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प्रकृति के परिवर्तनकारी आयाम के संदर्भ में दिनकर ने राष्ट्र चिंतन को दिया ओजस्वी स्वर: गणेश दत्त पाठक

प्रकृति के परिवर्तनकारी आयाम के संदर्भ में दिनकर ने राष्ट्र चिंतन को दिया ओजस्वी स्वर: गणेश दत्त पाठक

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सीवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर के पुण्यतिथि पर किया गया श्रद्धा सुमन अर्पित

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

अपने लेखनी से सागर सी गर्जना करने वाले, सुकोमल स्नेह को सतरंगी श्रृंगार से सुसज्जित करनेवाले, प्रकृति के परिवर्तनकारी आयाम के संदर्भ में बौद्धिक चिंतन के नए आयाम को स्वर देने वाले राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने साहित्य के माध्यम से तार्किकता और ओजस्विता को वह स्वर दिया, जो आज तक अपनी प्रासंगिकता की सार्थकता को साबित करता दिख रहा है। उन्होंने विश्व की सारी समस्याओं का समाधान बुद्धिवाद को नहीं माना।

 

उनका मानना था कि अध्यात्म और धर्म ही समस्याओं के समाधान के कारक बन सकते हैं। उनके मत में धर्म ही सभ्यता का मित्र है। धर्म ही कोमलता है। धर्म ही शांति है। धर्म ही दया है। धर्म ही विश्व बंधुत्व है। आज के संदर्भ में वैश्विक समस्याओं के संदर्भ में यदि दिनकर जी के विचार पर ध्यान दिया जाए तो समाधान की अनंत किरणें भी दिखाई देंगी। ये बातें पाठक आईएएस संस्थान में रविवार को राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने कही।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि दिनकर की साहित्यिक रचनाओं में परिवर्तन के प्रति विशेष झुकाव दिखाई देता है। ब्रिटिश हुकूमत के दौर में अपनी ओजस्वी रचनाओं से राष्ट्रीय चेतना जागृत करने वाले दिनकर भी अपने विचारों में कालांतर में अंतराष्ट्रीय आयाम को समाहित कर ही ले गए।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि हिंदी साहित्य के अनेक दौर के साक्षी रहे दिनकर ने आलोचना के आयाम को भी एक तार्किक आधार दिया। आलोचना के इस तार्किक आधार ने हिंदी साहित्य के हर काल के लिए तार्किक कसौटी को व्यवहारिक संदर्भ दिया।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि हिंदी साहित्य में प्रेम भाव की अविरल धारा बहाने वाले दिनकर ने साहित्यप्रेमियों के मन को निर्मल बनाने में भी अप्रतिम योगदान भी दिया। उनकी ‘उर्वशी’ में बहती प्रेम की धारा साहित्यप्रेमियों के लिए सदियों तक अनुराग का आधार रहेगी।

श्री पाठक ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर की लेखनी जब हुंकार भरती है तो युवा मन उद्वेलित हो जाता है। राष्ट्रीय आंदोलन की बात हो या चीन के साथ जंग की घड़ी, दिनकर की लेखनी ने सदैव राष्ट्रीय चेतना को झंकृत और तरंगित किया। राष्ट्र की जीवंतता के संदर्भ में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का यह योगदान उन्हें विशिष्ट तौर पर सुप्रतिष्ठित करता है।

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