सलामत रहे तो बाद में बहस कर लेंगे.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हमारा देश भयानक कोरोना संक्रमण से गुजर रहा है और बहस छिड़ी है एलोपैथी बनाम आयुर्वेद की? यह क्या है, राजनीति या कोई व्यापारिक स्ट्रैटजी, कुछ कह नहीं सकते लेकिन इतना स्पष्ट है कि बाबा रामदेव ने इस बहस को गलत समय पर जन्म दिया। देश में ऐसे ग्रामीण इलाके कम नहीं है, जहां न आयुर्वेद है, न एलोपैथी। वहां नीम-हकीम, झोलाछाप डॉक्टर और झाड़ फूंक वाले बाबाओं का समूह कोरोना जैसी महामारी में ठीक होने का मंत्र (टोटके) दे रहा है।

यह कहना गलत न होगा कि कोरोना की जंग में निजी अस्पतालों पर सरकारी अंकुश नहीं था लिहाजा उन्होंने आपदा में अवसर तलाशे और महीनों मनमर्जी से पैसे वसूले। कई अस्पतालों की लूट के किस्से जग जाहिर हुए, लेकिन बावजूद इसके इन पर कोई नियंत्रण नहीं, दवाओं से ऑक्सीजन, बेड और वैंटिलेटर तक के दाम होश फाख्ता करने वाले रहे।

बहस भले ही आयुर्वेद v/s एलोपैथी में छिड़ी हो लेकिन देश में वास्तविक बहस का मुद्दा सरकारों द्वारा मौतों के वास्तविक आंकड़े छुपाने का है, इस पर कोई बहस करना नहीं चाहता, न सरकार और न ही अस्पताल क्योंकि ये मौतें इनकी घोर असफलता के जिंदा लेकिन मृत सबूत हैं। गुजरात से लेकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक से मौतों के जो वास्तविक आंकड़े सामने आए हैं, वे रोंगटे खड़े करने वाले हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत में कोरोना से मौतों का जो संभावित आंकड़ा बताया है वह 42 लाख है। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में 70 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हुए होंगे। भारत सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें तो अब तक देश में कोरोना से 3,11,497 लोगों की मौत हुई है। अब तक संक्रमितों की संख्या 2,71,71,000 है। सरकार के पास न तो श्मशान घाटों के आंकड़े हैं, न ही घरों या छोटे-मोटे अस्पताल में दम तोड़ने वाले मरीजों का रियल डेटा।

सरकारें कोरोना के जख्म जितना छिपाने के जतन करेंगी, उतने ही वे उभरकर सामने आएंगे। एक कड़वा सच यह है कि महामारी ने केंद्र और राज्य सरकारों के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की एक तरह से पोल खोलकर रख दी। कोरोना की दूसरी वेव को दोष देने से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोष मुक्त नहीं हो जाते। क्योंकि पहली वेव ने सरकारों को पूरा समय दिया, लेकिन उन्होंने उस समय आपदा को राजनीतिक अवसर में बदलने में समय गंवा दिया।

अब जब देश और राज्यों के हेल्थ सिस्टम की कलई खुलकर लोगों के सामने आ गई है तो उसे सुधारने के बजाय एक प्रदेश, दूसरे प्रदेश से बेहतर प्रदर्शन करने की होड़ में लग गया है। ‘बाबाजी’ आयुर्वेद बनाम एलोपैथी की बहस, हम सलामत रहे तो फिर कभी कर लेंगे, लेकिन सबसे बड़ी बहस का विषय है लोगों की जान बचाना।

पूछिए उन लोगों से जो अस्पतालों से बचकर जिंदा लौट आए और देखिए उन परिवारों को जिन्होंने अस्पतालों में बेड नहीं या ऑक्सीजन नहीं मिलने से दम तोड़ दिया। इस बेतुकी बहस की बजाय कुछ करिए। इस पर भी बहस कर ही लेंगे कि कोरोनिल अच्छी है या कोवीशिल्ड या कोवैक्सिन और सब पानी की तरह साफ हो जाएगा।

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