भंडारे में श्रद्धा भोजन को सुस्वादु तो बनाती ही है सामाजिकता का भी श्रृंगार कर जाती है
सीवान के सोसाइटी हेल्पर ग्रुप टीम अनमोल द्वारा आयोजित भंडारे में सहभागिता ने कराया शानदार अहसास
✍️गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भोजन का स्वाद ही भोजन का श्रृंगार होता है। हर भोजन वैसे स्वादिष्ट ही होता है। लेकिन विभिन्न सनातनी धार्मिक आयोजनों के अवसर पर आयोजित होनेवाले भंडारे के दौरान वितरित होनेवाले प्रसाद के स्वाद का क्या कहना?
भंडारा सिर्फ सुस्वादु प्रसाद का वितरण ही नहीं होता। अपितु भंडारा कई संदेशों का द्योतक भी होता है। भंडारा सिर्फ प्रसाद का स्वाद नहीं बढ़ाता हैं। सामाजिक समरसता के भाव को भी प्रगाढ़ करता है। हर जाति के लोग चाहे वो कैसी भी आर्थिक स्थिति से लैस हो खड़े होकर हाथ फैलाकर प्रसाद मांगना। सिर्फ देवताओं के प्रति श्रद्धा भाव का प्रकटीकरण ही नहीं होता।अपितु प्रकटीकरण होता है सम भाव के संदेश का भी।
इन भंडारों में हम प्रसाद लेते समय, जहां श्रद्धा से परिपूर्ण होते है वहीं प्रसाद देने वाले भी श्रद्धा से ही परिपूर्ण होते हैं। श्रद्धा ऐसा तान छेड़ती है कि प्रसाद का स्वाद ही अदभुत हो जा उपता है और भोजन सुस्वादु हो जाता है।
इन भंडारों को आयोजित करने में लगे सामाजिक और धार्मिक सदन समाज के लोगों से ही संसाधन एकत्रित करते हैं फिर समाजजनों को ही प्रसाद वितरित करते हैं। प्रक्रिया चलती रहती है समाज की सेवा का क्रम भी चलता रहता है। हां इतनी अपेक्षा तो जरूर रहती है कि इन भंडारों में स्वच्छता और शुद्धता की व्यवस्था एक महत्वपूर्ण सामाजिक उत्तरदायित्व अवश्य होता है।
मंगलवार को सीवान के प्रसिद्ध सामाजिक संस्था सोसाइटी हेल्पर ग्रुप द्वारा आयोजित भंडारे में सहभागिता का अवसर मुझे भी मिला। अनमोल और सुशांत का सान्निध्य हो तो फिर क्या कहना? मेरा अनुभव भी शानदार ही था।
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