गाज़ा में तत्काल युद्ध विराम का प्रभाव
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इज़रायल द्वारा गाज़ा पर हमला शुरू करने के साढ़े पाँच माह बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा 25 मार्च 2024 को ‘तत्काल युद्धविराम’ (immediate ceasefire) का आह्वान किया गया। इसके साथ ही, UNSC ने हमास द्वारा बंधक रखे गए इज़रायली नागरिकों की रिहाई का भी आह्वान किया।
संयुक्त राज्य अमेरिका, जो अब तक गाज़ा में तत्काल युद्ध विराम के संयुक्त राष्ट्र के हर प्रस्ताव को वीटो करता रहा था, इस बार अनुपस्थित रहा, जो संघर्ष के प्रति बाइडेन प्रशासन के दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देता है।
UNSC द्वारा पारित प्रस्ताव क्या था?
- परिचय:
- प्रस्ताव में रमज़ान माह के लिये तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया गया जिसका सभी पक्षों द्वारा सम्मान किया जाए ताकि एक स्थायी एवं सतत् युद्धविराम की ओर बढ़ा जा सके। इसमें 7 अक्तूबर 2023 को हमास द्वारा बंधक बनाये गए इज़रायली बंदियों की रिहाई और गाज़ा में अधिक मानवीय सहायता की आवश्यकता एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून के पालन पर भी बल दिया गया।
- प्रस्ताव/संकल्प की प्रकृति:
- UNSC के सभी प्रस्तावों को अमेरिका द्वारा अनुमोदित संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 25 के अनुसार बाध्यकारी माना जाता है। हालाँकि, अमेरिका ने नवीन प्रस्ताव को गैर-बाध्यकारी बताया है।
- यदि UNSC के इस प्रस्ताव का पालन नहीं किया जाता है तो वह उल्लंघन को संबोधित करने वाले अनुवर्ती प्रस्ताव पर मतदान कर सकती है और प्रतिबंधों या यहाँ तक कि एक अंतर्राष्ट्रीय बल के प्राधिकरण के रूप में दंडात्मक कार्रवाई कर सकती है।
- UNSC के सभी प्रस्तावों को अमेरिका द्वारा अनुमोदित संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 25 के अनुसार बाध्यकारी माना जाता है। हालाँकि, अमेरिका ने नवीन प्रस्ताव को गैर-बाध्यकारी बताया है।
- पूर्व के प्रस्ताव:
- वर्ष 2016 में UNSC ने फिलिस्तीन में इज़रायल की बस्तियों को अवैध और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। यह प्रस्ताव 14 वोटों से पारित हुआ था और अमेरिका मतदान से अनुपस्थित रहा था। इज़रायल द्वारा इस प्रस्ताव की उपेक्षा की गई थी।
- अभी हाल ही में दिसंबर 2023 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक ‘मानवीय युद्धविराम’ का आह्वान करते हुए भारी बहुमत से मतदान किया था। यह एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव था और इज़रायल ने इस पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।
- इज़रायल अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की जाँच के दायरे में भी है, जहाँ दक्षिण अफ्रीका द्वारा उस पर गाज़ा में नरसंहार (genocide) के कृत्य का आरोप लगाया गया है।
- वर्ष 2016 में UNSC ने फिलिस्तीन में इज़रायल की बस्तियों को अवैध और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। यह प्रस्ताव 14 वोटों से पारित हुआ था और अमेरिका मतदान से अनुपस्थित रहा था। इज़रायल द्वारा इस प्रस्ताव की उपेक्षा की गई थी।
युद्धविराम का आह्वान करने वाले प्रस्ताव के पारित होने में अमेरिका की क्या भूमिका रही?
- रूस की तुलना में अमेरिका की भूमिका:
- अमेरिका ने इज़रायल को सैन्य सहायता की आपूर्ति नहीं रोकी है और बलपूर्वक कहा है कि इज़रायल की सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता दृढ़ बनी हुई है। वस्तुतः अमेरिका ने स्पष्ट रूप से और बलपूर्वक कहा है कि उनका वोट उनकी नीति में बदलाव का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने प्रस्ताव के विरुद्ध अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि इस पर मतदान से अनुपस्थित रहा।
- मतदान से कुछ समय पूर्व आम सहमति बनाने के प्रयास में प्रस्ताव के पाठ से ‘स्थायी’ (permanent) शब्द को हटा दिया गया था।
- रूस ने ‘स्थायी’ शब्द के उपयोग पर बल देने का प्रयास करते हुए कहा था कि इस शब्द का उपयोग नहीं करने से इज़रायल को रमादान के बाद “किसी भी समय गाज़ा पट्टी में अपना सैन्य अभियान पुनः शुरू करने” की अनुमति मिल सकती है।
- अमेरिका ने इज़रायल को सैन्य सहायता की आपूर्ति नहीं रोकी है और बलपूर्वक कहा है कि इज़रायल की सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता दृढ़ बनी हुई है। वस्तुतः अमेरिका ने स्पष्ट रूप से और बलपूर्वक कहा है कि उनका वोट उनकी नीति में बदलाव का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने प्रस्ताव के विरुद्ध अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि इस पर मतदान से अनुपस्थित रहा।
- अमेरिका द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव:
- UNSC के समक्ष अमेरिका द्वारा भी एक मसौदा प्रस्ताव रखा गया था और सदस्यों ने उस पर मतदान किया। इसे रूस और चीन द्वारा वीटो कर दिया, अल्जीरिया ने इसके विरुद्ध मतदान किया तथा गुयाना अनुपस्थित रहा। ग्यारह सदस्यों ने इस मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जो वर्तमान प्रस्ताव से पूर्व लाया गया था।
- अमेरिका के प्रस्ताव में युद्धविराम की मांग नहीं की गई थी, बल्कि “बंधकों की रिहाई के लिये समझौते के एक हिस्से के रूप में तत्काल और सतत् युद्धविराम स्थापित करने के अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक प्रयासों” का समर्थन किया गया था।
- UNSC के समक्ष अमेरिका द्वारा भी एक मसौदा प्रस्ताव रखा गया था और सदस्यों ने उस पर मतदान किया। इसे रूस और चीन द्वारा वीटो कर दिया, अल्जीरिया ने इसके विरुद्ध मतदान किया तथा गुयाना अनुपस्थित रहा। ग्यारह सदस्यों ने इस मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जो वर्तमान प्रस्ताव से पूर्व लाया गया था।
- अमेरिकी प्रस्ताव में हमास की निंदा:
- संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रस्ताव ने UNSC के सदस्य देशों से “हमास के वित्तपोषण को प्रतिबंधित करने सहित आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने” का आग्रह किया। प्रस्ताव में हमास की निंदा भी की गई और कहा गया कि हमास को “कई सदस्य देशों द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है।”
- अमेरिका के वक्तव्य में आगे कहा गया कि वर्तमान प्रस्ताव हमास की निंदा करने में विफल रहा है, जो प्रस्ताव की भाषा में शामिल होना चाहिये और अमेरिका इसे आवश्यक मानता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रस्ताव ने UNSC के सदस्य देशों से “हमास के वित्तपोषण को प्रतिबंधित करने सहित आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने” का आग्रह किया। प्रस्ताव में हमास की निंदा भी की गई और कहा गया कि हमास को “कई सदस्य देशों द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है।”
- अमेरिका-इज़राइल संबंधों पर प्रभाव:
- युद्धविराम का आह्वान करने वाले पिछले तीन मसौदा प्रस्तावों पर वीटो करने के बाद नवीन प्रस्ताव पर मतदान से अमेरिका अनुपस्थित रहा है। इसकी प्रतिक्रिया में इज़राइली प्रधानमंत्री ने एक प्रतिनिधिमंडल की वाशिंगटन यात्रा को रद्द कर दिया और असंतोष जताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी पूर्व नीति का त्याग कर दिया है।
वर्तमान में इज़राइल के पास कौन-से विकल्प मौजूद हैं?
- दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य का पालन करना:
- देश को स्थायी रूप से युद्ध की स्थिति में बनाये रखने के बजाय इज़राइल को UNSC के संदेश को गंभीरता से लेना चाहिये, युद्ध समाप्त करना चाहिये, गाज़ा में तत्काल मानवीय सहायता की अनुमति देनी चाहिये और सभी बंधकों की रिहाई तथा क्षेत्र से अपने सैनिकों की वापसी के लिये अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थों के माध्यम से हमास के साथ वार्ता जारी रखनी चाहिये।
- अब्राहम समझौते के मूल्यों का पालन करना:
- युद्ध शुरू होने से पहले इज़राइल अपने पड़ोस और व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष एक तार्किक स्थिति रखता था—विशेष रूप से अब्राहम समझौते के बाद, जिसने इज़राइल और विभिन्न अरब राज्यों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास किया था।
- तेज़ी से अलग-थलग पड़ती जा रही इज़राइल सरकार को अपने मित्र देशों की बात सुननी चाहिये और यह शत्रुता रोकनी चाहिये। अन्यथा इससे केवल इस दृष्टिकोण को ही बल प्राप्त होगा कि इसका प्रधानमंत्री अपने राजनीतिक हितों को राष्ट्रीय हित से ऊपर रख रहा है।
- युद्ध शुरू होने से पहले इज़राइल अपने पड़ोस और व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष एक तार्किक स्थिति रखता था—विशेष रूप से अब्राहम समझौते के बाद, जिसने इज़राइल और विभिन्न अरब राज्यों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास किया था।
- हमास के साथ सहयोग:
- गाज़ा पर शासन करने वाले और 7 अक्टूबर को इज़राइल पर अभूतपूर्व हमले के साथ युद्ध भड़काने वाले फिलिस्तीनी इस्लामी समूह हमास ने नवीन प्रस्ताव का स्वागत किया है।
- इसने कहा कि वह “तत्काल बंदी विनिमय प्रक्रिया में शामिल होने के लिये तैयार है जिससे दोनों पक्षों के बंदियों की रिहाई हो सके।” समूह ने इज़राइली बंधकों की रिहाई को इज़राइली जेलों में बंद फिलीस्तीनियों की रिहाई के साथ सशर्त बना दिया है।
- गाज़ा पर शासन करने वाले और 7 अक्टूबर को इज़राइल पर अभूतपूर्व हमले के साथ युद्ध भड़काने वाले फिलिस्तीनी इस्लामी समूह हमास ने नवीन प्रस्ताव का स्वागत किया है।
- अमेरिका के रुख के साथ तालमेल :
- अमेरिका पर संयुक्त राष्ट्र में इज़राइल की रक्षा के लिये अपनी वीटो शक्ति का उपयोग करने का आरोप लगाया जाता रहा है। हालाँकि गाज़ा में बढ़ती मौतों को लेकर, जहाँ 32,000 से अधिक लोग मारे गए जिनमें महिलाओं एवं बच्चों की बड़ी संख्या शामिल थी, अब वह इजराइल के प्रति आलोचनात्मक होता जा रहा है।
- अमेरिका ने इज़राइल पर यह दबाव भी बनाया है कि वह गाज़ा में सहायता की आपूर्ति के लिये अधिक प्रयास करे जहाँ पूरी आबादी भारी खाद्य असुरक्षा से गंभीर रूप से पीड़ित है।
- अमेरिका पर संयुक्त राष्ट्र में इज़राइल की रक्षा के लिये अपनी वीटो शक्ति का उपयोग करने का आरोप लगाया जाता रहा है। हालाँकि गाज़ा में बढ़ती मौतों को लेकर, जहाँ 32,000 से अधिक लोग मारे गए जिनमें महिलाओं एवं बच्चों की बड़ी संख्या शामिल थी, अब वह इजराइल के प्रति आलोचनात्मक होता जा रहा है।
- संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका:
- दुनिया को वृहत रूप से शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक साथ आने की ज़रूरत है लेकिन इज़राइली सरकार और अन्य संबंधित पक्षों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है।
- इस प्रकार भारत के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों के साथ-साथ इज़राइल के साथ भी अनुकूल संबंध बनाए रखने में मदद करेगा। भारत ने मध्य-पूर्वी देशों और इज़राइल के साथ लगातार अच्छे संबंध बनाए रखे हैं, जिसका वह प्रभावी ढंग से लाभ उठा सकता है।
- भारत को वर्ष 2022-24 के लिये मानवाधिकार परिषद में पुनः निर्वाचित किया गया है। भारत को इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे को सुलझाने के लिये मध्यस्थ के रूप में कार्य करने हेतु इन बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिये।
UNSC प्रस्ताव में अमेरिका का अनुपस्थित रहना इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर उसके रुख में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। जबकि आलोचकों का तर्क है कि प्रस्ताव की गैर-बाध्यकारी प्रकृति इसके प्रभाव को कम कर देती है और अमेरिका के इस कदम को चुनाव से पूर्व की एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.
यह अमेरिकी प्रशासन और इज़राइल सरकार के बीच बढ़ते तनाव को रेखांकित करता है। राफ़ा में ज़मीनी हमले के विरुद्ध अमेरिका की चेतावनियों पर ध्यान देने से इज़राइल का इनकार उनके बीच बढ़ते मतभेद को उजागर करता है। इज़राइल की अतिशयवादी स्थिति आगे उसके लिये और अलगाव का जोखिम उत्पन्न करती है तथा उसके दीर्घकालिक हितों को खतरा पहुँचाती है। यह परिदृश्य आवश्यक बनाता है कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिये और अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों के लिये इज़राइल इस संघर्ष के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करे।
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