सीवान में हरिवंश जी ने पूछे कुछ सवाल, कब दिखायेंगे हम संजीदगी, उन सवालों के उत्तर सहेजने पर?
सीवान में पुस्तक विमोचन समारोह में प्रख्यात पत्रकार, राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश जी का संबोधन रहा बेहद सारगर्भित
शिक्षा में गुणवत्ता और नैतिकता से संबंधित हरिवंश जी के सवाल डिजिटल क्रांति के दौर में बन रहे बड़े सवाल
✍️ गणेश दत्त पाठक, सेंट्रल डेस्क, श्रीनारद मीडिया-
रविवार का दिन था। सीवान के गोपालगंज मोड़ स्थित अतिथिगृह और टाउन हॉल में बेहद गहमागहमी थी। स्वागत की धूम थी, प्रोटोकॉल की बानगी थी, रस्मों की रवानी थी। कार्यक्रम था पुस्तक विमोचन का। देश रत्न के गृह जिले में पधारे थे राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश जी। मूर्धन्य पत्रकार के तौर पर उनके लेखनी के विशिष्ट अंदाज से तो हम वाकिफ रहे हैं परंतु उनके विद्वतापूर्ण संबोधन प्रत्यक्ष रूप से सुनने का मेरा पहला अवसर था लेकिन यह अवसर उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार से केवल यादगार ही नहीं बना। बल्कि उनके विद्वतापूर्ण उद्बोधन ने मानस के तरंगों में उथल पुथल भी मचा दी।
श्री हरिवंश जी के संबोधन की शुरुआत बेहद रस्मी कलेवर में ही हुई। लेकिन संबोधन के क्रम में कुछ सवाल, उन्होंने ऐसे उठाए, जो सामान्य से थे। हर जगह चर्चा में भी रहते हैं। लेकिन उन सवालों पर चाहे वो राजनीतिक संस्कृति हो या प्रशासनिक प्रतिबद्धता, रस्म अदायगी ही उन सवालों की नियति रही है। अखबारों में और अन्य मीडिया के आयामों, राजनीतिक संस्कृति में, प्रशासनिक प्रक्रिया में, कितनी इन सवालों को जगह मिल पायेगी, पता नहीं! लेकिन ये सवाल मानस में चुभते दिखाई दिए।
हरिवंश जी के सवाल, उस नींद से जगा गए, जहां हम तो स्मार्ट क्लास, ऑनलाइन पढ़ाई, इंटरनेट के ज्ञान के विशाल समुद्र के सुनहरे डिजिटल आयामी सपने में खोए हुए थे। हरिवंश जी के सवाल उस तंद्रा को झकझोर गये, जो आरटीई और नई शिक्षा नीति के उज्जवल भविष्य की आस में गुम था। हरिवंश जी के सवाल भूत, वर्तमान और भविष्य की शिक्षा की भारतीय परंपरा को बेहद उत्सुक अंदाज में खंगालते दिखे। कार्यक्रम की भव्यता में हरिवंश जी के सवालों ने तालियां भी खूब बटोरी लेकिन उपस्थित राजनीतिक नेतृत्व और प्रबुद्धजन उस सवाल की आत्मा से कितना जुड़ पाए? यह सवाल एक बड़ा सवाल जरूर बन गया?
हरिवंश जी के सवाल थे कि तमाम संसाधनों की उपलब्धता के बीच हमारी शिक्षण व्यवस्था शिक्षा की गुणवत्ता के प्रति क्या सतर्क हैं? दूसरा सवाल यह था कि क्या शिक्षा प्रणाली में नैतिकता का अस्तित्व विद्यमान है?
हरिवंश जी के सवाल, तालियां जरूर बटोर रहे थे लेकिन मेरे मानस की तरंगों का हाल बुरा हो चला था। क्योंकि इन दो सवालों ने हमारी शैक्षणिक और तकनीकी बुलंदियों की हसरतों की मंजिल के बुनियाद की मजबूती को झकझोर दिया था। रस्म अदायगी के साथ पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का विधिवत समापन हुआ। लेकिन बड़ा सवाल यह भी कि हरिवंश जी के सवाल कितने लोगों की नींद उड़ाने में कामयाब हो पाए होंगे? सवाल यह भी कि हरिवंश जी के सवालों के बारे में कितने लोग चिंतन मनन कर पाए होंगे?
हरिवंश जी के सवालों पर गंभीर मंथन करना होगा, तभी हमारी शिक्षा प्रणाली के विडंबनापूर्ण स्वरूप के साक्षात दर्शन हो पाएंगे। हमारी शिक्षण व्यवस्था की खामियों का अंदाजा लग पायेगा। फिर एक बार बड़ा सवाल यह भी कि शिक्षा की गुणवत्ता और नैतिकता के मसले पर हम आखिर कब संजीदा होंगे?
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