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सांसदों के वेतन में वृद्धि और कर्मचारियों के वेतन में स्थिरता - श्रीनारद मीडिया

सांसदों के वेतन में वृद्धि और कर्मचारियों के वेतन में स्थिरता

सांसदों के वेतन में वृद्धि और कर्मचारियों के वेतन में स्थिरता

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल 2023 से पूर्वव्यापी प्रभाव से संसद सदस्यों (MP) के वेतन और पेंशन में 24% की वृद्धि की अधिसूचना जारी की है।

  • भारत रोज़गार रिपोर्ट (IER) 2024 में बढ़ते आर्थिक विभाजन को उज़ागर किया गया है, जो भारत की कार्यशील आबादी की वास्तविक आय में स्थिरता और गिरावट को दर्शाता है।

नोट: सांसदों का वेतन बढ़ाकर 1.24 लाख रुपए प्रति माह, दैनिक भत्ता 2,500 रुपए और पेंशन 31,000 रुपए प्रति माह कर दी गई।

सांसदों का वेतन कैसे संशोधित किया जाता है?

  • कानूनी ढाँचा: वर्ष 2018 से, सांसदों के वेतन और पेंशन को अलग से संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता के बजाय लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (CII) के आधार पर प्रति पाँच वर्ष में संशोधित किया जाता है।
    • यह समायोजन तंत्र वित्त अधिनियम, 2018 के तहत स्थापित किया गया था, जिसने संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन अधिनियम, 1954 में संशोधन किया था।
  • लागत मुद्रास्फीति सूचकांक: आयकर विभाग द्वारा आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 48 के तहत CII को प्रतिवर्ष अधिसूचित किया जाता है।
    • CII का उपयोग मुद्रास्फीति के आधार पर परिसंपत्तियों के क्रय मूल्य को समायोजित करने के लिये किया जाता है।
    • CII सूचीकरण (Indexation) में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि करदाताओं को समय के साथ परिसंपत्ति की कीमतों में वृद्धि के कारण दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (LTCG) पर अत्यधिक कर का भुगतान न करना पड़े।
    • वित्त वर्ष 2024-25 के लिये CII 363 है, जिसका अर्थ है कि वर्ष 2001 के आधार वर्ष (पहले 1981) के बाद से कीमतें 3.63 गुना बढ़ गई हैं, जिसका निश्चित मूल्य 100 है।

भारत में वेतन प्रवृत्तियों के बारे में IER 2024 क्या कहता है?

  • वेतन प्रवृत्तियाँ: नियमित वेतनभोगी श्रमिकों के लिये औसत वास्तविक वेतन वर्ष 2022 में 10,925 रुपए से घटकर वर्ष 2023 में 10,790 रुपए हो गया एवं औसत आकस्मिक वेतन 4,712 रुपए से घटकर 4,671 रुपए हो गया।
    • स्व-नियोजित व्यक्तियों की औसत आय वर्ष 2022 में 6,843 रुपए से बढ़कर वर्ष 2023 में 7,060 रुपए हो गई।
    • स्वरोज़गार और आकस्मिक कार्य में लगी महिलाओं की औसत आय में गिरावट आई, जबकि स्वरोज़गार में लगे पुरुषों की आय में नगण्य वृद्धि देखी गई।
  • रोजगार सृजन की गुणवत्ता: रिपोर्ट में कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ने के बावजूद वास्तविक वेतन में निम्न वृद्धि रोज़गार सृजन की कमज़ोर गुणवत्ता को दर्शाती है।

राजनीतिक वेतन में वृद्धि बनाम कर्मचारी वेतन में स्थिरता की चिंताएँ क्या हैं?

  • लोकतांत्रिक जवाबदेही का कमज़ोर होना: वर्ष 2022-23 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 1.72 लाख रुपए या लगभग 14,333 रुपए प्रति माह अनुमानित थी।
    • एक सेवानिवृत्त सांसद को अब औसत भारतीय आय से दोगुना से अधिक प्राप्त होता है, जबकि एक वर्तमान सांसद लगभग नौ गुना अधिक आय अर्जित करता है।
    • राजनीतिक नेताओं को पर्याप्त वेतन वृद्धि मिलने से आम जनता को स्वयं के वेतन में स्थिरता का अनुभव होगा जिससे जन साधारण में स्वार्थी शासन की धारणा विकसित हो सकती है।
      • इससे लोकतांत्रिक संस्थाओं की वैधता कमज़ोर हो सकती है, निर्वाचित पदाधिकारियों में जनता का विश्वास प्रभावित हो सकता है तथा शासक वर्ग और शासित वर्ग का अंतराल बढ़ सकता है।
  • शासन प्राथमिकताओं में विषमता: हालाँकि सांसदों के वेतन में वर्ष 2025 में 24% की वृद्धि की गई किंतु भारत का राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन (NFLMW) मात्र 176 रुपए प्रतिदिन (वर्ष 2017 से अपरिवर्तित) बना हुआ है और यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में निम्नतम है।
    • यह स्पष्ट विरोधाभास तात्कालिकता और प्राथमिकता में बेमेल को उजागर करता है, जो लोकतांत्रिक शासन की नैतिक विश्वसनीयता को प्रभावित करता है।
  • लोकलुभावनवाद को बढ़ावा: वेतन में स्थिरता, मुद्रास्फीति में वृद्धि (वर्ष 2024 में खाद्य मुद्रास्फीति 9.04%), और घरेलू बचत वित्त वर्ष 24 में सकल घरेलू उत्पाद के 5.3% पर निम्न होने के साथ मतदाताओं की राज्य के नेतृत्व वाली निःशुल्क योजनाओं पर निर्भरता तेज़ी से बढ़ रही है।
    • इन समस्याओं का निवारण किये बिना राजनेताओं के वेतन में वृद्धि किये जाने से दीर्घकालिक कल्याणकारी सुधारों की अपेक्षा अल्पकालिक लोकलुभावन राजनीति को बढ़ावा मिल सकता है।
  • समावेशी विकास लक्ष्यों की उपेक्षा: वेतन में असमानता “साझा समृद्धि” की अवधारणा के विपरीत है, जो सतत् विकास का प्रमुख लक्ष्य (SDG 10: समानीत असमता) है, और इससे विकास-समावेशी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की वैश्विक छवि धूमिल हो सकती है।
  • अनुपयुक्त सामाजिक संरक्षण अवसंरचना: भारत का परिदृश्य यूरोपीय संघ के विपरीत है, जो उचित न्यूनतम वेतन और वेतन संबंधी विवादों हेतु विधिक निवारण तंत्र का प्रावधान करता है।
    • भारत का न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 वर्तमान में भी संकीर्ण रूप से परिभाषित है (मुख्यतः भोजन/कैलोरी मानदंडों पर केंद्रित) जिसमें आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे अन्य आवश्यक पहलुओं हेतु व्यापक प्रावधान नहीं किये गए हैं तथा श्रमिकों के वेतन को नगण्य महत्त्व दिया गया है।

भारत वेतन-मुद्रास्फीति अंतराल को किस प्रकार कम कर सकता है?

  • प्रणालीगत सुधार की आवश्यकता: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग और 14वें वित्त आयोग जैसे विशेषज्ञों ने वेतन संशोधन को राजनीतिकरण से मुक्त करने तथा उन्हें आर्थिक निष्पादन के अनुरूप बनाने के लिये स्वतंत्र परिलब्धि आयोगों की अनुशंसा की है।
  • न्यूनतम वेतन को मुद्रास्फीति के अनुरूप सूचकांकित किया जाना: न्यूनतम वेतन को मुद्रास्फीति के अनुरूप सूचकांकित करने से मौजूदा वेतन में और कमी होने की समस्या का समाधान किया जा सकता है तथा स्थिर वास्तविक आय सुनिश्चित की जा सकती है।
    • आवधिक आधार संशोधन के साथ एक राष्ट्रीय वेतन सूचीकरण तंत्र का क्रियान्वन किया जा सकता है।
  • न्यूनतम मजदूरी से उचित मजदूरी की ओर बदलाव: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 43 के अनुरूप , स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और सामाजिक गतिशीलता को शामिल करने के लिये  “जीवन के सभ्य मानक” की परिभाषा का विस्तार करें ।
    • ILO के सभ्य कार्य एजेंडा (जिसका उद्देश्य रोज़गार सृजन के माध्यम से उत्पादक रोज़गार और सभ्य कार्य को बढ़ावा देना है) और यूरोपीय संघ के उचित वेतन ढाँचे के साथ भारत की नीतियों को संरेखित करने की आवश्यकता है।
  • डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से अनुपालन: विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में वेतन अनुपालन की निगरानी के लिये ई-श्रम पोर्टल, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) डेटाबेस और वास्तविक समय में रिपोर्टिंग टूल का पूर्णतम उपयोग किया जाना चाहिये।
  • वेतन में समानता हेतु 8वाँ वेतन आयोग: 8वें वेतन आयोग को संतुलित आय संरचना के उद्देश्य से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के वेतन रुझानों को दृष्टिगत रखते हुए सरकारी वेतन को मुद्रास्फीति और आर्थिक स्थितियों के अनुरूप निर्धारित करना चाहिये।
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