राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में हमें बच्चों के जीवन में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताना है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में हमें बच्चों के जीवन में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताना है ….एवं इन चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए, इसके लिए तैयार करना है। सबसे पहले भविष्य की चुनौतियां हैं क्या? कैसे पहचानेंगे हमारे बच्चे? वे तो बस मैथ, साईंस में इतना डूबे रहते हैं कि भाषा का कोई ग्यान नहीं होता। अंग्रेजी तो छोड़ हीं दीजिए…हिन्दी में एक आवेदन लिखने में पसीने छूटने लगते हैं। किसी शब्द, वाक्य का भावार्थ क्या है, किस मानसिकता से कहा …और बोला गया है, कौन सा फिल्मी डायलॉग आपकी संस्कृति एवं राष्ट्र को चोट पहुंचा रहा है, फिल्मी खलनायक का नाम एवं वेशभूषा क्या है?
न्यायालय …आपके राष्ट्रीय एवं मानवीय हितों के प्रति कितना संवेदनशील है, संविधान की भाषा को कौन, कितना एवं किस तरह अपने हित में तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है, पत्रकारिता की भाषा एवं भावार्थ आपके राष्ट्रीय हित को कितना प्रभावित करते हैं, इस …राष्ट्र की मिट्टी से किसे स्वाभाविक लगाव है, कौन सा विचार आयातित है….और अपने को भारत की बहुलता पर थोपकर उसे एक हीं रंग-रूप देना चाहता है?प्रशासन …में बैठा हुआ वह व्यक्ति अपने को कितना निष्पक्ष एवं निरपेक्ष बताते हुए….दरअसल किसी खास वर्ग के तृप्तिकरण में कितना एवं कैसे लगा हुआ है?
स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे …अपने पूर्वज राष्ट्रनायकों के बलिदान से क्या सीख रहे हैं? एक लॉ ग्रेजुएट वक्फ बोर्ड के बारे में कितना जानता है, अपने देश के दूरगामी हित को प्रभावित करने वाले कानूनों एवं सांवैधानिक प्रावधानों के बारे में उसको कितनी जानकारियां है? राष्ट्र के प्रमुख विद्वान हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में चल रहे भारत विरोधी ‘एकेडेमिक खेल’ के बारे में कितना जानते हैं? राष्ट्र के किसी भी वर्ग द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम क्या हैं? क्या पढ़ाया जाता है? और….वह पढ़कर उस संस्थान से निकले छात्र एवं छात्राएँ भविष्य में अपना एवं राष्ट्र का कितना भला करेंगे?
….और अंत में आपका लक्ष यानि साध्य क्या है? आईएएस, आईआईटी या आंटर्प्रिन्योर? यह साध्य है या साधन? अगर साध्य है तो हमारे बच्चे आईएएस बनकर भी ….बस बगल वाले मिश्रा जी से आगे बढ़ने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। ….लेकिन अगर यहीं …बड़े पद …अगर बड़े लक्ष्य प्राप्ति का साधन बने, तभी राष्ट्र बचेगा।
बड़ा लक्ष्य है- राष्ट्र की बहुलता को बचाना है। राष्ट्र के समानांतर सत्ता चला रहे ….सिस्टम में घुसकर ……राष्ट्र की गाढ़ी कमाई से व्यवस्थागत खामियों की बदौलत अपना सिस्टम चला रहे …कुछ अराजक अराष्ट्रीय तत्वों की जड़ों में मट्ठा डालना। यह …तभी संभव है जब शिक्षा टेक्स्टबुक एवं स्कूल की दिवारों से मुक्त हो।
मानवाधिकार वे मूलभूत नैसर्गिक अधिकार हैं जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि के आधार पर वंचित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। भारत ….शताब्दियों से राष्ट्रीय एवं धार्मिक नरसंहार का केन्द्र रहा। भारत पर बाहरी हमलों का मुख्य कारण …भारतीयों की अलग पूजा पद्धति हीं थी। आज का….अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, मूल्तान कभी बौद्ध क्षेत्र हुआ करता था। ईरान पारसियों का देश था।
आखिर …उन बौद्धों, पारसियों का क्या हुआ? निश्चित रूप से किसी बर्बर सभ्यता वाली सोच ने बौद्ध एवं पारसी जैसे शांतिप्रिय लोगों का नरसंहार कर …उनकी पूरी सभ्यता हीं इतिहास से मिटा दी। संस्कृति नष्ट होते हीं….भौगोलिक क्षेत्रों पर कब्जा करना आसान हो जाता है। 8वीं शताब्दी के प्रारंभ में मुल्तान में बौद्धों का कत्लेआम हो या नालंदा विश्वविद्यालय पर हमले कर बौद्ध छात्रों, शिक्षकों सहित विशाल पुस्तकालय को जलाना हो या बामियान स्थित …भगवान बुद्ध की विश्व की सबसे विशाल मूर्ति को रॉकेट एवं तोप से ध्वस्त करना हो, इन सबके मूल में ….धर्म के आधार पर घृणा से भरपूर हत्या एवं प्रताड़ना हीं है। जब बामियान में आतंकियों ने भगवान बुद्ध की मूर्ति पर तोप चलाया होगा …तो हमारे बाबा साहब अम्बेडकर की आत्मा तड़प उठी होगी।
….बाबा साहब के अराध्य की मूर्ति तोड़ने वाली सोच.. ….बाबा साहब के संविधान के प्रति आस्था कैसे रख सकती है? यह सोचने वाली बात है। …भारत विभाजन के समय धर्म के नाम पर लाखों निर्दोष लोगों का कत्ल हुआ। जनवरी 1990 में मूल कश्मीरियों के नरसंहार का कारण पूरी तरह से धार्मिक हीं था। …यह नरसंहार छिटपुट आज भी चल रहा है। कभी टुकड़ों …में कभी एक…दो कर। लेकिन …भारतीयो का मानवाधिकार हनन बड़ा हीं कारूणिक एवं पेचिदा है।
इसमें शासन प्रक्रिया, शिक्षण संस्थान, मीडिया, फिल्म का मिला जुला इकोसिस्टम है …जो हत्या एवं नरसंहार का माहौल तैयार करने में …जाने अनजाने सहायता करता है। भारतीयों के मानवाधिकार हनन का प्रश्न …यहूदियों के गैस-चैम्बर एवं होलोकॉस्ट से कहीं अलग प्रकृति का है…जो आज भी जारी है।
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