भारत दो बच्चा नीति को लागू करने के हक में नहीं,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दुनिया का दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला देश भारत अपने विशाल मानव संसाधन को अपनी सबसे कीमती पूंजी मानता रहा है। दुनिया का यह सबसे युवा देश मानता है कि अगर हर हाथ को कुशल बनाया जाए और उसे काम दिया जाय, तो हम दुनिया पर राज कर सकते हैं। यह बात सच भी होती दिखती है। एक तरफ दुनिया के तमाम देश कुशल मानव संसाधन की किल्लत झेल रहे हैं,
तो भारतीय वहां पहुंचकर उस देश की न सिर्फ बुनियाद मजबूत कर रहे हैं, बल्कि स्वदेश का नाम भी रोशन कर रहे हैं। इस सोच और समझ से इतर एक तबका ऐसा भी है जो ज्यादा आबादी को संसाधनों पर बोझ समझता है। यानी किसी देश के पास कितने ही ज्यादा संसाधन हों, लेकिन अगर उसके पास आबादी बहुत बड़ी है, तो प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से अंशमात्र संसाधन ही आएंगे।
दशकों से भारत इस समस्या से दो-चार होता आ रहा है लेकिन हाल ही में कोविड महामारी के दौरान चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने के मामले में ये तस्वीर बहुत साफ-सी देखी गई। तो क्या किसी देश की आबादी उसके संसाधनों के एक निश्चित अनुपात से तय की जानी चाहिए? या फिर आबादी के हिसाब से संसाधन बढ़ाने की जरूरत है? बढ़ती आबादी को रोकने के लिए चीन ने कुछ दशक पहले एक बच्चा नीति अपनाई।
अब जब बुढ़ाती जनसंख्या और कार्यशील लोगों की कमी दिखी तो उसने दो बच्चा नीति लागू की और अब लोगों को तीन बच्चों के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। लोगों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें और उनकी देश के संसाधन में हिस्सेदारी बढ़ाई जा सके, इस बात को ध्यान में रखते हुए हाल ही में देश के दो प्रदेशों असम और उत्तर प्रदेश में दो बच्चा नीति को लेकर हलचल हुई है। इसने एक चर्चा छेड़ी है कि क्या दो बच्चा नीति भारत की जनसांख्यिकीय के बेहतर इस्तेमाल की कुंजी है।
केंद्र सरकार ऐसी किसी नीति को लागू करने के हक में नहीं है। उसका तर्क है कि परिवार सीमित रखना किसी व्यक्ति का ऐच्छिक मसला है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि भारत की अभी जो कुल प्रजनन दर है वह आबादी का सिर्फ रिप्लेसमेंट कर पा रही है। लिहाजा 2050 में पीक पर जाने के बाद हमारी जनसांख्यिकीय की तस्वीर भी आज के चीन जैसी हो सकती है। ऐसे में भारतीय जनसांख्यिकीय के परिप्रेक्ष्य में दो बच्चा नीति की प्रासंगिकता की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
चीन का यू टर्न
सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन ने 2015 में एक बच्चा नीति से तौबा करते हुए दंपतियों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी थी। हालांकि, तेजी से बुढ़ाती आबादी और गिरती जन्म दर के चलते अब तीन बच्चों की नीति को मंजूरी दी गई है। एक बच्चा नीति से 2017 में प्रजनन दर 1.6 बच्चे प्रति महिला हो गई थी।
बुजुर्गों की 10 फीसद से अधिक हिस्सेदारी
जनसंख्या में तेज वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए चीन ने 1979 में एक बच्चा नीति लागू की। नीति बहुत ही प्रभावी तरीके से लागू की गई, लेकिन जल्द ही इसका दुष्परिणाम दिखने लगा। कुल आबादी में 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की हिस्सेदारी 2010 में 13.26 फीसद से बढ़कर 2020 में 18.70 फीसद जा पहुंची। साल 2000 में 15-59 साल आयुवर्ग की हिस्सेदारी 22.9 फीसद थी, 2020 में गिरकर 9.8 फीसद रह गई।
बिगड़ा लिंगानुपात
लैंगिक अनुपात को बिगाड़ने में भी इस नीति ने बहुत अहम भूमिका निभाई। चूंकि वहां के लोगों को एक ही बच्चा पैदा करने की अनुमति थी, और लड़के की चाहत ने कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया। 2016 में चीन का लिंगानुपात 1.15 लड़के पर एक लड़की का हो चुका था। यह दुनिया के सबसे असंतुलित लिंगानुपात में से एक था।
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