भारत यूरोप में ईंधन का प्रमुख सप्लायर बनता जा रहा है। कोरोना महामारी के दौरान यूरोप की ऑयल रिफाइनरी के बंद होने और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत को यूरोप में ईंधन सप्लाई का मौका मिला। रूस से सस्ते दाम पर कच्चे तेल की खरीदारी और फिर उसे विभिन्न वाहनों के लिए उपयुक्त ईंधन में बदल कर भारत पेट्रोलियम उत्पाद का एक निर्यातक बन गया है। यही वजह है कि वस्तुओं के निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत से अधिक हो गई है।
नीदरलैंड, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे जैसे देश खरीदारी कर रहे
पांच साल पहले यह हिस्सेदारी 12 प्रतिशत के पास थी। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल-सितंबर में भारत का वस्तु निर्यात 213 अरब डॉलर का रहा और इनमें 36.5 अरब डॉलर का निर्यात पेट्रोलियम पदार्थों का रहा। पिछले तीन सालों में नीदरलैंड, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे जैसे देश प्रमुख रूप से पेट्रोलियम उत्पादों की खरीदारी कर रहे हैं।
पेट्रोलियम पदार्थों की वजह से ही यूरोप के कई देशों में भारत के निर्यात में बढ़ोतरी दिख रही है। यूरोप के देशों के साथ भारत सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, यूएई, आस्ट्रेलिया जैसे देशों को भी पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात कर रहा है।
नीदरलैंड भारत के पहले पांच निर्यात बाजार में शामिल
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत से नीदरलैंड होने वाले निर्यात में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी पेट्रोलियम उत्पादों की है। नीदरलैंड भारत के पहले पांच निर्यात बाजार में शामिल हो गया है। वैसे ही ब्रिटेन होने वाले कुल निर्यात में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी पेट्रोलियम उत्पादों की है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल-जुलाई में ऑटोमोटिव डीजल फ्यूल का फ्रांस होने वाले निर्यात में 883 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
ऑटोमोटिव डीजल फ्यूल के साथ हवाई जहाज व मोटर वाहन में इस्तेमाल होने वाले ईंधन, हाई स्पीड डीजल, केरोसिन प्रमुख रूप से शामिल हैं।वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने यूरोप में 5.9 अरब डॉलर के पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया था जो पिछले वित्त वर्ष 20 अरब डॉलर को पार कर गया। विभिन्न वैश्विक एजेंसियों के मुताबिक यूरोप में होने वाले कुल पेट्रोलियम आयात में भारत की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत है। अमेरिका और सऊदी अरब की हिस्सेदारी क्रमश: 21 और 17 प्रतिशत है।
भारत रूस से सस्ते दाम पर कच्चे तेल का बड़ा खरीदार बन गया
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर अमेरिका व प्रमुख यूरोपीय देशों की पाबंदी के बाद भारत रूस से सस्ते दाम पर कच्चे तेल का बड़ा खरीदार बन गया। कच्चे तेल की खरीदारी के लिए सऊदी अरब, यूएई, इराक जैसे देशों पर निर्भर भारत अब लगभग 40 प्रतिशत कच्चे तेल की खरीदारी रूस से कर रहा है।
वित्त वर्ष 2023-24 में वित्त वर्ष 2022-23 के मुकाबले रूस से कच्चे तेल के आयात में 49 प्रतिशत का इजाफा हुआ। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अप्रैल-जुलाई के दौरान रूस से होने वाले कच्चे तेल के आयात में 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी है।भारत ने मौजूदा समय में सऊदी अरब (Saudi Arabia) को पछाड़कर यूरोप का सबसे बड़ा रिफाइनड फ्यूल सप्लायर (Refined Fuel Supplier) बन गया है। यह जानकारी उद्योग के सूत्रों से मिली है, जिसमें बताया गया है कि भारतीय रिफाइनरियों से यूरोपीय देशों को ईंधन की निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
भारतीय रिफाइनरीज़ ने उच्च गुणवत्ता वाले पेट्रोल-डीजल और अन्य रिफाइनड उत्पादों की सप्लाई में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की है, जिससे उन्हें सऊदी अरब को पीछे छोड़ने का मौका मिला। भारत की यह उपलब्धि वैश्विक ऊर्जा बाजार में उसकी बढ़ती ताकत को दर्शाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की यह स्थिति आने वाले समय में और मजबूत हो सकती है, क्योंकि यूरोप में ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। भारत की रिफाइनरीज़ की क्षमता और प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता ने इसे एक प्रमुख सप्लायर के रूप में स्थापित किया है। इस विकास से भारत को न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि यह उसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक संबंधों को भी मजबूत बनाने का अवसर प्रदान करेगा।
रूसी तेल पर नए पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनजर, भारत से यूरोप का परिष्कृत तेल आयात 360,000 बैरल प्रतिदिन से अधिक होने की उम्मीद है, जिससे वैश्विक ऊर्जा व्यापार मार्गों में महत्वपूर्ण बदलाव आएगा। सऊदी अरब दुनिया के अग्रणी तेल उत्पादकों में से एक है और दशकों से तेल व्यापार में प्रमुख स्थान बनाए रखा है। हालांकि, यूरोपीय बाजार से रूस के बाहर निकलने के साथ, महाद्वीप अपनी ईंधन आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए नए विकल्पों की तलाश कर रहा है।
रूस-यूक्रेन संघर्ष से पहले, यूरोप भारतीय रिफाइनर से प्रतिदिन औसतन 154,000 बैरल तेल आयात करता था। यूरोपीय संघ द्वारा 5 फरवरी को रूसी तेल पर प्रतिबंध लागू करने के बाद यह संख्या बढ़कर 200,000 बैरल प्रतिदिन हो गई। केपलर का अनुमान है कि अगले साल अप्रैल तक भारत का रूसी तेल का आयात 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन से अधिक हो सकता है, जो भारत के कुल तेल आयात का 44% है, जैसा कि रिपोर्ट बताती है। प्रधानमंत्री मोदी ने यूरोपीय देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे भारत को एक भरोसेमंद ऊर्जा भागीदार के रूप में स्थापित किया जा सके। इसमें ऊर्जा व्यापार को बेहतर बनाने के उद्देश्य से द्विपक्षीय वार्ता में सक्रिय भागीदारी शामिल है।
भारत, खासकर पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद, 60 डॉलर प्रति बैरल से कम की रियायती दरों पर रूसी कच्चे तेल को खरीदने में सक्षम रहा है। इसने भारतीय रिफाइनरियों को कच्चे माल की सोर्सिंग में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान की है।”जब दुनिया ईंधन की चुनौती का सामना कर रही थी, तब आपके समर्थन ने हमें भारत में लोगों की पेट्रोल और डीजल की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद की। इतना ही नहीं, दुनिया को यह स्वीकार करना चाहिए कि ईंधन के संबंध में भारत-रूस समझौते ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थिरता लाने में बड़ी भूमिका निभाई है।”