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रामनगर की रामलीला में काशीराज के लिए पलके बिछाए डटे रहते थे लोग - श्रीनारद मीडिया

रामनगर की रामलीला में काशीराज के लिए पलके बिछाए डटे रहते थे लोग

रामनगर की रामलीला में काशीराज के लिए पलके बिछाए डटे रहते थे लोग

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श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी

वाराणसी / रामनगर की रामलीला इस बार भी नहीं हो रही है लेकिन चर्चा में रामलीला न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। आज कौन सी रामलीला होगी कितने बजे आरती होगी कौन आरती करता है तमाम किस्से रोज चर्चाओं में आम रहते हैं। अगर रामलीला होती तो मंगलवार को तीसरा दिन होता। यानी ताड़का वध अहिल्या अवतरण आदि की लीलाएं होती। आज भी याद है वह दौर जब मुस्लिम बहुल इलाकों को भी पूर्व काशीराज के आगमन का इंतजार रहता था। दरअसल ताड़का वध की लीला ऐसी होती है जब लीला अयोध्या से चलकर मुस्लिम बाहुल्य इलाके वारीगढही से होते हुए कब्रिस्तान जनकपुर पहुंचती है।

 

पूर्व काशी राजगीर हाथी पर सवार होकर जिला के साथ साथ चलते थे। वारी लड़ाई जैसे क्षेत्र के लिए यह विरल घटना होती थी जब पूर्व का शिराज स्वर्गीय विभूति नारायण सिंह इस क्षेत्र में पहुंचते थे। उनका स्वागत और अभिनंदन करने के लिए लोग शाम 4:00 बजें पलके बिछाए बैठे रहते थे। गलियों में व छतों पर इतनी भीड़ होती थी की तिल रखने की जगह भी नहीं रहती थी। जब पूर्व काशी राज इस इलाके से हाथी पर सवार होकर गुजरते थे वैसे ही हर हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष के साथ उनका जोरदार अभिनंदन होता था।

 

 

छतों से उन पर पुष्प वर्षा की जाती थी। जब से वह लीला स्थल नहीं पहुंच जाते थे तब तक हर हर महादेव हर हर महादेव का उद्घोष थमता नहीं था। ताड़का वध की लीला के बाद संध्या पूजन भी काशीराज इसी इलाके में करते थे। लेकिन दो चार साल बाद यह दृश्य आंखों से हमेशा के लिए ओझल हो गया। इसकी वजह बढ़ती आबादी मकानों का निर्माण और सबसे बड़ी वजह बिजली के तार बन गए। रामनगर की लीला तो आज भी उसी पारंपरिक रास्ते से होकर गुजरती है लेकिन कुंवर अनंत नारायण सिंह कार से दूसरे रास्ते होते हुए ताड़का वध लीला स्थल तक पहुंचते हैं। वारीगढ़ही और आसपास के लोगों को इस बात का मलाल रहता है कि वह शाही सवारी का स्वागत नहीं कर पाते हैं आज भी क्षेत्र में इसकी चर्चा जोरों पर है।

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