और इसमें किसी किंतु-परंतु की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.
युवा किसी भी समुदाय और देश के आधार होते हैं और दुर्भाग्य से कट्टरपंथी सोच से सबसे अधिक वे ही प्रभावित होते हैं. हमारे देश में अपार संभावनाएं पैदा हो रही हैं. दुनिया की चोटी की अर्थव्यवस्थाओं में भारत शामिल है और जिस गति से आर्थिक और सामाजिक विकास हो रहा है तथा भविष्य के लिए अवसर पैदा हो रहे हैं, वे अतुलनीय हैं. युवाओं की प्राथमिकता अपने को इन अवसरों के लिए ठीक से तैयार करने की होनी चाहिए. उन्हें अपने करियर पर ध्यान देना चाहिए और देश के सर्वांगीण विकास में योगदान देना चाहिए.
उन्हें कट्टरपंथियों की कट्टर विचारधारा से किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होना चाहिए, जो उनके भविष्य को चौपट करने में जुटे हुए हैं. किसी भी समाज में जब कट्टरपंथ बढ़ता है, तो उससे सबसे अधिक नुकसान उसी समाज को होता है. शुरू में भले ऐसा लगे कि वह सामने वाले के खिलाफ है, पर आखिर में आप ही उसकी चपेट में आते हैं. पूरा इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है. युवाओं की सोच यह होनी चाहिए कि उन्हें भारत के भविष्य के निर्माणकर्ताओं के रूप में देखा जाये.
मुस्लिम समाज के उदारवादी तबके को भी खड़ा होना होगा. उन्हें यह समझना चाहिए कि समुदाय के कुछ गिने-चुने लोगों की प्रतिक्रियाओं के डर से चुप रहने का समय नहीं है. हमें अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होगा. किसी भी समुदाय में उदारवादी सोच के लोगों का बहुमत होता है तथा भड़काने-उकसाने वाले चंद लोग होते हैं.
इस बहुमत को अपनी भावनाओं को जाहिर करने से परहेज नहीं करना चाहिए. कुछ लोगों की वजह से आप अगर अपनी बड़ी जिम्मेदारी से पीछे हट जायेंगे, तो इतिहास आपको माफ नहीं करेगा. ऐसा करने से जो पीढ़ियों पर गुजरेगी, उसके जिम्मेदार आप होंगे. धर्म की गलत समझ और व्याख्या का प्रतिकार समय की मांग है.
समाज में प्रश्न करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इससे ही गलत बातों को रोका जा सकता है और समाज को आगे बढ़ाया जा सकता है. धर्म का जो संदेश है, उसमें करुणा है, सेवा भाव है, मदद करना है, इन पर ईमानदारी से अमल किया जाना चाहिए. समुदाय को केवल धार्मिक प्रतीकों और दिखावे में सीमित नहीं रहना चाहिए. इंसान बचाने से ही धर्म बचेगा. अगर इंसान ही नहीं बचेगा, तो हम धर्म को भी नहीं बचा सकेंगे. मुस्लिम समुदाय की जो जिम्मेदारी अपने ही समुदाय के प्रति है, उसे ठीक से निभाने का समय आ गया है.