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डीप फेक के दौर में सार्वजनिक जागरूकता से ही बचेगा लोकतंत्र

डीप फेक के दौर में सार्वजनिक जागरूकता से ही बचेगा लोकतंत्र

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लोकसभा चुनाव 2024 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग ने लोकतंत्र के भविष्य की बड़ी चुनौती को किया उजागर

✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान इंटरनेट, सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो दिखाई दिए जो बेहद आश्चर्यचकित करने वाले थे। कभी कुछ बड़े नेता अपनी पार्टी से इस्तीफा देते देखे गए तो कभी किसी मृत नेता का वीडियो वायरल होता देखा गया। कुछ नेता ऐसे भाषण वीडियो में देते देखे गए कि जो सौ फीसदी झूठे थे। तमाम सुरक्षा उपायों के बाद भी ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए। यह करतूत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग के कारण सामने आई। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी डीप फेक के कुछ मामले सामने आए थे लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में तो डीप फेक के मामलों की बाढ़ आ गई।

इस तरह की समस्या अंतराष्ट्रीय स्तर की है। जिस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विस्तार हो रहा है। यदि यहीं गति रही तो भविष्य में चुनावों में गलत जानकारियां और बात इतनी हावी हो जायेगी कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का सपना अधूरा ही रह जायेगा और उसका दुष्प्रभाव लोकतंत्र पर पड़ेगा। ऐसे में सार्वजनिक जागरूकता का प्रसार ही हमारे लोकतंत्र की सुरक्षा कर सकता है।

क्या होता है डीप फेक

डीप फेक से सामान्य आशय कृत्रिम मीडिया से लगाया जाता है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर ऐसे वीडियो बनाए जाते हैं जिसमें छवि किसी प्रतिष्ठित राजनेता की होती है लेकिन आवाज नकली होती है। शक्तिशाली तकनीकों का इस्तेमाल कर डीप फेक में नजर और कान को धोखा देने वाले वीडियो और ऑडियो सामग्री उत्पन्न किया जाता है। उद्देश्य किसी राजनीतिक व्यक्तित्व की छवि को खराब करना या भ्रमपूर्ण या गलत संदेश का प्रचार करना रहता है।

डीप फेक का मामला सबसे पहले वर्ष 2017 में सामने आया जब सोशल मीडिया साइट ‘रेडिट’ (Reddit) पर ‘डीप फेक’ नाम के एक अकाउंट पर इसके एक उपयोगकर्त्ता द्वारा कई मशहूर हस्तियों की आपत्तिजनक डीप फेक तस्वीरें पोस्ट की गईं।वर्ष 2019 में अफ्रीकी देश ‘गैबाॅन गणराज्य’ में राजनीतिक और सैन्य तख्तापलट के एक प्रयास में डीप फेक के माध्यम से गलत सूचनाओं को फैलाया गया। भारत में 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान कुछ डीप फेक के मामले आए थे। 2024 में भारत में कई मामले सामने आए।

गलत सूचनाओं का प्रसार करता है डीप फेक

डीप फेक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संस्थाओं के प्रति लोगों में अविश्वास फैलाने के साथ लोकतंत्र को कमज़ोर करता है।
डीप फेक का प्रयोग चुनावों में जातिगत और धार्मिक आधार पर द्वेष और अन्य प्रकार की गलत सूचनाओं का प्रसार करता है, जो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये बड़ी चुनौती बन सकता है।
इसके माध्यम से चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के कुछ ही समय/दिन पहले विपक्षी दल या चुनावी प्रक्रिया के बारे में गलत सूचना फैलाई जा सकती है, जिसे समय रहते नियंत्रित करना और सभी लोगों तक सही सूचना पहुँचना बड़ी चुनौती होती है। डीप फेक के साथ सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि इसका पता चलते चलते हजारों लोगों तक गलत जानकारी पहुंच चुकी होती है।

डीप फेक को रोकने के प्रयास बेअसर

ऐसा नहीं है कि डीप फेक पर नकेल नहीं कसा जा रहा है। भारत में कई सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां फैक्ट चेकिंग कर रही है। ये एजेंसियां मीडिया और सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। डीप फेक का पता लगाने के लिए ट्रू मीडिया जैसे कई एआई फोरेंसिक सॉफ्टवेयर भी मौजूद हैं। इंजीनियर इस तरह के सॉफ्टवेयर को रिफाइन भी कर रहे हैं। भारत में इंटरनेट पर गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए देश में ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000’ तथा भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

साइबर अपराधों से निपटने के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ और‘केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के तहत ‘साइबर स्वच्छता केंद्र’ भी स्थापित है। तमाम प्रावधानों के बावजूद डीप फेक के मामले सामने आ रहे हैं। चुनाव के पूर्व सोशल मीडिया प्रोवाइडर ने डीप फेक को रोकने के प्रयास के दावे भी किए थे। परंतु डीप फेक के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि चाहे डीप फेक को रोकने के कितने भी प्रयास कर लिए जाएं, चाहे जो भी तकनीकी समाधान खोज लिया जाए, सभी उपाय डीप फेक के फैलने के बाद ही अमल में आते हैं। तब तक डीप फेक अपना नकारात्मक असर दिखा चुका होता है।

सार्वजनिक जागरूकता की जबरदस्त दरकार

आज जबकि सोशल मीडिया आम लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। इंटरनेट का प्रसार तीव्र गति से हो रहा है हर हाथ में एंड्रॉयड फोन आता जा रहा है तो बहुत जरूरी है कि सार्वजनिक जागरूकता के स्तर में सुधार लाया जाय। भारत के निर्वाचन आयोग जैसी संस्थाएं स्वीप प्रोग्राम के तहत ही डीप फेक के संबंध में जागरूकता अभियान चलाएं। स्कूल , कॉलेज आदि शैक्षणिक संस्थाओं, सामाजिक संस्थाओं और गैर सरकारी संगठनों द्वारा डीप फेक के बारे में आम जनता को जागरूक करने के हरसंभव प्रयास किए जाए।

आम जनता में इस मनोवृति का विकास जरूरी है कि किसी भी वीडियो और ऑडियो कंटेंट को देखकर तुरंत उसपर विश्वास न कर लिया जाय। आजकल सोशल मीडिया पर प्रतिदिन लाखों ऐसी खबरें प्रकाशित होती है जो गलत होती है। आम जनता को यह समझना आवश्यक है कि पहले प्रिंट मीडिया में किसी भी खबर पर हम विश्वास कर लिया कर लिया करते थे। ये खबरें संपादकीय प्रक्रिया से होकर हमारे तक पहुंचती थी। लेकिन आज के सोशल मीडिया के दौर में किसी भी वीडियो या ऑडियो कंटेंट पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि उसके फेक होने की शत प्रतिशत संभावनाएं होती हैं। इस अवधारणा के प्रसार के लिए हर संभव स्तर पर प्रयास करना चाहिए।

कुछ अन्य प्रयास भी हैं जरूरी

साथ ही कुछ अन्य प्रयास भी डीप फेक को रोकने के संदर्भ में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। जैसे ही किसी व्यक्ति को किसी डीप फेक को आशंका होती है तो उसके शिकायत की तत्काल व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जानी चाहिए। राजनीतिक दलों को भी अपने डिजिटल वार रूम में डीप फेक पर नजर रखने की व्यवस्थाएं बनानी चाहिए। चुनाव आयोग द्वारा ऐसी किसी भी जानकारी के संज्ञान में आने पर तत्काल कठोर करवाई सुनिश्चित किया जाना चाहिए। डीप फेक के कंटेंट को सोशल मीडिया से तत्काल हटाने की व्यवस्था को भी बनाया जाना आवश्यक है। एक टॉल फ्री नंबर या वेबसाइट होना चाहिए, जहां तत्काल डीप फेक के बारे में जानकारी दी जा सके।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तीव्र प्रगति के दौर में डीप फेक जैसी समस्याओं का आना ही है। लेकिन सार्वजनिक जागरूकता के स्तर को बढ़ाकर डीप फेक आदि के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सुचारू संचालन के लिए डीप फेक आदि से संबंधित चुनौतियों से मजबूती से मुकाबला करना होगा।

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