राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत स्वदेशी मवेशी नस्लों को बढ़ावा देने का महत्त्व
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राष्ट्रीय गोकुल मिशन के लगभग एक दशक के बाद, इस योजना के तहत परिकल्पित सभी स्वदेशी नस्लों की गुणवत्ता में सुधार करने के बजाय इसने देश भर में गाय की केवल एक स्वदेशी किस्म, गिर को प्रमुखता दी है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन से संबंधित समस्याएँ:
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन में गिर प्रजाति की गाय को प्रमुखता:
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत वर्ष 2014 में की गई थी, आरंभ में यह विभिन्न स्वदेशी गोजातीय किस्मों के लिये उच्च गुणवत्ता वाले शुक्राणु पर शोध और विकास करने के लिये डिज़ाइन किया गया था, किंतु इस मिशन ने मुख्य रूप से गिर गायों पर ध्यान केंद्रित किया है, अन्य नस्लों पर अधिक ध्यान नहीं दिया है।
- गिर प्रजाति की गायों को प्राथमिकता दिये जाने का प्रमुख कारण दूध उत्पादन और विभिन्न क्षेत्रों के लिये उनकी अनुकूलता है।
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत वर्ष 2014 में की गई थी, आरंभ में यह विभिन्न स्वदेशी गोजातीय किस्मों के लिये उच्च गुणवत्ता वाले शुक्राणु पर शोध और विकास करने के लिये डिज़ाइन किया गया था, किंतु इस मिशन ने मुख्य रूप से गिर गायों पर ध्यान केंद्रित किया है, अन्य नस्लों पर अधिक ध्यान नहीं दिया है।
- पशुधन संख्या पर प्रभाव:
- वर्ष 2019 में की गई पशुधन जनगणना के अनुसार, वर्ष 2013 के बाद से शुद्ध नस्ल की गिर गायों में 70% की वृद्धि देखी गई है। इसके विपरीत, साहीवाल और हरियाना जैसी अन्य स्वदेशी नस्लों की समान वृद्धि नहीं हुई, कुछ नस्लों की संख्या में गिरावट भी दर्ज की गई।
- यह पैटर्न भारत में देशी मवेशियों की नस्लों में विविधता के नुकसान को लाकर चिंता उत्पन्न करती है।
- वर्ष 2019 में की गई पशुधन जनगणना के अनुसार, वर्ष 2013 के बाद से शुद्ध नस्ल की गिर गायों में 70% की वृद्धि देखी गई है। इसके विपरीत, साहीवाल और हरियाना जैसी अन्य स्वदेशी नस्लों की समान वृद्धि नहीं हुई, कुछ नस्लों की संख्या में गिरावट भी दर्ज की गई।
स्वदेशी गिर गाय की नस्ल से संबद्ध मुद्दे:
- वर्गीकृत गिर गायों का असंगत प्रदर्शन:
- गिर गायों के प्रति बढ़ते रुझान के विपरीत शोध से पता चलता है कि वर्गीकृत गिर गायें (गिर और अन्य अज्ञात किस्मों के बीच की एक संकर नस्ल) कई राज्यों में लगातार स्वदेशी नस्लों से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रही हैं।
- उदाहरण के लिये हरियाणा में वर्गीकृत गिर गायों में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि का कोई साक्ष्य नहीं है।
- पूर्वी राजस्थान में स्वदेशी किस्मों की तुलना में वर्गीकृत गिर गायों के दुग्ध उत्पादन में कमी होने की जानकारी मिली है, जिससे किसानों को कम स्तनपान अवधि और दैनिक दुग्ध के उत्पादन में कमी की शिकायत हो रही है।
- हालाँकि पश्चिमी राजस्थान में अनुकूल जलवायु परिस्थितियों के कारण वर्गीकृत गिर गायें बेहतर प्रदर्शन करती हैं।
- गिर गायों के प्रति बढ़ते रुझान के विपरीत शोध से पता चलता है कि वर्गीकृत गिर गायें (गिर और अन्य अज्ञात किस्मों के बीच की एक संकर नस्ल) कई राज्यों में लगातार स्वदेशी नस्लों से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रही हैं।
- माइक्रोक्लाइमेट के अनुकूलन से परे कारक:
- वर्गीकृत गिर गायों का प्रदर्शन सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों के प्रति उनकी अनुकूलन क्षमता से परे अन्य कारकों से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिये गिर गायें झुंड में विकास करती हैं अतः अलग-अलग पाले जाने से उनका दूध उत्पादन कम हो जाता है।
- पर्याप्त संसाधनों और सहायता के बिना ये गायें किसानों के लिये बोझ बन सकती हैं। विदर्भ क्षेत्र की घटनाएँ इसका प्रमाण है।
- वर्गीकृत गिर गायों का प्रदर्शन सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों के प्रति उनकी अनुकूलन क्षमता से परे अन्य कारकों से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिये गिर गायें झुंड में विकास करती हैं अतः अलग-अलग पाले जाने से उनका दूध उत्पादन कम हो जाता है।
आवश्यक समाधान:
- आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठ स्वदेशी गायों पर ज़ोर:
- विशेषज्ञ कुछ अधिक दुग्ध देने वाली गोजातीय नस्लों की बजाय स्वदेशी नस्लों में से आनुवंशिक रूप से बेहतर गायों की पहचान करने और प्रजनन करने का सुझाव देते हैं।
- महाराष्ट्र के पशुपालन विभाग ने वर्ष 2012-14 में आनुवंशिक रूप से बेहतर स्वदेशी नस्लों के वीर्य को पशुशालाओं तक सुलभ कराकर एक सफल अनुप्रयोग किया, जो इस दृष्टिकोण की क्षमता को दर्शाता है।
- विशेषज्ञ कुछ अधिक दुग्ध देने वाली गोजातीय नस्लों की बजाय स्वदेशी नस्लों में से आनुवंशिक रूप से बेहतर गायों की पहचान करने और प्रजनन करने का सुझाव देते हैं।
- स्वदेशी गो-जातीय नस्लों की दीर्घकालिक संभावनाएँ:
- भारत में विविध प्रकार के गौ-वंशों की आबादी है, जिनमें से प्रत्येक गाय विशिष्ट क्षेत्रों के लिये अनुकूलित है। लगातार क्रॉसब्रीडिंग से वर्गीकृत किस्मों में क्षेत्र-विशिष्ट लक्षण विलुप्त हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की बद्री गायों को गिर गायों के साथ संकरण कराने से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, लेकिन उनमें शारीरिक बदलाव आ सकता है, जिससे बचना चाहिये।
- भारत में विविध प्रकार के गौ-वंशों की आबादी है, जिनमें से प्रत्येक गाय विशिष्ट क्षेत्रों के लिये अनुकूलित है। लगातार क्रॉसब्रीडिंग से वर्गीकृत किस्मों में क्षेत्र-विशिष्ट लक्षण विलुप्त हो सकते हैं।
- अतीत से सीख और भविष्य के लक्ष्य:
- विशेषज्ञ श्वेत क्रांति की गलतियों को दोहराने के प्रति आगाह कराते हैं, जिसमें भारतीय गौ-वंशों के साथ क्रॉसब्रीडिंग के लिये जर्सी जैसी विदेशी नस्लों का आयात किया गया था।
- हालाँकि इससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई, लेकिन इससे पशुपालकों की आय में वृद्धि नहीं हुई, क्योंकि संकर नस्ल की गायें बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील थीं और उन्हें अधिक देखभाल की आवश्यकता थी।
- विशेषज्ञ श्वेत क्रांति की गलतियों को दोहराने के प्रति आगाह कराते हैं, जिसमें भारतीय गौ-वंशों के साथ क्रॉसब्रीडिंग के लिये जर्सी जैसी विदेशी नस्लों का आयात किया गया था।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन:
- परिचय:
- इसे दिसंबर 2014 से स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास और संरक्षण के लिये लागू किया गया है।
- यह योजना 2400 करोड़ रुपए के बजट परिव्यय के साथ वर्ष 2021 से 2026 तक एकछत्र योजना राष्ट्रीय पशुधन विकास योजना के तहत भी जारी है।
- नोडल मंत्रालय:
- मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
- उद्देश्य:
- उन्नत तकनीकों का उपयोग करके गोवंश की उत्पादकता और दुग्ध उत्पादन को स्थायी रूप से बढ़ाना।
- प्रजनन उद्देश्यों के लिये उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों के उपयोग को बढ़ावा देना।
- प्रजनन नेटवर्क को मज़बूत करने और किसानों तक कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं की डिलीवरी के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान कवरेज को बढ़ाना।
- वैज्ञानिक और समग्र तरीके से स्वदेशी मवेशी तथा भैंस पालन एवं संरक्षण को बढ़ावा देना।
पशुधन क्षेत्र से संबंधित योजनाएँ:
- पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF)
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
- राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केंद्र
- गोकुल ग्राम
- “ई-पशु हाट”- नकुल प्रजनन बाज़ार
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