काम के बोझ से रहते हैं चिंतित तो गणेश जी से सीखिए निदान का तरीका
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
एक बार भगवान शिव को इच्छा हुई कि एक बड़ा यज्ञ किया जाए. विचार आते ही वह शीघ्र ही यज्ञ अनुष्ठान प्रारंभ करने की तैयारियों में जुट गए.
सारे गणों को यज्ञ अनुष्ठान से जुड़ी अलग-अलग जिम्मेदारियां और कार्य सौंपे गए. सबसे बड़ा काम था यज्ञ में सारे देवताओं को आमंत्रित करना.
महादेव का यज्ञ हो, तो समस्त देवतागण सम्मिलित होंगे ही. यज्ञ का नियम कहता है कि अनुष्ठान करने वाला सभी यजमानों को निमंत्रण दे.
महादेव को ऐसे पात्र की तलाश थी जो समय रहते सभी लोकों में जाकर वहां के देवताओं को ससम्मान निमंत्रण दे आए.
इसके लिए बुद्धिमान, विवेकशील और बड़े काम को फुर्ती के साथ करने वाले व्यक्ति की आवश्यकता थी.
शिवगण फुर्तीले तो थे लेकिन उनकी बुद्धिमानी पर सदाशिव सशंकित थे. उन्हें लगा कि कहीं आमंत्रण देने की हड़बड़ी में गणों से देवताओं का अपमान ना हो जाए.
इसलिए महादेव ने इस काम के लिए गणेशजी का चयन किया. गणेश बुद्धि और विवेक के देवता हैं. वह जल्दबाजी में भी कोई गलती नहीं करेंगे.
यह सोचकर गणपति को समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का काम सौंपा गया. गणेशजी ने इस काम को सहर्ष स्वीकार लिया.
लेकिन गजानन के साथ समस्या यह थी कि उनका वाहन चूहा है जो बहुत तेजी से चल नहीं सकता. जिम्मेदारी जितनी बड़ी, समस्या उससे कम न थी.
लंबोदर ने काफी विचारकर एक जुगाड़ निकाल ही लिया. उन्होंने सारे निमंत्रण पत्र उठाए और पूजन सामग्री के साथ ध्यान में बैठे शिवजी के सामने जा पहुंचे.
गणेशजी को विचार आया कि जब सारे देवताओं का वास भगवान शिव में हैं, तो यदि शिवजी को प्रसन्न कर लिया जाए तो सारे देवता स्वतः प्रसन्न हो जाएंगे.
श्रीगणेश ने शिवजी का पूजन करके सारे देवताओं का आह्वान किया. आह्वान करने के बाद उन्होंने सभी देवों का निमंत्रण पत्र शिवजी के चरणों में समर्पित कर दिया.
इस तरह सारे निमंत्रण पत्र देवताओं तक स्वत: पहुंच गए. सभी यज्ञ में नियत समय पर पहुंचे. श्रीगणेशजी ने बुद्धि के बल पर एक मुश्किल काम को सरलता से पूरा कर दिया.
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