वैश्विक सम्मान चाहते हैं तो पहले अपनी संस्कृति का सम्मान करना सीखें.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
धन्यवाद कोरोना! आप सोच रहे होंगे कि कई जिंदगियां बर्बाद करने वाले कोरोना को मैं धन्यवाद क्यों कह रहा हूं। समझने के लिए आगे पढ़ें। परिवार में एक बुजुर्ग चाचाजी के देहांत के कारण मुझे नागपुर में रहना पड़ा। सोशल डिस्टेंसिंग नियमों के कारण मैं होटल में रुका। करीब 13 रीति-रिवाजों में शामिल होने के लिए मैं पारंपरिक कपड़े, धोती और अंगवस्त्रम पहनता था और यही पहनकर होटल लौटता था।
मुझे कई सुरक्षाकर्मी रोककर पूछते, ‘क्या आप होटल के मेहमान हैं?’ हां कहने पर वे मेरा रूम नंबर पूछते और कपड़े के थैले की जांच भी करते। ऐसा सिर्फ एक दिन नहीं, तीन दिन, अलग-अलग समय पर होता रहा। मुझसे ये सवाल तब कभी नहीं पूछे जाते जब मैं जींस, टी-शर्ट में जाता हूं। या अखबार के ऑफिस में मीटिंग में शामिल होने के लिए फॉर्मल सूट पहनता हूं।
अक्सर यात्रा करते रहने के कारण मैं जानता हूं कि पांच सितारा होटल के किसी सुरक्षाकर्मी को अपनी राय के आधार पर ये सवाल पूछने का अधिकार नहीं है। उनका काम है यह जांचना कि कोई खतरनाक सामान लेकर तो नहीं जा रहा। लेकिन मैंने उनके सवालों का विरोध नहीं किया। चूंकि उसी होटल में एक शादी भी थी, मैं गुस्सा दिखाकर खुशी का माहौल खराब करना नहीं चाहता था। मैं चुपचाप मूर्खतापूर्ण सवालों का जवाब देता रहा, जो मैं जानता था कि मेरे पहनावे को देखकर किए जा रहे हैं।
यहां तक कि उन्हें वह थैला भी देखने दिया, जिसमें टॉवल और पूजा-पाठ संबंधी बर्तन थे। उसी समय मैं देख सकता था कि कई लोग पेपर के बैग में कुछ लेकर अंदर जा रहे थे लेकिन उनकी जांच नहीं हो रही थी क्योंकि वे सूट पहने थे और कागज से बने बैग उन्हें ‘अंग्रेजी’ लुक दे रहे थे। सुरक्षाकर्मी शंका होने पर किसी की भी जांच कर सकते हैं। लेकिन मुझे सुरक्षा के मापदंड को लेकर चिंता थी क्योंकि वे कैसे तय कर सकते हैं कि केवल कपड़े के थैले वाले मेहमानों के पास खतरनाक सामान हो सकता है, पेपर या प्लास्टिक के बैग वालों के पास नहीं।
तीसरे दिन मैंने होटल के जनरल मैनेजर मनोज बालि से संपर्क किया, जिन्होंने नमस्ते कहकर अभिवादन किया लेकिन पश्चिमी पहनावा पहना था। उन्होंने इस बुरे अनुभव के लिए मुझसे माफी मांगी और स्वीकार किया कि उनके सुरक्षाकर्मी मेहमानों के पहनावे के आधार पर उनकी ‘क्वालिटी’ तय नहीं कर सकते।
लेकिन मैं उन्हें दोष नहीं देता। यह हमारा दोष है! फिर चौंक गए? यह रहा मेरा तर्क। सुरक्षाकर्मी भी एक स्तर तक शिक्षित हैं क्योंकि वे आधारभूत अंग्रेजी समझ सकते हैं। लेकिन हमने उन्हें गलत चीजें सिखाई हैं। प्राइमरी स्कूल में हम गलत तस्वीरों के साथ अल्फाबेट सिखाते हैं। जैसे अल्फाबेट ‘जी’ से ‘जेंटलमैन’ बताया जाता है और साथ में पश्चिमी सूट, बूट, टाई पहने पुरुष की तस्वीर होती है। कभी-कभी हाथ में ब्रीफकेस भी होता है। इससे वे सोचने लगते हैं कि धोती-अंगवस्त्रम पहने और हाथ में झोला लिए भारतीय जेंटलमैन नहीं कहलाता!
हम सिक्योरिटी गार्ड को कैसे दोष दे सकते हैं? यही कारण है कि मैं कोरोना को धन्यवाद दे रहा हूं कि इसकी वजह से अब दुनिया ‘नमस्ते’ कहकर अभिवादन कर रही है, जो मूलत: हमारी संस्कृति है। फंडा यह है कि अगर आप वैश्विक सम्मान चाहते हैं तो पहले अपनी संस्कृति का सम्मान करना सीखें और अपने बच्चों को भी गर्व से यह सिखाएं।
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