नवरात्रि  में  मां दुर्गा को  हर दिन चढ़ावे अलग  नैवेद्य, होगी मनोकामना पूर्ण 

नवरात्रि  में  मां दुर्गा को  हर दिन चढ़ावे अलग  नैवेद्य, होगी मनोकामना पूर्ण 

जाने दुर्गा सप्तशती पाठ का क्या है  महत्व

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क :

नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा के साथ माँ को अलग अलग दिन अलग नैवेध चढ़ाने का  प्रवधान है, जिससे माँ प्रसन्न होती  है।
माता को कौन सा नैवेद्य चढ़ावें:-
प्रथम दिन – माता को नैवेद्य के रूप में गौ घृत चढ़ावें, इससे आपको आरोग्य की प्राप्ति होगी।
द्वितीय दिन – माता को नैवेद्य के रूप में शक्कर चढ़ावें, इससे आपकी उम्र में बढ़ोतरी होगी।
तृतीय दिन – माता को नैवेद्य के रूप में दूध चढ़ावें, इससे आपको कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
चतुर्थ दिन – माता को नैवेद्य के रूप में मालपुआ चढ़ावें, इससे आपमें निर्णय लेने की शक्ति का विकास होगा।
पंचम दिन – माता को नैवेद्य के रूप में केला चढ़ावें, इससे आपकी बुद्धि का विकास होगा।
षष्टम दिन – माता को नैवेद्य के रूप में मधु चढ़ावें  इससे आपकी सुंदरता बढ़ेगी, आकर्षण भी बढ़ेगा।
सप्तम दिन – माता को नैवेद्य के रूप में गुड़ चढ़ावें, इससे आपको आकस्तिमक संकटों से मुक्ति मिलेगी।
अष्टम दिन – माता को नैवेद्य के रूप में नारियल चढ़ावें  इससे आपके हर प्रकार के कष्ट दूर होंगें।
नवम दिन – माता को नैवेद्य के रूप में धान चढ़ावें, इससे आपको इस लोग में ही नहीं बल्कि परलोक में भी सुख मिलेगा।
दशम दिन – माता को नैवेद्य के रूप में काला तिल चढ़ावें इससे आपको नरक में जाने का भय नहीं रहेगा।
दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व:-
मां दुर्गा की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ सर्वोतम है। दुर्गा शक्ति की उत्पति तथा उनके चरित्रों का वर्णन मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत देवी माहात्मय में किया गया है। भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है- जिस प्रकार से वेद अनादि है उसी प्रकार सप्तशती भी अनादि है।
दुर्गा सप्तशती 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय है, और यह मुख्य रूप से ये तीन चरित्र प्रथम चरित्र ( इसमें प्रथम अध्याय), मध्यम चरित्र (इसमें दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय), और उत्तम ( इसमें पांचवा से तेरहवे अध्याय) में है। प्रथम चरित्र की देवी महाकाली, मध्यम चरित्र की देवी महालक्ष्मी और तीसरे उत्तम चरित्र की देवी महासरस्वती मानी गयी है। दुर्गा सप्तशती में मां महाकाली की स्तुति एक अध्याय में, मां महालक्ष्मी की स्तुति तीन अध्यायों में और मां महासरस्वती की स्तुति नौ अध्यायों में वर्णित की गयी है।
इस दुर्गा सप्तशती में मारण के – 90
मोहन के – 90
उच्चाटन के – 200
स्तंभन के – 200
वशीकरण के – 60 और
विद्वेशण के भी 60 प्रयोग दिए गए हैं। इस प्रकार यह कुल 700 श्लोक 700 प्रयोग के सामान माने गये हैं।
दुर्गा सप्तशती में राजा सुरथ जिनका शत्रुओं और दुष्ट मंत्रियों के कारण संपूर्ण राजपाट, कोष, सेना और बहुमूल्य वस्तुएं सब कुछ हाथ से छिन गया था और समाधि नामक वैश्य जिसकी दुष्ट स्त्री और पुत्र ने धन के लोभ में उसको घर से निकाल दिया था लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद निराशा से घिरे होने के बाद भी उन दोनों का मन अपने घर परिवार, अपने राज्य और अपने परिजनों में ही आसक्त था उन दोनों को मेघा ऋषि ने ज्ञान दिया है।
इस देवी महात्मय के श्रवण के बाद राजा सुरथ और समाधि वैश्य दोनों ने ही मां आदि शक्ति की आराधना की। तत्पश्चात देवी की कृपा से राजा सुरथ को उनका खोया राज्य और वैश्य को भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ। उसी प्रकार जो व्यक्ति मां भगवती की आराधना करते हैं सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसी मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती के केवल 100 बार पाठ करने से सभी तरह की सिद्धिया प्राप्त होती है।
महर्षि मेधा ने सर्वप्रथम राजा सुरथ और समाधि वैश्य को यह अदभूत दुर्गा का चरित्र सुनाया। उसके पश्चात महर्षि मृकण्डु के पुत्र चिरंजीवी मार्कण्डेय ने मुनिवर भागुरि को यह कथा सुनाई थी। यही कथा द्रोण पुत्र पक्षिगण ने महर्षि जैमिनी को सुनाई थी। जैमिनी ऋषि महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य थे । फिर इसकी कथा संवाद का संपूर्ण जगत के प्राणियों के कल्याण के लिए महर्षि वेदव्यास ने मार्कण्डेय पुराण में यथावत क्रम में वर्णन किया है।
मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों की रक्षा के लिए परम गोपनीय साधन, मां का देवी कवच एवं परम पवित्र किंतु आसान उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताये हैं। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ सभी तरह के मनोरथ सिद्धि के लिए करते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरूषार्थों का प्रदान करता है। दुर्गा सप्तशती के सभी तेरह अध्याय अलग-अलग इच्छित मनोकामना की सहर्श की पूर्ति करते हैं।
दुर्गासप्तशती के तेरह आध्यायों की महत्ता
प्रथम अध्याय:- इसके पाठ से सभी प्रकार की चिंता दूर होती हैं एवं शक्तिशाली से शक्तिशाली शत्रु का भी भय दूर होता है और शत्रुओं का नाश होता है।
द्वितीय अध्याय:- इसके पाठ से बलवान शत्रु द्वारा घर एवं भूमि पर अधिकार करने एवं किसी भी प्रकार के वाद-विवाद आदि में विजय प्राप्त होती है।
तृतीय अध्याय:- तृतीय अध्याय के पाठ से युद्ध एवं मुकदमें में विजय, श़त्रुओं से छुटकारा मिलता है।
चतुर्थ अध्याय:- इस अध्याय के पाठ से धन, सुंदर जीवनसाथी एवं मां की भक्ति की प्राप्ति होती है।
पंचम अध्याय:- पंचम अध्याय के पाठ से भक्ति मिलती है, भय, बुरे स्वप्नों और भूत प्रेत बाधाओं का निराकरण होता है।
छठा अध्याय:-‘ इस अध्याय के पाठ से समस्त बाधाएं दूर होती है और समस्त मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
सातवां अध्याय:- इस अध्याय के पाठ से हृदय की समस्त कामना अथवा किसी विशेष गुप्त कामना की पूर्ति होती है।
आठवां अध्याय:- अष्टम अध्याय के पाठ से धन लाभ के साथ वशीकरण प्रबल होता है।
नौवां अध्याय:- नवम अध्याय के पाठ से खोये हुए की तलाश में सफलता मिलती है, संपत्ति एवं धन का लाभ की प्राप्त होता है
दसवां अध्याय:- इस अध्याय के पाठ से गुमशुदा की तलाश होती है, शक्ति और संतान का सुख भी प्राप्त होता है।
ग्यारहवां अध्याय:- ग्यारहवें अध्याय के पाठ से किसी भी प्रकार की चिंता, व्यापार में सफलता एवं सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है।
बारहवां अध्याय:- इस अध्याय के पाठ से रोगों में छुटकारा, निर्भयता की प्राप्ति होती है एवं समाज में मान-सम्मान मिलता है।
तेरहवां अध्याय:- तेरहवें अध्याय के पाठ से माता की भक्ति एवं सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
मनुष्य जब तक जीवित है तब तक उसके जीवन में उतार चढ़ाव आते ही रहते हैं। मनुष्य की इच्छाएं अनंत होती है और इन्हीें की पूर्ति के लिए दुर्गा सप्तशती से सुगम और कोई भी मार्ग नहीं है। इसीलिए नवरात्रि में विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती के तरह अध्यायों का पाठ करने का विधान है। प्रतिदिन पाठ करने वाले मनुष्य एक दिन में पूरा पाठ न कर पाएं तो वे एक, दो , एक, चार, दो, एक और अध्यायों के क्रम में सात दिनों में पाठ पूरा कर सकते हैं। संपूर्ण दुर्गासप्तशती का पाठ न करने वाले मनुष्य को देवी कवच, अर्गलास्त्रोत, कीलकम का पाठ करके देवी सूक्तम को अवश्य ही पढ़ना चाहिए।

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