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भारत गर्मी हेतु संवेदनशील देशों में से एक है,कैसे? - श्रीनारद मीडिया
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भारत गर्मी हेतु संवेदनशील देशों में से एक है,कैसे?

भारत गर्मी हेतु संवेदनशील देशों में से एक है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में ‘हीट इंडेक्स/ताप सूचकांक’ चेतावनी प्रणाली शुरू करने की योजना बना रहा है।

IMD के हालिया अध्ययन:  

  • IMD ने हीट वेव पर मौसम संबंधी कारकों के प्रभाव और देश के “हीट वेव आपदा क्षेत्र” पर एक अध्ययन किया है।
  • हॉट वेदर एनालिसिस ओवर इंडिया” के अनुसार, IMD ने विश्लेषण किया कि जिस तंत्र से गर्मी मानव को प्रभावित करती है, वह जटिल है। यह तापमान, विकिरण, वायु और आर्द्रता के बीच परस्पर क्रियाओं का परिणाम है।
    • इस बात के मज़बूत प्रायोगिक प्रमाण हैं कि यदि आर्द्रता अधिक है तो उच्च तापमान से मानसिक तनाव अधिक होता है। 

प्रस्तावित हीट इंडेक्स:

  • परिचय: 
    • हीट इंडेक्स तापमान के साथ-साथ आर्द्रता के स्तर की गणना करेगा ताकि इसकी उष्णता का अधिक सटीक अनुमान प्रदान किया जा सके।
    • अमेरिका में हीट इंडेक्स के प्रभाव के आधार पर चेतावनी प्रदान करने हेतु इसे कलर-कोडेड किया गया है।
      • IMD भारत में एक समान कलर-कोडेड चेतावनी प्रणाली (Similar Color-coded Warning System) शुरू करने की योजना बना रहा है।
  • महत्त्व:
    • हीट इंडेक्स मानव स्वास्थ्य के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
      • शरीर के बहुत अधिक गर्म होने पर पशीना निकलता है जिसके माध्यम से  शरीर स्वयं के तापमान को नियंत्रित करता है। यदि पसीना वाष्पित नहीं हो पाता है, तो शरीर अपने तापमान को नियंत्रित नहीं कर पाता है। वाष्पीकरण एक शीतलन प्रक्रिया है। जब पसीना शरीर से वाष्पित हो जाता है, तो यह प्रभावी रूप से शरीर के तापमान को कम कर देता है।
      • जब वायुमंडलीय नमी की मात्रा (अर्थात् सापेक्ष आर्द्रता) अधिक होती है, तो शरीर से वाष्पीकरण की दर कम हो जाती है। मानव शरीर नम परिस्थितियों में गर्म महसूस करता है। इसके विपरीत सत्य यह है कि तब सापेक्ष आर्द्रता घट जाती है क्योंकि पसीने की दर बढ़ जाती है। शरीर वास्तव में शुष्क परिस्थितियों में ठंडा महसूस करता है।
    • हवा के तापमान एवं सापेक्ष आर्द्रता तथा ताप सूचकांक के मध्य सीधा संबंध है, जिसका अर्थ है कि हवा का तापमान और सापेक्ष आर्द्रता में वृद्धि (कमी) होती है, हीट इंडेक्स बढ़ता है (घटता है)।

हीटवेव: 

  • हीटवेव असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि को संदर्भित करता है, भारत में मई-जून के महीनों के दौरान यह एक सामान्य घटना है और कुछ दुर्लभ मामलों में यह जुलाई तक भी बढ़ जाती है।
  • जब किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी क्षेत्रों के लिये कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस एवं पहाड़ी क्षेत्रों के लिये कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब ऐसी स्थिति को हीटवेव माना जाता है ।
  • वर्ष 2016 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने लू के प्रभाव को कम करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख रणनीति तैयार करने हेतु व्यापक दिशा-निर्देश जारी किये।

दिल्ली के वास्तविक तापमान की तुलना में उच्च तापमान हेतु ज़िम्मेदार कारक:

  • नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव: दिल्ली एक अत्यधिक शहरीकृत क्षेत्र है, जिसमें बड़ी मात्रा में कंक्रीट, इमारतें और डामर की सतहें हैं। ये सतह ऊष्मा को अवशोषित करती हैं और उसे बनाए रखती हैं, जिससे नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव उत्पन्न होता है। यह तापमान को वास्तविक रूप से अधिक गर्म महसूस करा सकता है।
  • वायु प्रदूषण: पंजाब और हरियाणा क्षेत्र में पराली जलानेवाहन एवं औद्योगिक उत्सर्जन तथा निर्माण गतिविधियों से निकलने वाली धूल के कारण दिल्ली में उच्च स्तर का वायु प्रदूषण होता है।
    • यह प्रदूषण ऊष्मा को रोक सकता है तथा शहर को गर्म रखते हुए एक व्यापक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।
    • साथ ही दिल्ली की उच्च आर्द्रता भी वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ा सकती है।
  • जल निकायों से दूरी: दिल्ली किसी भी बड़े जल निकाय जैसे- समुद्र या झील के पास स्थित नहीं है। इसका अर्थ है कि जल से आने वाली ठंडी हवा का कोई स्रोत नहीं है, जिससे हवा गर्म महसूस हो सकती है।
  • भारत के अग्रणी सार्वजनिक नीति थिंक टैंक- सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (Centre for Policy Research- CPR) ने पहली विश्लेषण रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि अधिकांश हीट एक्शन प्लान (Heat Action Plans- HAP) स्थानीय आबादी के सामने आने वाले जोखिमों के अनुकूल नहीं हैं।
    • यह मूल्यांकन करने के लिये कि भारत की नीतिगत कार्रवाई गर्म मौसम में किस प्रकार संचालित हो  रही है; CPR ने 18 राज्यों में सभी 37 हीट एक्शन प्लान (HAP) का विश्लेषण किया और यह पाया गया कि अधिकांश HAP स्थानीय संदर्भों के लिये उपयुक्त नहीं हैं।

     हीट एक्शन प्लान (HAP):

    • HAP आर्थिक रूप से हानिकारक एवं जीवन के लिये खतरनाक हीटवेव के लिये प्राथमिक नीतिगत प्रतिक्रिया है। HAP हीटवेव के प्रभाव को कम करने के लिये कई गतिविधियों, आपदा प्रतिक्रियाओं एवं गर्मी के बाद के प्रतिक्रिया उपायों को निर्धारित करते हैं।
    • HAP राज्य, ज़िला और शहर स्तर पर मानव मृत्यु की संख्या और लू के अन्य प्रतिकूल प्रभावों को सीमित करने के लिये अल्पकालिक कार्रवाई करने तथा पिछली हीटवेव के डेटा तथा विश्लेषण के आधार पर आने वाले समय में हीटवेव का सामना करने हेतु दीर्घकालिक कार्रवाई के लिये तैयार किये गए दस्तावेज़ हैं।
      • अल्पकालिक कार्रवाइयों में लोगों को हीटवेव के प्रति सचेत करना और स्वास्थ्य तथा कृषि जैसे विभिन्न विभागों का समन्वय करना शामिल हो सकता है।
      • दीर्घकालिक कार्रवाइयों में अवसंरचनात्मक परिवर्तन जैसे- ठंडी छतें, हरित आवरण में वृद्धि और जल संचयन संरचनाएँ शामिल हो सकती हैं।

    प्रमुख बिंदु

    • अभूतपूर्व चुनौती:
      • अत्यधिक गर्मी स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिये एक अभूतपूर्व चुनौती है, जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के दशकों में हीटवेव की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
        • वर्ष 1998, 2002, 2010, 2015 और 2022 में हुई हीटवेव की घटनाओं के कारण श्रम उत्पादकता में कमी, जल की उपलब्धता, कृषि तथा ऊर्जा प्रणालियों पर काफी प्रभाव पड़ा जिससे बड़े पैमाने पर मौतों सहित व्यापक स्तर पर आर्थिक क्षति हुई।
      • मानव-प्रेरित कार्रवाइयों के कारण भारत में अत्यधिक हीटवेव की घटनाओं की आवृति की संभावना में 30 गुना वृद्धि हो गई है।
    • औसत ताप में वृद्धि:
      • वर्ष 2050 तक 24 शहरी केंद्रों में कम-से-कम 35 डिग्री सेल्सियस तापमान के औसत ग्रीष्मकालीन उच्च स्तर को पार करने का अनुमान है, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।
    • स्थानीय परिदृश्य हेतु उपयुक्त नहीं: 
      • अधिकांश HAPs स्थानीय परिदृश्य हेतु नहीं बनाए गए हैं। वे आमतौर पर अत्यधिक शुष्क तापमान पर ध्यान केंद्रित करते हैं और आर्द्र ताप तथा गर्म रातों से उत्पन्न खतरों को अनदेखा करते हैं।
      • अधिकांश HAPs ने राष्ट्रीय हीटवेव थ्रेशोल्ड को अपनाया है जो स्थानीय आबादी द्वारा सामना किये जाने वाले जोखिमों के अनुकूल नहीं हो सकता है।
      • 37 HAPs में से केवल 10 में स्थानीय रूप से निर्दिष्ट तापमान सीमाएँ हैं।
    • HAPs हेतु वित्तपोषण की कमी:
      • 37 HAPs में से केवल तीन के वित्तीयन स्रोतों की पहचान की गई है। आठ HAPs कार्यान्वयन विभागों को संसाधनों का स्व-आवंटन की मांग करते हैं, जो एक गंभीर वित्तीयन अभाव का संकेत देता है।
    • कमज़ोर कानूनी आधार:
      • HAPs का कानूनी आधार कमज़ोर है। समीक्षा की गई HAPs में से कोई भी अपने अधिकार के कानूनी स्रोतों को इंगित नहीं करता है। यह HAPs निर्देशों को प्राथमिकता देने एवं उनका अनुपालन करने हेतु नौकरशाही प्रोत्साहन को कम करता है।
    • अपर्याप्त पारदर्शिता:
      • इसके अलावा HAPs अपर्याप्त पारदर्शी हैं। HAPs का कोई राष्ट्रीय कोष नहीं है तथा बहुत कम HAPs ऑनलाइन सूचीबद्ध हैं। यह भी स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि क्या इन HAPs को समय-समय पर अपडेट किया जा रहा है और क्या यह मूल्यांकन डेटा पर आधारित है।
    • भारत अत्यधिक संवेदनशील:
      • भारत गर्मी हेतु सबसे अधिक अनावृत और संवेदनशील देशों में से एक है।
      • वर्ष 1951 और 2016 के बीच तीन दिवसीय समवर्ती गर्म दिन और रात की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है, साथ ही RCP (कार्बन की सांद्रता को संदर्भित करता है) 4.5 एवं RCP 8.5 के मध्यवर्ती एवं उच्च उत्सर्जन के साथ इसके वर्ष 2050 तक दो से चार गुना बढ़ने का अनुमान है।

    अनुशंसाएँ: 

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