भारत ने एशियाई खेलों में पदकों का नया रिकॉर्ड बना दिया है,कैसे?

भारत ने एशियाई खेलों में पदकों का नया रिकॉर्ड बना दिया है,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

खेलों में ही वह सामर्थ्य है कि वह देश एवं दुनिया के सोये स्वाभिमान को जगा देता है, क्योंकि जब भी कोई अर्जुन धनुष उठाता है, निशाना बांधता है तो करोड़ों के मन में एक संकल्प, एकाग्रता एवं अनूठा करने का भाव जाग उठता है और कई अर्जुन पैदा होते हैं। अनूठा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी माप बन जाते हैं और जो माप बन जाते हैं वे मनुष्य के उत्थान और प्रगति की श्रेष्ठ, सकारात्मक एवं अविस्मरणीय स्थिति है।

भारत की अनेकानेक अनूठी एवं विलक्षण उपलब्धियों के बीच चीन के हांगझू में आयोजित 19वें एशियाई खेलों में भारत एवं उसके खिलाड़ियों ने जिस तरह अपने पिछले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को पीछे छोड़ते हुए 83 पदक अर्जित कर लिए, वह न केवल भारत के खिलाड़ियों बल्कि हर युवा के मन और माहौल को बदलने का माध्यम बनेगा, ऐसा विश्वास है। शतक पदकों की ओर बढ़ने की गौरवपूर्ण स्थिति से भारत में नयी ऊर्जा का संचार होगा, इससे नया विश्वास, नयी उम्मीद एवं नयी उमंग जागेगी। इसके पहले जकार्ता में आयोजित एशियाई खेलों में भारत को कुल 70 पदक मिले थे।

एशियाड में भारत के ऐतिहासिक, अनूठे एवं अविस्मरणीय प्रदर्शन का जारी रहना सुखद, गर्व एवं गौरव का विषय है। बुधवार को भारत ने एशियाई खेलों में 70 पदक जीतने का अपना पूर्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए पदक-यात्रा को नए कीर्तिमान की ओर अग्रसर किया है। भारतीय खिलाड़ियों द्वारा किया गया प्रदर्शन खेल-भाल पर लगे अक्षमता के दाग को धो दिया है। हमारे देश में यह विडंबना लंबे समय से बनी है कि दूरदराज के इलाकों में गरीब परिवारों के कई बच्चे अलग-अलग खेलों में अपनी बेहतरीन क्षमताओं के साथ स्थानीय स्तर पर तो किसी तरह उभर गए, लेकिन अवसरों और सुविधाओं के अभाव में उससे आगे नहीं बढ़ सके।

लेकिन इसी बीच एशियाड में कई उदाहरण सामने आए, जिनमें जरा मौका हाथ आने पर उनमें से हर खिलाड़ी ने दुनिया से अपना लोहा मनवा लिया। अनेक खिलाड़ी हैं, जिन्होंने बहुत कम वक्त के दौरान अपने दम से यह साबित कर दिया कि अगर वक्त पर प्रतिभाओं की पहचान हो, उन्हें मौका दिया जाए, थोड़ी सुविधा मिल जाए तो वे दुनिया भर में देश का नाम रोशन कर सकते हैं। अब हमारे पास ऐसे अनेक नाम हैं जिन्होंने स्वर्णिम इतिहास रचा है, जबकि पहले ऐसे नामों का अभाव था, कुछ ही नाम थे जिनको दशकों से दोहराकर हम थोड़ा-बहुत संतोष करते रहे हैं, फिर चाहे वह फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह हों या पीटी उषा।

19वें एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने भारत का मस्तक ऊंचा करने वाला प्रदर्शन किया है, जिसका असर भारतीय खेल तंत्र ही नहीं बल्कि आम जनजीवन पर गहरे पड़ने वाला है। पदकों के कीर्तिमान देश के बच्चों और युवाओं में अनूठा करने के संकल्पों को आसमानी ऊंचाई देगा। विशेषतः युवतियों एवं बालिकाओं को हौसला मिलेगा। क्योंकि एशियाई खेलों में लड़कियों का प्रदर्शन बुलन्द रहा, स्वागत योग्य है।

निश्चित ही पदक विजेता महिला खिलाड़ियों की सोच भीड़ से अलग थी और यह सोच एवं कृत जब रंग दिखा रहा थी तो इतिहास बन रहा था। अनेक महिला खिलाड़ी पहली बार दुनिया की नजरों में आई और बन गई हैं हर किसी की आंखों का तारा। अपने प्रदर्शनों एवं खेल प्रतिभा से दुनिया को चौंका दिया है। भारत के गांव-देहात की लड़कियों ने भी चीन के हांगझोउ में झंडे गाड़ दिए हैं। लंबी दौड़, भाला फेंक, तलवारबाजी, टेबल टेनिस इत्यादि ऐसे खेल हैं, जिनमें लड़कियों ने भारत के लिए एक नई शुरुआत की है।

स्वर्ण पदक जीतने वाली लड़कियों में वह अनु रानी भी शामिल हैं जो अपने गांव में खेती में गन्ने को भाला बनाकर फेंका करती थीं। उन्हें जब सुविधा मिली तो उन्होंने विश्व स्तर पर कमाल कर दिखाया। बिल्कुल जमीन से उठी अनु रानी और पारूल चौधरी जैसी खिलाड़ियों की वीरगाथा जब लोगों की निगाह में आती है तो पुरुषार्थ के नए लक्ष्य खड़े होते हैं। पारूल चौधरी तो अपने गांव की टूटी-फूटी सड़क पर भी दौड़ा करती थीं, पर जब परिवार ने प्रोत्साहित किया, तब वह एशियाड में 5,000 मीटर दौड़ में स्वर्ण ले आई।

खेलों में खास करने का यह निर्णायक मोड़ जकार्ता 2018 से आया है। पदकों की जो बढ़त भारत ने हासिल की है, उसे आगे थमने नहीं देना चाहिए। ध्यान रहे, चीन अकेले ही 165 से भी ज्यादा स्वर्ण जीत चुका है। जापान और कोरिया भी कुल 150-150 पदकों के करीब पहुंच गए हैं। मतलब, आगे हमारा रास्ता लंबा है, चुनौतीपूर्ण है, हमें ज्यादा तेज चलना होगा। भले ही भारत पदक तालिका में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से पीछे है लेकिन एशिया में चौथी बड़ी खेल शक्ति के रूप में उभरना भी एक उपलब्धि है। इस उभार का एक प्रमाण यह है कि हांगझू में भारतीय खिलाड़ियों ने एक ही दिन में 15 पदक जीते। इसी तरह कुछ खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने पहले और दूसरे दोनों स्थानों पर कब्जा किया यानी स्वर्ण के साथ रजत पदक भी जीता।

राष्ट्रीयता की भावना एवं अपने देश के लिये कुछ अनूठा और विलक्षण करने के भाव ने ही एशियाड में भारत की साख को बढ़ाया है। एशियाई खेलों में विजयगाथा लिखने को बेताब खिलाड़ी, विशेषतः देश की बेटियां, अभूतपूर्व सफलता का इतिहास रचकर भारत की दो सौ अस्सी करोड़ आंखों में तैर रहे भारत को अव्वल बनाने के सपने को जीत का हार पहनाया है जो निश्चित ही रोमांचित एवं गौरवान्वित करने वाला है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!