रामनगर में सिर्फ़ नामचीन खबरनवीसों को ही तबज्जों देते हैं प्रभारी साहब
श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी
वाराणसी / रामनगर थाने के नवागत प्रभारी सिर्फ़ नामचीन खबरनवीसों को ही महत्व देते हैं। बाकी खबरनवीस तो उनके लिए जैसे आम फरियादी के तौर पर हों, किसी छोटे समाचार पत्र का खबरनवीस यदि थाना प्रभारी से औपचारिकता के तौर पर उनसे मिलने जाता है तो सबसे साहब के कार्यालय के बाहर खड़ा संतरी ही उस खबरनवीस को रोक देता है कि अभी साहब किसी से बात कर रहे हैं। जबकि प्रभारी कार्यालय के बाहर से ही दिख जाता है कि साहब अपने किसी ख़ास मेहमान को लस्सी मंगा कर पीला रहे होते हैं। और बाहर खड़ा वो खबरनवीस तब तक खड़ा रहता है जब तक उनके ख़ास मेहमान चले नहीं गए। बहरहाल वो ख़बरनवीस अंदर प्रभारी महोदय को अपना परिचय देता है तो”पत्रकार”शब्द सुनते ही उन्होंने ऐसा मुंह बनाया मानों जैसे उनके पेट में कोई पीड़ा उठ रही हो।
पत्रकार भी उनके चेहरे के भाव देख कर आवाक रह गया, वो सोचने लगा कि ऐसा हमनें क्या कह दिया कि साहब के उदर में पीड़ा उठने लगी और साहब सिर्फ़ खानापूर्ति करते हुए ओके ठीक है कह कर अपने ऑफिस से बाहर निकल गए। जबकि रामनगर थाने का अब तक का इतिहास रहा है उन्नीस सौ चौरानब्बे में रामनगर थाने के ओमकार नाथ तिवारी रहे हों या फिर सन दो हज़ार में प्रदीप सिंह चंदेल रहें हों, चाहें दो हज़ार उन्नीस में अनूप शुक्ला रहें हों या फिर तत्कालीन थाना प्रभारी अश्वनी पांडेय रहें हों इन सभी लोगों ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को महत्व दिया है। चाहे वो छोटे से छोटे अख़बार का ख़बरनवीस क्यों न हों।
लेकीन ये नवागत थाना प्रभारी की तो बात ही जुदा है। ख़ैर ये उनकी अपनी अलग सोच हो सकती है शायद बड़े और नामचीन अख़बार ही उनकी पसंद हों। लेकीन यहां पर एक बात मैं जरुर कहना चाहुंगा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और मोनिका लेविंस्की प्रकरण को कोइ न्यूयॉर्क टाइम्स या वॉशिंगटन पोस्ट नहीं उठाया था बल्की वहां का एक छोटा सा अख़बार ही इस प्रकरण को इस क़दर उठाया कि वहां (अमेरिका) के महामहिम पर महाभियोग चलने की नौबत आ गई थी। लिहाज़ा हम तो ख़ामोश रहना ही बेहतर समझेंगे।