रात में अच्छी और पूरी नींद न हुई हो तो अगला दिन न तो उत्पादक रहता और न शरीर के लिये सुखकारी होता
आयुर्वेद निद्रा और स्वास्थ्य ?
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
रात में अच्छी और पूरी नींद न हुई हो तो अगला दिन न तो उत्पादक रहता और न शरीर के लिये सुखकारी होता। आज की चर्चा निद्रा के महत्व, स्लीप-डेट, स्लीप-डेप्राइवेशन या स्लीप-डेफिसिट आदि के कारण होने वाली हानि एवं उनसे निपटने के उपायों पर केन्द्रित है। आयुर्वेद में निद्रा को आहार एवं ब्रह्मचर्य के समकक्ष जीवन का उपस्तम्भ माना गया है। भाषा की भिन्नता को छोड़ दें तो, निद्रा के महत्व पर आयुर्वेद और आधुनिक वैज्ञानिक शोध के निष्कर्ष समान हैं।
नींद कब आती है? मन थक जाये, इन्द्रियाँ क्रिया-रहित हो जायें, मन व इंद्रियाँ दुनियादारी के पचड़ों से मुक्त हो जायें तब मनुष्य को निद्रा आती है (च.सू. 21.35): यदा तु मनसि क्लान्ते कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानवः।। उचित समय और मात्रा में नींद व्यक्ति को पुष्टि, साफ रंग, बल, उत्साह, तेज भूख, आलस्य-रहित, एवं धातुसाम्य देती है (सु.चि. 24.88):
पुष्टिवर्णबलोत्साहमग्निदीप्तिमतन्द्रि ताम्। करोति धातुसाम्यं च निद्रा काले निषेविता।। नींद के समय शरीर में टूटफूट की मरम्मत होती रहती है। असल में तो सुख-दुःख, दुष्टि-पुष्टि, मोटापा-पतलापन, बल-दुर्बलता, पुंसत्व-नपुसंकता, ज्ञान-अज्ञान, जीवन-मृत्यु सब निद्रा पर ही आधारित होते हैं। पर्याप्त नींद हमें सुख, पुष्टि, बली, ज्ञानी और दीर्घायु बनाती है। किन्तु बहुत कम या बहुत ज्यादा नींद रोग-जनन का कारण बनती है। सूर्योदयकाल/ सूर्यास्तकाल में सोना (मिथ्यायोग), उचित मात्रा से कम नींद (हीनयोग) या उचित मात्रा से अधिक सोना (अतियोग) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। रात्रि में सही समय पर नींद लेने पर स्वस्थ शरीर और सुखी जीवन तो मिलता ही है, यह सम्पन्नता का आधार भी है (च.सू. 21.36-38): निद्रायत्तं सुखं दुःखं पुष्टिः कार्श्यं बलाबलम्। वृषता क्लीवता ज्ञानमज्ञानं जीवितं न च।। अकालेऽतिप्रसङ्गाच्च न च निद्रा निषेविता। सुखायुषी पराकुर्यात् कालरात्रिरिवापरा।। सैव युक्ता पुनर्युङ्क्ते निद्रा देहं सुखायुषा। पुरुषं योगिनं सिद्ध्या सत्या बुद्धिरिवागता।।
लेकिन अपवाद-स्वरूप कुछ परिस्थितियों में दिन में भी सोया जा सकता हैं। संगीतज्ञ, गहन अध्येता, मद्यसेवी, काम से थके हुये लोग, पैदल चलने से कमजोर हुये लोग, अजीर्ण के रोगी, घायल, बूढ़े, बालक, स्त्री, अतिसार एवं दर्द से पीड़ित श्वास रोगी, हिचकी से पीड़ित, उन्माद रोगी, वाहनों में बैठकर थके व जगे हुये लोग, गुस्सा, शोक व भय से दुःखी लोगों द्वारा दिन में सोने से धातुसाम्य, बल की वृद्धि, अंग-पुष्टि, व जीवन में स्थिरता आती है। इसके अलावा ग्रीष्म ऋतु में सूखापन, वात-वृद्धि, छोटी रातें होने से दिन में झपकी मारना या सोना हितकारी होता है
(च.सू. 21.39-43): गीताध्ययनमद्यस्रीकर्मभाराध्वकर्शिताः। अजीर्णिनः क्षताः क्षीणा वृद्धा बालास्तथाऽबलाः।। तृष्णातीसारशूलार्ताः श्वासिनो हिक्किनः कृशाः। पतिताभिहितोन्मत्ताः क्लान्ता यानप्रजागरैः।। क्रोधशोकभयक्लान्ता दिवास्वप्नोचिताश्च ये। सर्व एते दिवास्वप्नं सेवेरन् सार्वकालिकम्।। धातुसाम्यं तथा ह्येषां बलं चाप्युपजायते। श्लेष्मा पुष्णाति चाङ्गानि स्थैर्यं भवति चायुषः।। ग्रीष्मे त्वादानरूक्षाणां वर्धमाने च मारुते। रात्रीणां चातिसंक्षेपाद्दिवास्वप्नः प्रशस्यते।।
गर्मी को छोड़कर अन्य ऋतुओं में स्वस्थ व्यक्ति के सोने से कफ और पित्त बढ़ते हैं। मोटे लोग, प्रतिदिन खूब घी खाने वाले लोग, कफ प्रकृति के लोग, कफज रोगों से ग्रसित लोग या विष पीड़ित लोगों को दिन में नहीं सोना चाहिये, अन्यथा, सिर दर्द, अंगों में भारीपन, अग्निमांद्य और पाचन शक्ति में कमी, जी मिचलाना, त्वचा में चकत्ते, फुंसियाँ, खुजली, आलस्य होना, स्मृति एवं बुद्धि में गड़बड़ी, इन्द्रियों में अक्षमता, स्रोतोवरोध, बुखार जैसी समस्यायें खड़ी हो जाती हैं (च.सू. 21.44-49):
ग्रीष्मवर्ज्येषु कालेषु दिवास्वप्नात् प्रकुप्यतः। श्लेष्मपित्ते दिवास्वप्नस्तस्मात्तेषु न शस्यते।। मेदस्विनः स्नेहनित्याः श्लेष्मलाः श्लेष्मरोगिणः। दूषीविषार्ताश्च दिवा न शयीरन् कदाचन।। हलीमकः शिरःशूलं स्तैर्मित्यं गुरुगात्रता। अङ्गमर्दोऽग्निनाशश्च प्रलेपो हृदयस्य च।। शोफारोचकहृल्लासपीनसार्धावभेदकाः। कोठारुः पिडकाः कण्डूस्तन्द्रा कासो गलामयाः।। स्मृतिबुद्धिप्रमोहश्च संरोधः स्रोतसां ज्वरः। इन्द्रियाणामसामर्थ्यं विषवेगप्रवर्तनम्।। भवेन्नृणां दिवास्वप्नस्याहितस्य निषेवणात्। तस्माद्धिताहितं स्वप्नं बुद्ध्वा स्वप्यात् सुखं बुधः।। जिन लोगों को दिन में नींद वर्जित नहीं है, जिन्हें रात में जागना पड़ा हो, वे थोड़े समय बैठकर भी नींद के झपकी ले सकते हैं, ताकि स्लीप-डेफिसिट को कम किया जा सके।
अच्छी नींद लाने वाले उपायों में सबसे उत्तम अभ्यंग या शरीर की मालिश, उबटन, स्नान, दही, दूध व घी के साथ शालि-चावल खाना, मन संतुष्ट रखना, मन-पसन्द सुगंध व शब्दों का उपयोग, शरीर को दबवाना, आंखों का तर्पण, सिर व शरीर में लेप, सुखदायी बिस्तर और सोने का शांत और समुचित स्थान, समय पर सोना आदि हैं (च.सू. 21/ 52-54): अभ्यङ्गोत्सादनं स्नानं ग्राम्यानूपौदका रसाः। शाल्यन्नं सदधि क्षीरं स्नेहो मद्यं मनःसुखम्।। मनसोऽनुगुणा गन्धाः शब्दाः संवाहनानि च। चक्षुषोस्तर्पणं लेपः शिरसो वदनस्य च।। स्वास्तीर्णं शयनं वेश्म सुखं कालस्तथोचितः। आनयन्त्यचिरान्निद्रां प्रनष्टा या निमित्ततः।। किन्तु विरेचन, डर, चिन्ता, गुस्सा, बहुत अधिक धूमपान और व्यायाम, व्रत, रक्तमोक्षण, कष्टकारी बिस्तर, सतोगुण की अधिकता या योगाभ्यास, तमोगुण पर विजय, कार्यो की अधिकता, बुढ़ापा, दर्द, व वात विकारों के बढ़ने से नींद नहीं आती है (च.सू. 21.55-57): कायस्य शिरसश्चैव विरेकश्छर्दनं भयम्। चिन्ता क्रोधस्तथा धूमो व्यायामो रक्तमोक्षणम्।। उपवासोऽसुखा शय्या सत्त्वौदार्यं तमोजयः। निद्राप्रसङ्गमहितं वारयन्ति समुत्थितम्।। एत एव च विज्ञेया निद्रानाशस्य हेतवः। कार्यं कालो विकारश्च प्रकृतिर्वायुरेव च।। अतः यथासंभव इन कारणों से बचना चाहिये।
आधुनिक वैज्ञानिक शोध में नींद के स्वास्थ्य विषयक पहलुओं पर 7 जनवरी 2023 तक 3,79,005 शोधपत्र प्रकाशित हुये हैं। रात्रिचर्या पर संक्षिप्त सलाह व शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि शायद ही ऐसी कोई बीमारी हो जिसका जोखिम निद्रा-अभाव के कारण ना बढ़ता हो। सात घंटे से कम सोने से मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक, अवसाद, सकल-कारण मृत्यु दर जोखिम में बढ़त, प्रतिरक्षा तंत्र में बिगाड़, दर्द में बढ़त, खराब कार्य प्रदर्शन, रोजमर्रा के काम में बढ़ी हुई त्रुटियों, और दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ जाता है। कुल 41,233 लोगों के आंकड़ों की मेटा-एनालिसिस) बताती है कि असम्यक निद्रा (6 घंटे से कम, 8 घंटे से ज्यादा) ज़रा-जीर्णता का जोखिम बढ़ाती है (स्लीप एंड ब्रीथिंग, 24:1187–1197, 2020)| वर्ष 2017 में प्रकाशित, 22,00,425 लोगों के बीच हुई शोध जिसमें 2,71,507 मृत्यु के प्रकरणों का आंकड़ा भी शामिल है, से पता चलता है कि लगभग 27 से 37 प्रतिशत तक जनसंख्या जरूरत से ज्यादा तथा 12 से 16 प्रतिशत जनसंख्या जरूरत से कम निद्रा लेती है। इन दोनों ही परिस्थितियों में स्वास्थ्य के लिये गम्भीर जोखिम बढ़ जाता है। उपलब्ध प्रमाण अब यह निर्विवाद रूप से यह सिद्ध करते हैं कि अपर्याप्त या आवश्यकता से अधिक निद्रा समग्र-कारण-मृत्यु-दर बढ़ा देती है। महिलाओं को विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि वे अनिद्रा के कारण सभी कारणों से होने वाली मृत्यु दर के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
दूसरा अध्ययन 30 से 102 वर्ष की 11,00,000 महिलाओं और पुरुषों के मध्य किया गया। निष्कर्ष यह पाया गया कि सर्वोत्तम उत्तरजीविता उन लोगों की होती है जो कि 7 घंटे की रात्रि की नींद पूरी करते हैं। पर 8 घंटे या उससे अधिक समय तक सोने से भी मृत्यु का जोखिम बढ़ने लगता है। तीसरा अध्ययन 13,82,999 महिलाओं और पुरुषों के बीच किया गया, जिनमें 1,12,566 मृत्यु के प्रकरण भी शामिल हैं। अध्ययन में लम्बे समय का फॉलो-अप, 4 वर्ष से 25 वर्ष तक, किया गया। इस अध्ययन के निष्कर्ष भी निर्विवाद रूप से सिद्ध करते हैं कि सात घंटे से ज्यादा या कम सोना दोनों ही स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं।
नींद की कमी से कार्य-निष्पादन, निर्णय लेने की क्षमता, व दर्द सहने की क्षमता में गंभीर कमी आती है। लंबे समय तक स्लीप-डेप्राइवेशन से बौद्धिक क्षमता क्षीण होती है। मेमोरी-कंसोलिडेशन पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि 4 से 9 वर्ष की उम्र के जो बच्चे बहुत देर से सोते हैं उनमें बौद्धिक क्षमता व सीखने की क्षमता में कमी आती है। सात वर्ष की उम्र के 11000 बच्चों पर किया गया एक अन्य अध्ययन बताता है कि जो बच्चे नियमित रूप से नियमित समय पर नहीं सोते, उनका पठन-पाठन के महत्वपूर्ण विषयों में बौद्धिक प्रदर्शन कमजोर रहता है। सोलह से उन्नीस वर्ष के 7798 बच्चों पर किये गये एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि निद्रा की नियमितता, निद्रा का कुल समय तथा निद्रा में कमी का पढ़ाई में प्राप्त अंकों (ग्रेड पोइंट एवरेज) पर भारी प्रभाव पड़ता है। जो बच्चे 10 से 11 बजे के मध्य नियमित रूप से बिस्तर पर सोने चले गये उनके औसत प्राप्तांक सर्वोत्तम थे।
एक स्वस्थ वयस्क के लिये नींद की जरूरी मात्रा कितनी होनी चाहिये? इस विषय पर अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ स्लीप मेडिसिन और स्लीप रिसर्च सोसाइटी की सलाह यह है कि सर्वोत्तम स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये वयस्कों को नियमित आधार पर प्रति रात कम से कम 7 घंटे सोना चाहिये। सात घंटे से कम सोने से मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक, अवसाद, और मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है। इसके साथ ही प्रतिरक्षा तंत्र में बिगाड़, दर्द में बढ़त, खराब कार्य प्रदर्शन, रोजमर्रा के काम में बढ़ी हुई त्रुटियों, और दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ जाता है। ख़ूब तरमाल खाना, शारीरिक व मानसिक व्यायाम न करना, और ख़ूब सोना हो तो दिल का रोग होना ही है (च.सू. 17.34): अत्यादानं गुरुस्निग्धमचिन्तनमचेष्टनम्। निद्रासुखं चाभ्यधिकं कफहृद्रोगकारणम्।। तथापि, युवा वयस्क, नींद की कमी से उबरने वाले लोग, या बीमार व्यक्ति नियमित आधार पर प्रति रात 9 घंटे सो सकते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के लिये प्रति रात 9 घंटे से अधिक समय तक सोते रहना स्वास्थ्य जोखिम को बढ़ाता है। सोने की निरंतरता, नींद की गुणवत्ता, नींद आने में देरी, बीच में जाग जाने का व्यवधान, पुनः नींद की शुरुआत और नींद की दक्षता आदि भी महत्वपूर्ण हैं।
बेहतर नींद से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दुरुस्त रहता है और बेहतर नींद के बिना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य ठीक नहीं रह सकता| इन दोनों ही परिस्थितियों के संबंध में अब कोई संदेह वैज्ञानिक अध्ययनों में शेष नहीं रहा है| बेहतर निद्रा लाने वाले कारकों पर हुए क्लिनिकल ट्रायल्स की मेटा-एनालिसिस से ज्ञात होता है कि बढ़िया नियमित व्यायाम जिसमें प्रातःकाल में तेज चाल में लगभग 30 से 45 चलना भी शामिल हो, लगभग 8,000 से 10,000 कदम प्रतिदिन चलना, सप्ताह में लगभग 120 से 180 मिनट वनानुभव प्राप्त करना, हरियाली में घूमना फिरना, नियमित योग और ध्यान, कालभोजन, स्वस्थ आहार, आदि जैसे गैर-औषधीय दखल मदद करते हैं (देखें, स्लीप मेडिसिन रिव्यूस, 47:1-8, 2019; स्लीप मेडिसिन रिव्यूस, 43:118-128, 2019; एनल्स ऑफ़ न्यूयॉर्क अकैडमी ऑफ़ साइंसेज, 1445(1): 5-16, 2019)| केशर (100 मिलीग्राम) प्रतिदिन लेने से भी निद्रा में सुधार होने के प्रमाण क्लिनिकल ट्रायल्स की मेटा-एनालिसिस में मिले हैं (स्लीप मेडिसिन, 92: 24-33, 2022)| क्लिनिकल ट्रायल में पाया गया कि तनाव, मूड व निद्रा-गुणवत्ता बेहतर करने में तुलसी उपयोगी है. लेकिन कोई भी दवा वैद्य के परामर्श से ही लें |
सोने के बाद लोग कैसे जागते हैं और सतर्कता प्राप्त करते हैं, यह इस बात से संबंधित है कि वे कैसे सो रहे हैं, खा रहे हैं और व्यायाम कर रहे हैं। यहाँ 833 जुड़वाँ और आनुवंशिक रूप से असंबंधित वयस्कों के एक अनुदैर्ध्य अध्ययन से ज्ञात होता है कि नींद के बाद के घंटों में व्यक्ति कितने प्रभावी ढंग से जागते हैं, यह उनके आनुवंशिकी से जुड़ा नहीं है, बल्कि चार स्वतंत्र कारक उत्तरदाई हैं: रात में नींद की मात्रा/गुणवत्ता, एक दिन पहले व्यायाम, कार्बोहाइड्रेट से भरपूर नाश्ता, और नाश्ते के बाद निम्न रक्त शर्करा प्रतिक्रिया। इसके अतिरिक्त, एक व्यक्ति की दैनिक सतर्कता का सेट-पॉइंट उनकी नींद की गुणवत्ता, उनकी सकारात्मक भावनात्मक स्थिति और उनकी उम्र से संबंधित होता है। ये निष्कर्ष दैनिक सतर्कता से जुड़े गैर-आनुवंशिक कारकों का एक समूह प्रकट करते हैं जिन्हें हम परिवर्तित कर सकते हैं (देखें, आर. वालेट इत्यादि, नेचर कम्युनिकेशन्स, 13: 7116, 2022)| आदतन अपर्याप्त नींद से जुड़ी चयापचय संबंधी विकृति को रोकने के लिए सप्ताहांत में नींद की भरपाई करना प्रभावी रणनीति नहीं है। इसलिये प्रति रात 7 घंटे की नींद आवश्यक है|
अमेरिका के राष्ट्रीय नींद फाउंडेशन ने नींद की अवधि की सिफारिशों को हाल ही में अपडेट किया है। उम्र के अनुसार उनकी सलाह यह है कि नींद की अवधि नवजात शिशुओं के लिये 14 से 17 घंटे, शिशुओं के लिये 12 से 15 घंटे, टॉडलर्स के लिये 11 से 14 घंटे, प्रीस्कूलर के लिए 10 से 13 घंटे, स्कूल-आयु वर्ग के बच्चों के लिये 9 से 11 घंटे, किशोरों के लिये 8 से 10 घंटे, युवा वयस्कों और वयस्कों के लिये 7 से 9 घंटे, और प्रौढ़ वयस्कों के लिये 7 से 8 घंटे उपयुक्त है। यदि आप बहुत कम या बहुत अधिक सो रहे हैं, तो आपको अपने आयुर्वेदाचार्य से सलाह लेने की आवश्यकता है। नींद का कर्ज प्रति रात सात घंटे निर्बाध सो कर उतारते रहिये, अन्यथा जीवन और मृत्यु के मध्य की दूरी कम होने लगती है। और हाँ, दिन भर ऐसा काम कीजिये कि रात की नींद हराम न हो|
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डॉ. अनुपम आदित्य मिश्र
एम डी (गोल्ड मेडलिस्ट)
पाल नगर
सिवान
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