अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस का महत्व और रोचक तथ्य.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विश्व भर में हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) के रूप में मनाया जाता है. यह दिवस जागरूकता दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है. विभिन्न देशों में अवैध शिकार एवं वनों के नष्ट होने के वजह से बाघों की संख्या में काफी गिरावट आई है.
विश्व भर में इस दिन बाघों के संरक्षण से संबंधित जानकारियों को साझा किया जाता है और इस दिशा में जागरुकता अभियान चलाया जाता है. दुनियाभर में बाघों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एक दिन बाघों के नाम समर्पित किया जाता है.
इस दिवस का मुख्य उद्देश्य
इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य जंगली बाघों के निवास के संरक्षण और विस्तार को बढ़ावा देने के साथ बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. इनकी तेजी से कम हो रही संख्या को नियंत्रित करना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो ये खत्म हो जाएंगे. इस खास दिन का मकसद बाघों के संरक्षण को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करना है.
विश्व के 70 प्रतिशत बाघ भारत में
विश्व में बाघों की लगभग 70 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है. देश में 2967 बाघ हैं, जबकि पूरी दुनिया में केवल 3900 बाघ ही बचे हैं. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ‘विश्व बाघ दिवस’ की पूर्व संध्या पर 28 जुलाई 2020 को बाघ गणना रिपोर्ट, 2018 जारी की. उन्होंने बताया कि साल 1973 में हमारे देश में केवल 9 टाइगर रिजर्व थे. अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है.
विश्व में किस-किस देश में बाघ पाए जाते है?
विश्व में भारत के अतिरिक्त बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलयेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम में बाघ पाए जाते हैं.
भारत में बाघों की संख्या
साल 2010 में की गई गणना के मुताबिक बाघों की संख्या 1706 थी, वहीं साल 2018 की गणना के अनुसार देशमें बाघों की संख्या बढ़कर 2967 हो गई है. बता दें कि देशभर में बाघों की जनगणना हर चार साल में होती है. जिससे उनकी ग्रोथ रेट का पता लगाया जाता है. साल 1973 में देशभर में मात्र 9 टाइगर रिजर्व ही थे, जिसकी संख्या अब बढ़कर 51 हो गई है.
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस का महत्व
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के जरिए लोगों को बाघ के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता है. इसके अलावा लोगों को पारिस्थितिक तंत्र में बाघों के महत्व को भी बताया जाता है. जिसका परिणाम यह है कि देश में तेजी से बाघों की संख्या बढ़ रही है.
बाघों की आबादी में कमी की मुख्य वजह
बाघों की आबादी में कमी की मुख्य वजह मनुष्यों द्वारा शहरों और कृषि का विस्तार ही इसका मुख्य कारण है. इस विस्तार के वजह से बाघों का 93 प्रतिशत प्राकृतिक आवास खत्म हो चुका है. बाघों की अवैध शिकार भी एक बहुत बड़ी वजह है जिसकी वजह से बाघ अब अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के विलुप्तप्राय श्रेणी में आ चुके हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के बारे में
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाने का फैसला साल 2010 में सेंट पिट्सबर्ग बाघ समिट में लिया गया था क्योंकि तब जंगली बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे. इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि साल 2022 तक वे बाघों की आबादी दुगुनी कर देंगे.
भारत का राष्ट्रीय पशु: एक नजर में
भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ को कहा जाता है. बाघ देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि तथा धीरज का प्रतीक है. बाघ भारतीय उपमहाद्वीप का प्रतीक है. यह उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को छोड़कर पूरे देश में पाया जाता है. विश्वभर में बाघों की कई तरह की प्रजातियां मिलती हैं. इनमें 6 प्रजातियां मुख्य हैं. इनमें साइबेरियन बाघ, बंगाल बाघ, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ तथा साउथ चाइना बाघ शामिल हैं.
बाघ से जुड़े 10 रोचक तथ्य
• बाघ के बच्चे जब पैदा होते हैं तो वे एक तरह से अंधे होते हैं. उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता. हालांकि, अगले 6 से 8 हफ्तों में उनकी दृष्टि बहुत साफ हो जाती है.
• एक बाघ की जंगलों में औसत आयु लघ्ब्ग 11 वर्ष रहती है. ये जानवर रात में शिकार पसंद करता है.
• बाघ की रात में देखने की क्षमता इंसानों से छह गुना तक ज्यादा होती है.
• बाघ अगर अपनी पूरी क्षमता से दौड़े तो ये 65 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड़ से दौड़ सकता है.
• बाघ अकेला ही रहता है और जिस क्षेत्र में रहता है, वहां अपने विरोधी बाघ को दूर रखने के लिए अपना एक खास क्षेत्र तय रखता है.
• बाघ का दहाड़ना लगभग तीन किलोमीटर दूर तक सुना जा सकता है. एक बिल्ली का DNA बाघ के DNA से 95.6 प्रतिशत मेल खाता है.
• बाघ केवल भारत का राष्ट्रीय पशु नहीं है. ये शानदार जानवर मलेशिया, बांग्लादेश और दक्षिण कोरिया का भी राष्ट्रीय पशु है.
• बाघ ऊँचाई में लगभग शेर के बराबर होता है. इसकी अगली टांगो का घेरा लगभग 2 फीट होता है.
• बाघ औसतन 9 किलोग्राम मांस प्रतिदिन खा लेता है. एक बाघ वर्ष भर में 45-50 हिरनों का शिकार कर लेता है.
• बाघ को अपने आवास-स्थल से बहुत लगाव होता है. शिकार के लिए चक्कर लगाने के बाद वापस उसी स्थान पर लौटकर आता है.
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