ग्लोबल वार्मिंग में भारत पांचवें स्थान पर है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
साइंटिफिक डेटा’ पत्रिका में प्रकाशित शोध में ग्लोबल वार्मिंग के शीर्ष 10 योगदानकर्त्ताओं में भारत को पाँचवाँ स्थान दिया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- शीर्ष योगदानकर्त्ता:
- तापमान में 0.28 डिग्री सेल्सियस (17.3%) वृद्धि के कारण अपने कुल उत्सर्जन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका सूची में शीर्ष स्थान पर है।
- चीन दूसरे और रूस तीसरे स्थान पर रहा।
- भारत की स्थिति:
- भारत वर्ष 2005 के 10वें स्थान से पाँचवें स्थान पर पहुँच गया।
- वर्ष 1850 से 2021 तक 0.08 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के लिये भारत उत्तरदायी है।
- वर्ष 1851-2021 से भारत के कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) के उत्सर्जन के परिणामस्वरूप पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में क्रमशः 0.04 डिग्री सेल्सियस, 0.03 डिग्री सेल्सियस और 0.006 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग देखी गई है।
- वार्मिंग का कारण:
- विश्व के आधे देशों में भूमि उपयोग और वानिकी क्षेत्र का वार्मिंग में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- ब्राज़ील में भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी (LULUCF) से CO2 उत्सर्जन के कारण 0.04 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग हुई।
- इसके अतिरिक्त LULUCF क्षेत्र ने वर्ष 1851-2021 के बीच CH4 उत्सर्जन के कारण कुल वार्मिंग में 38% और N2O उत्सर्जन की वजह से 72% का योगदान रहा।
- रिपोर्ट में वनों की अंधाधुंध कटाई एवं कृषि विस्तार से जुड़े उत्सर्जन पर प्रकाश डाला गया है।
- जीवाश्म ईंधन का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान अभी भी बना हुआ है। वर्ष 1992 के बाद से वैश्विक जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के कारण होने वाली अतिरिक्त वार्मिंग भूमि-उपयोग परिवर्तन के कारण चार गुना से अधिक हो गई है।
ग्रीनहाउस गैसें:
- ग्रीनहाउस गैस एक ऐसी गैस है जो थर्मल इन्फ्रारेड तरंगदैर्ध्य पर चमकदार ऊर्जा को अवशोषित एवं उत्सर्जित करती है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न होता है।
- पृथ्वी के वायुमंडल में प्राथमिक ग्रीनहाउस गैस जल वाष्प (H2O), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और ओज़ोन (O3) हैं।
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