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भारतीय सैन्य अकादमी में 1971 में अकादमी से पासआउट हुए जांबाज जुटे।

भारतीय सैन्य अकादमी में 1971 में अकादमी से पासआउट हुए जांबाज जुटे।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) में 1971 बैच (48वें रेगूलर और 32वें टेक्नीकल एंट्री कोर्स) की गोल्डन जुबली रियूनियन आयोजित की गई। तीन दिवसीय कार्यक्रम में देशभर के 25 सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी व उनके परिवार के सदस्य आइएमए में जुटे। ये सभी सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी (तब जेंटलमैन कैडेट) 14 नवंबर 1971 को अकादमी से पास आउट हुए थे।

उन्होंने आइएमए स्थित युद्ध स्मारक पर विभिन्न युद्धों में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। वहीं, अकादमी के समादेशक ले. जनरल हरिंदर सिंह व अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने इन सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।

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पास आउट होने के बाद सीधे लिया था भारत-पाक युद्ध में भाग

नवंबर 1971 में पास आउट हुए इस बैच ने देश सेवा को समर्पित होने वाले कई सैन्य अधिकारी दिए। वैसे इस बैच में शामिल कैडेटों को दिसंबर में पास आउट होना था, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में भारत व पाकिस्तान के बीच बन रहे युद्ध जैसे हालातों को देखते हुए इन्हें पांच सप्ताह पहले ही पास आउट कर दिया गया। अकादमी से पास आउट होने के बाद इन्होंने सीधे भारत-पाक युद्ध में भाग लिया।

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दो सेकेंड लेफ्टिनेंट हो गए थे शहीद

पास आउट हुए इन अफसरों में से दो युवा अफसर सेकेंड लेफ्टिनेंट एमपीएस चौधरी और सेकेंड लेफ्टिनेंट आरएम नरेश दुश्मनों से मोर्चा लेते हुए शहीद हो गए थे। वहीं इस बैच से दो आर्मी कमांडर भी थलसेना को मिले हैं। इनमें ले. जनरल एसआर घोष और ले. जनरल वीके आहूवालिया शामिल हैं। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद इस बैच से पास आउट हुए अधिकारियों ने श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षा सेना व कारगिल युद्ध में भी अपना रण कौशल दिखाया था। इनके अदम्य साहस को देखते हुए कई अधिकारियों को वीरता पदक भी मिले हैं।

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सैन्य प्रशिक्षण के दौरान के लम्हों को किया याद

पचास साल बाद एक बार फिर अकादमी में एकजुट होकर इस बैच के सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों व उनके परिवार के सदस्यों के बीच खास उत्साह देखने को मिला। उन्होंने अपने सैन्य जीवन से जुड़े अनुभव साझा किए। साथ ही अकादमी में सैन्य प्रशिक्षण के दौरान के लम्हों को भी याद किया।

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अकादमी प्रबंधन को ‘बांग्लादेश लिबरेशन स्टैच्यू’ किया भेंट

इस दौरान उन्होंने अकादमी प्रबंधन को ‘बांग्लादेश लिबरेशन स्टैच्यू’ भी भेंट किया। 1971 के युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेनाओं की एतिहासिक विजय के पचास साल पूरे होने पर उन्होंने यह स्टैच्यू भेंट किया है, जिसे आइएमए की ट्रेनिंग एंड एडमिनिस्ट्रिेटिव बिल्डिंग के प्रांगण में स्थापित किया गया है। साथ ही गोल्डन जुबली काफी टेबल बुक ‘बैप्टाइज्ड इन टू बैटल’ का विमोचन भी इस दौरान किया गया। अकादमी के समादेशक ले. जनरल सिंह ने उन्हें अकादमी की मौजूदा सुविधाओं, संसाधनों व भविष्य में किए जाने वाले बदलावों की जानकारी दी।

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16 दिसंबर ही वह दिन था, जब पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने करीब 90 हजार सैनिकों के साथ भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जसजीत अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर हथियार डाल दिए थे। जनरल नियाजी के आत्मसमर्पण करने के साथ ही यह युद्ध भी समाप्त हो गया। इस दौरान जनरल नियाजी ने अपनी पिस्तौल जनरल अरोड़ा को सौंप दी।

देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) में रखी जनरल नियाजी की पिस्तौल आज भी भावी सैन्य अफसरों में जोश भरने का काम करती है। यूं तो भारतीय सेना का गौरवशाली इतिहास हमेशा से ही युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। आइएमए के म्यूजियम में रखीं 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध की ऐतिहासिक धरोहर और दस्तावेज भी युवा अफसरों को अपने गौरवशाली इतिहास और परंपरा को कायम रखने की प्रेरणा देते हैं।

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