Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का कारण है। - श्रीनारद मीडिया

महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का कारण है।

महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का कारण है।

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

विश्व सागर दिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महासागर इस दुनिया में मनुष्य के जीवित रहने का एक प्रमुख कारण है। महासागर हमें पीने के लिए पानी और सांस लेने के लिए ताजी हवा प्रदान करता है। इसलिए महासागर प्रदूषण का मुद्दा महत्वपूर्ण है। हम अपने जीवन में बहुत कुछ महासागर पर निर्भर हैं। महासागर प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। हमारे महासागरों में कचरा जमा हो रहा है लेकिन सवाल यह है कि कचरा कहाँ से आ रहा हैं।

आज जब विश्व की कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत तटीय क्षेत्रों में निवास करता है तो ऐसी स्थिति में महासागर उनके लिए खाद्य पदार्थों का प्रमुख स्रोत साबित हो सकते हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारण महासागर अत्यंत उपयोगी हैं। पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व यहां उपस्थित वायुमंडल और महासागरों जैसे कुछ विशेष कारकों के कारण ही संभव हो पाया है। अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ ही महासागर अपने अंदर व आसपास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रों को पनाह देते हैं। जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु व वनस्पतियां पनपती हैं।

वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का प्रभाव समुद्रों पर भी दिखाई देने लगा है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में दिनों-दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जहां तटीय क्षेत्र विशेष कर नदियों के मुहानों पर सूर्य के प्रकाश की पर्याप्तता के कारण अधिक जैव-विविधता वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाते थे। वहीं अब इन क्षेत्रों के समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से वहां जीवन संकट में हैं। तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण एवं समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुंच पाता है। जिससे वहां जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैव-विविधता भी प्रभावित होती है।

हर साल जून 8 को दुनिया भर में विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। 1987 में ब्रंटलैंड की एक रिपोर्ट में टिप्पणी की गयी थी की विश्व के जो महासागर हैं उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसी रिपोर्ट से प्रेरित होकर कनाडा ने विश्व महासागर दिवस मानाने का प्रस्ताव रखा। 1992 में कनाडा के इंटरनेशनल सेंटर फॉर ओशन डेवलपमेंट ने इस दिवस को मानाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन अर्थ समिट में रखा था। 8 जून 2009 को पहला विश्व महासागर दिवस मनाया गया। इसके बाद से प्रतिवर्ष 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। हर साल विश्व महासागर दिवस के अवसर पर विश्व में महासागर से जुड़े विषयों पर विभिन्न आयोजन किए जाते हैं। जो महासागर के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के प्रति जागरूकता पैदा करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

महासागर हमारी पृथ्वी पर न सिर्फ जीवन के प्रतीक है बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी प्रमुख भूमिका अदा करते है। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है। महासागरो में  असीम जैव विविधता का भंडार समाया है। पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है। पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग 97 प्रतिशत जल महासागरों में समाया हुआ है। महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाए तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे।

महासागर खाद्य पदार्थों का एक प्रमुख स्रोत होने के कारण हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। आज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से महासागरों से पेट्रोलियम सहित अनेक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को निकाला जा रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन सहित अनेक मौसमी घटनाओं को समझने के लिए समुद्रों का अध्ययन भी महत्वपूर्ण है। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति महासागरों में ही हुई है। आज भी महासागर जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों को बनाए रखने में सहायक हैं। महासागर पृथ्वी के एक तिहाई से अधिक क्षेत्र में फैले हैं। इसलिए महासागरीय पारितंत्र में थोड़ा सा परिवर्तन पृथ्वी के समूचे तंत्र को अव्यवस्थित करने का सामर्थ्य रखता है।

प्रशांत महासागर पृथ्वी पर सबसे बड़ा महासागर है। पृथ्वी की सतह का यह लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा है। इस महासागर की गहराई 35 हजार फुट और इसका आकार ट्राईगल यानि त्रिभुजाकार है। प्रशांत महासागर में करीब 25,000 द्वीप हैं। अटलांटिक महासागर क्षेत्रफल और विस्तार की दृष्टि से दुनिया का दूसरे सबसे बड़ा महासागर है। इसके पास पृथ्वी का 21 प्रतिशत से अधिक भाग है। अटलांटिक महासागर का आकार अंग्रेजी के 8 की संख्या के जैसा है। इस महासागर की कुछ वनस्पतियां खुद से चमकती हैं क्योंकि यहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती।

हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है। यह धरती का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा है। हिंद महासागर को रत्नसागर नाम से भी जाना जाता है। हिन्द महासागर इकलौता ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है। अंटार्कटिका महासागरों में चैथा सबसे बड़ा महासागर है। इस महासागर को ऑस्ट्रल महासागर के नाम से भी जाना जाता है। इस महासागर में आइसबर्ग तैरते हुए देखे जाते हैं। अंटार्कटिका की बर्फीली जमीन के अंदर 400 से भी अधिक झीलें हैं। आर्कटिक महासागर पांच महासागरों में सबसे छोटा और उथला महासागर है। इसे उत्तरी ध्रुवीय महासागर भी कहते हैं। सर्दियों में यह महासागर पूर्णतः समुद्री बर्फ से ढका रहता है।

महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागरों में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागरो में जस का तस पड़ा रहता है। अकेले हिंद महासागर में भारतीय उपमहाद्वीप से पहुंचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्रा प्रतिवर्ष करोड़ों टन है। विषैले रसायनों के रोजाना मिलने से समद्री जैव विविधता भी प्रभावित होती है। इन विषैले रसायनों के कारण समुद्री वनस्पति की वृद्धि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले परितंत्रों में महासागर की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम महासागरीय पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।

अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ महासागर अपने अंदर व आस-पास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रो को पनाह देते हैं। जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव व वनस्पतियां पनपती हैं। इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में स्थित मैन्ग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हुए विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। महासागरों में पृथ्वी का सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर सूक्ष्म जीव भी मिलते हैं। एक अनुमान के अनुसार केवल महासागर के अंदर करीब दस लाख प्रजातियां उपस्थित हो सकती हैं।

हम सांस लेने के लिए जिस ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं। उसकी दस फीसद मात्रा हमें समुद्र से ही प्राप्त होती है। समुद्र में मौजूद सूक्ष्म वैक्टीरिया ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं जो पृथ्वी पर मौजूद जीवन के लिए बेहद जरूरी है। समुद्र में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की वजह से ये वैक्टीरिया पनप नहीं पा रहे हैं। जिसके कारण समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा भी लगातार घट रही है। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो यह पशु-पक्षियों के साथ-साथ इंसानों के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बन सकता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!