हमारे समाज में महुआ को कल्प वृक्ष माना जाता है।
ई गरीबवन के किसमिस- अनार सजनी,
असो आइल महुआ बारी में बहार सजनी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चैत्र मास में सुबह सुबह मन्द मकरंद फैलाने वाला महुआ (Madhuca longifolia) सपोटा कुल का एक प्रमुख सदस्य है । इसमें सूखा और विषम परिस्थितयां सहन करने की अद्वितीय क्षमता होती है, जिसका शायद ही कोई और फलदार वृक्ष बराबरी कर सके। लगभग 25 मी ऊंचाई तक पहुंच सकने वाले पर्णपाती पेड़ो की लकड़ी मजबूत और ईमारती होती है ।
पत्तियां पौष्टिक चारा होती हैं और इसके बड़े बीजों से औषधीय गुणों से युक्त तेल निकलता है जो खाद्य व सौन्दर्य के उपयोग में आता है । महुआ के फूलों का क्या कहना, शायद ही कोई इसका मुकाबला कर सके । मुलायम और रसदार फूल आधी रात के बाद से ही गिरने लगते हैं और सुबह होते तक जमीन पर एक अद्भुत छटा बिखेर देते हैं । पूरा वातावरण मीठी सुगंध से भर जाता है। सच कहें तो महुआ ही बसंत की बहार को धार देता है।
उत्तर और मध्य भारत के, विशेषकर सूखे क्षेत्रों के, गांवों और जनजातीय क्षेत्रों में फूलों को एकत्र कर और सुखाकर अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जाता है। महुआ के सूखे फूलों से मीठी मोटी रोटी/ पराठे बनाये जाते हैं । इसे गर्मकर और कूटकर स्वादिष्ट ‘लट्टा’ भी तैयार किया जाता है । दुधारू, बीमार और कमजोर पशुओं को अच्छी सेहत प्रदान करने में भी यह बहुत उपयोगी है । प्राचीन साहित्य में महुआ के फूलों से बननेवाली मदिरा का उल्लेख ‘माध्वी’ के रूप में भी मिलता है। वर्तमान में ‘महुआ’ देशी शराब का एक पर्याय भी है।
अपने अनगिनत गुणों के बावजूद भी आज महुआ बेहद उपेक्षित है। इसके नये बाग नहीं लग रहे हैं। सामाजिक और वन विभाग के रोपण में इसे पर्याप्त जगह नहीं मिला है। देश का शायद ही कोई शोधार्थी इसके प्रवर्धन, संरक्षण और किस्म विकास पर कार्य कर रहा हो, न जाने क्यों ?
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