इंजीनियरिंग के मामले में भारत ने चीन को पछाड़, कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत ने युगों-युगों तक दुनिया को ज्ञान की ज्योति से रास्ता दिखाया। दुनिया के लिए भारत विश्व गुरु था। मेडिकल साइंस में चरक और सुश्रुत, खगोलशास्त्र में आर्यभट्ट, तारामंडल, वनस्पति और जंतु विज्ञान में अपनी खोजों से विश्व को हतप्रभ करने वाले वराहमिहिर, योगसूत्र के जनक पतंजलि, गणितज्ञ भास्कराचार्य, महर्षि कण्व जैसे मनीषियों ने दुनिया को हर विषय की अहमियत बताई। हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी श्रेष्ठ थी कि नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में दूर देशों से छात्र पढ़ने आते थे। लेकिन गुलामी के दौर ने भारत से विश्व गुरु का खिताब छीन लिया। भारतीय शिक्षा पद्धति जैसे विलुप्त हो गई। उच्च शिक्षा के लिए भारतीय छात्र पश्चिमी देशों का रुख करने लगे। लेकिन यह सहूलियत सबके पास नहीं थी। इसलिए, 75 साल पहले आजादी मिली तो शिक्षा के पैमाने पर शायद ही हम कहीं ठहरते थे। हाल यह था कि 1950 में भारत की साक्षरता दर महज 18 फीसद थी।

लेकिन आजादी के बाद हर क्षेत्र की तरह शिक्षा में भी तेजी से तरक्की हुई। आज न सिर्फ साक्षरता दर 77.7 फीसद हो गई है, अनेक मामलों में हम दूसरे देशों से आगे निकल चुके हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारे इंजीनियर हैं। हर साल तैयार होने वाले इंजीनियर्स के मामले में भारत ने दुनिया के सबसे समृद्ध देश अमेरिका और सर्वाधिक आबादी वाले चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। यही स्थिति विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में है।

नेशनल साइंस फाउंडेशन के साइंस और इंजीनियरिंग इंडीकेटर 2018 के अनुसार सबसे अधिक इंजीनियर डिग्रीधारक भारत में हैं। इस इंडीकेटर के अनुसार दुनिया में साइंस और इंजीनियरिंग की 25 फीसद डिग्री भारतीय छात्रों को दी गई। यानी दुनिया को हर चौथा इंजीनियर भारत दे रहा है। चीन 22 फीसद के साथ दूसरे नंबर पर रहा।

भारत में स्टेम यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स के डिग्रीधारक भी अमेरिका, ब्रिटेन और चीन की तुलना में अधिक हैं। तस्वीर का सबसे शानदार पहलू यह है कि स्टेम में भारतीय महिलाओं का प्रदर्शन अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के मुकाबले काफी उम्दा है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार स्टेम में भारतीय महिलाओं की संख्या 43 फीसद है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस में लड़कियों की तादाद क्रमश: 34 फीसद, 38 फीसद, 27 फीसद और 32 फीसद रही है।

आज अगर भारत एक बार फिर विश्व गुरु बनने की राह पर है तो इसके पीछे नीति निर्माताओं की अथक मेहनत है। आजादी के वक्त देश में सिर्फ 20 यूनिवर्सिटी और 404 कॉलेज थे। 1948 में देश में 30 मेडिकल कॉलेज और 36 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, जिनमें हर सिर्फ 2500 छात्रों को दाखिला मिलता था। जैसा कि कहा जाता है, पुरुषकारेण विना दैवं न सिध्यति, यानी बिना परिश्रम के फल नहीं मिलता। आज देश में 2500 इंजीनियरिंग कॉलेज, 1043 यूनिवर्सिटी, 42303 डिग्री कॉलेज, 541 मेडिकल कॉलेज, 1400 पॉलीटेक्निक और 200 प्लानिंग और आर्किटेक्टर कॉलेज हैं। यानी इंजीनियरिंग कॉलेज और यूनिवर्सिटी की संख्या ही 4100 के करीब पहुंच गई है।

75 वर्षों की उपलब्धियां

सात दशकों में चार गुना हुई साक्षरता दर

नब्बे के दशक में बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में सघन प्रयास हुए। इससे बच्चों की भागीदारी और साक्षरता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई। 1950 में वयस्क साक्षरता दर और बच्चों के स्कूल में जाने की दर लगभग नगण्य थी। 2001 में साक्षरता दर 65.38 फीसद हो गई जबकि 1990 के दशक में यह 52.21 फीसद थी। हालांकि आज राष्ट्रीय साक्षरता दर 77.7 फीसद होने का मतलब है कि 22.3 फीसद लोगों को साक्षर बनाना बाकी है।

पुरुषों की बराबरी के करीब महिलाएं

1951 में पुरुषों की साक्षरता दर 27.16% और महिलाओं की सिर्फ 8.86% थी। आज 84.70% पुरुष साक्षर हैं तो महिला साक्षरता दर भी 70.3% हो गई है। यानी पुरुष साक्षरता दर तीन गुना हुई तो महिला साक्षरता दर आठ गुना हो गई है। उच्च शिक्षा में महिलाओं की प्रतिभा खौस तौर से दिख रही है। सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार स्टेम में बीते तीन सालों में पुरुषों की संख्या 12.9 लाख से कम होकर 11.9 लाख रह गई, जबकि महिलाओं की संख्या 10 लाख से बढ़कर 10.6 लाख हो गई। यानी स्टेम में महिलाएं पुरुषों की बराबरी के करीब हैं।

खुलीं उच्च शिक्षा की राहें

आजादी के बाद उद्योग को बढ़ावा देने का फैसला हुआ तो अच्छे इंजीनियरों की कमी महसूस हुई। तब 1950 में आईआईटी खड़गपुर की स्थापना की गई। उसके बाद 1958 में आइआइटी बांबे, 1959 में आइआइटी मद्रास और कानपुर तथा 1961 में आइआइटी दिल्ली की स्थापना ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा की राहें खोल दीं।

हालांकि इतनी बड़ी आबादी वाले देश के लिए सिर्फ पांच आइआइटी अपर्याप्त थे। इसे देखते हुए राजीव गांधी सरकार ने 1994 में आइआइटी गुवाहाटी और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2001 में आइआइटी रुड़की की स्थापना की। देश में आइआइटी की संख्या डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बढ़कर 20 और मोदी सरकार में 28 हो गई। इसके पूर्व नेहरू के दिशानिर्देशन में नेशनल काउंसिल फार एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की स्थापना हुई थी।

आज भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान धीरे-धीरे अपनी खोई प्रतिष्ठा को वापस पा रहे हैं। क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग-2023 में आठ आईआईटी समेत 41 भारतीय यूनिवर्सिटी को टॉप 500 में शुमार किया गया है। 280 बिजनेस स्कूलों की सूची में आईआईएम अहमदाबाद को 46वां स्थान मिला है। आईआईएम कलकत्ता और आईएसबी भी टॉप 100 में शुमार हैं।

यहां भी हो रहा कमाल

-2019-20 में उच्च शिक्षा में कुल 3.85 करोड़ छात्रों ने दाखिला लिया। 2018-19 के मुकाबले इस संख्या में 11.36 लाख (3.04 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई। 2014-15 में यह संख्या 3.42 करोड़ थी।

-2015-16 से 2019-20 के बीच उच्च शिक्षा हासिल करने वाली लड़कियों की संख्या (सकल नामांकन दर) 18.2 प्रतिशत बढ़ी है। यह सामान्य नामांकन दर में 11.4 प्रतिशत की वृद्धि से ज्यादा है। इस उछाल की वजह से देश में उच्च शिक्षा में लड़कियों की नामांकन दर अब 27.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जबकि लड़कों की नामांकन दर 26.9 प्रतिशत पर ही है।

-कॉमर्स एक नया क्षेत्र बन कर उभरा है जिसमें लड़कियों का नामांकन बढ़ रहा है। 2019-20 में पूरे देश में कुल मिला कर 41.6 लाख विद्यार्थियों ने बी.कॉम में दाखिला लिया। इनमें 21.3 लाख लड़के थे तो 20.3 लाख लड़कियां। पांच साल पहले तक बी.कॉम में हर 100 लड़कों पर 90 लड़कियां हुआ करती थीं, लेकिन अब यह अनुपात लगभग बराबर हो गया है।

सकल नामांकन में सुधार

सरकार की रिपोर्ट के अनुसार 2012-13 और 2019-20 के बीच माध्यमिक में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में लगभग 10% का सुधार हुआ है। यह 2012-13 के 68.7% की तुलना में 2019-20 में लगभग 78% हो गया। 2012-13 और 2019-20 के बीच उच्च माध्यमिक में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में 11% से अधिक का सुधार हुआ है। यह 2012-13 के 40.1% की तुलना में 2019-20 में 51.4% हो गया। 2019-20 में 96.87 लाख शिक्षक स्कूली शिक्षा में लगे थे। यह 2018-19 की तुलना में लगभग 2.57 लाख अधिक है। 2019-20 में प्राथमिक के लिए छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) 26.5 हो गया, जबकि 2012-13 में यह 34.0 था। 2019-20 में उच्च प्राथमिक के लिए पीटीआर 18.5 हो गया, जबकि 2012-13 में यह 23.1 था।

40 सालों में बढ़ गई 33 फीसदी साक्षरता

1951 में 5 वर्ष या इससे अधिक उम्र के प्रत्येक 10 भारतीयों में केवल 2 लोग साक्षर थे। तब किसी को पत्र लिखने और जवाब पढ़ने वाले को साक्षर माना जाता था। बीते कुछ दशकों में साक्षरता दर में मिली कामयाबी की बड़ी वजह शिक्षा को लेकर जारी की गई स्कीम और स्कूलों में अधिक नामांकन होना है। पहले देश के सुदूर हिस्से में बहुत से बच्चे स्कूल पहुंच ही नहीं पाते थे। सर्व शिक्षा अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, मिड डे मील जैसी योजनाओं ने साक्षरता दर को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।

शिक्षा पर खर्च

वित्त वर्ष 2022-23 में शिक्षा पर 1,04,278 करोड़ रुपये व्यय का प्रस्ताव है जो कि पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान 88,002 करोड़ रुपये से 18.5% अधिक है। वित्त वर्ष 2020-21 में शिक्षा क्षेत्र पर 84,219 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के लिए 39,553 करोड़ रुपये के व्यय का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष का संशोधित अनुमान 30,796 करोड़ रुपये था।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

2020 की नई शिक्षा नीति में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री और कोडरमा से सांसद अन्नपूर्णा देवी कहती हैं, “भारत की आजादी के अमृतकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में सभी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों का निर्धारण समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए, इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया जा रहा है कि देश जब अपनी आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएगा तब उपलब्धियों के मामले में कहां खड़ा होगा।” वह कहती हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भी विद्वान मनीषियों द्वारा, व्यापक जन भागीदारी और सभी हितधारकों से विमर्श के बाद भारतीय शिक्षा व्यवस्था को मैकाले मॉडल से मुक्ति दिलाते हुए वैश्विक और भावी चुनौतियों का सामना करने के बड़े लक्ष्य के साथ तैयार किया गया है।

एनईपी 2020 प्रतिभाशाली नागरिक बनाने के मूल विचार के साथ तैयार किया गया है। नई शिक्षा नीति आत्मनिर्भर, मजबूत, समृद्ध और सुरक्षित भारत की नींव है और यह शिक्षा नीति हर बच्चे तक पहुंचने और उसके भविष्य को आकार देने का एक साधन है। यह नीति भारत के शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले सभी विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है।”

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