वन्यजीव संरक्षण का महत्त्व, वन्यजीव संरक्षण हेतु भारत का घरेलू कानूनी ढाँचा.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वर्ष 2013 से प्रतिवर्ष 3 मार्च को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ का आयोजन किया जाता है।
- गौरतलब है कि इसी तिथि पर वर्ष 1973 में वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) को अंगीकृत किया गया था।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव द्वारा संयुक्त राष्ट्र के कैलेंडर में वन्यजीवों हेतु इस विशेष दिन का वैश्विक पालन सुनिश्चित करने हेतु CITES सचिवालय द्वारा निर्देशित किया जाता है।
वर्ष 2022 का थीम:
- थीम: पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली हेतु प्रमुख प्रजातियों की पुनर्बहाली।
- इस विषय को वन्यजीवों और वनस्पतियों की सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों में से कुछ के संरक्षण की स्थिति पर ध्यान आकर्षित करने के तरीके के रूप में चुना गया है।
इस दिवस का महत्त्व:
- यह संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों– 1, 12, 14 और 15 के साथ संरेखित है तथा गरीबी को कम करने, संसाधनों का सतत् उपयोग सुनिश्चित करने एवं जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिये भूमि पर एवं जल के नीचे जीवन के संरक्षण को लेकर उनकी व्यापक प्रतिबद्धताओं के साथ भी संरेखित है।
- हमारा ग्रह वर्तमान में तमाम चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो कि जैव विविधता का नुकसान पहुँचाती हैं और इसके कारण आने वाले दशकों में एक लाख प्रजातियाँ लुप्त हो सकती हैं।
जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों की मौजूदा स्थिति:
- वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लगभग 8000 से अधिक प्रजातियाँ लुप्तप्राय हैं और 30,000 से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- यह भी अनुमान लगाया गया है कि लगभग एक लाख प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।
- भारत में सभी दर्ज प्रजातियों का 7-8% हिस्सा है, जिसमें पौधों की 45,000 से अधिक प्रजातियाँ और जानवरों की 91,000 प्रजातियाँ शामिल हैं।
- भारत दुनिया के सबसे जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है, जहाँ तीन जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं- पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय और इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट।
- देश में 7 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, 11 बायोस्फीयर रिज़र्व और 39 रामसर स्थल हैं।
- भारत में कई वन्यजीव संरक्षण पार्क और अभयारण्य हैं, जिनमें उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, राजस्थान में रणथंभौर नेशनल पार्क, गुजरात में गिर नेशनल पार्क, कर्नाटक में बन्नेरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क, केरल में पेरियार नेशनल पार्क, लद्दाख में हेमिस नेशनल पार्क, हिमाचल प्रदेश में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क आदि शामिल हैं।
- प्रजातियों के विलुप्त होने में मानव गतिविधियों के साथ-साथ मुख्य कारकों में शामिल हैं- शहरीकरण के कारण निवास स्थान का नुकसान, अतिशोषण, प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से स्थानांतरित करना, वैश्विक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन आदि।
- अवैध वन्यजीव व्यापार के कारण पौधों और जंगली जानवरों की आबादी को भी नुकसान पहुँच रहा है तथा लुप्तप्राय प्रजातियों को विलुप्त होने की ओर धकेल रहा है। इसके कई सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम भी हो सकते है जैसे कि ज़ूनोटिक रोगजनकों का प्रसार।
वन्यजीव संरक्षण के लिये भारत का घरेलू कानूनी ढाँचा:
- वन्यजीवों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन और वन्य पशुओं तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- संविधान के अनुच्छेद 51 A (G) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48 ए में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- कानूनी ढाँचा:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- जैव विविधता अधिनियम, 2002
- वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में भारत का सहयोग:
- वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES)
- वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS)
- जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD)
- विश्व विरासत अभिसमय
- रामसर अभिसमय
- वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क (TRAFFIC)
- वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (UNFF)
- अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (IWC)
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)
- ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF)
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