संयुक्त राष्ट्र की जारी सतत विकास लक्ष्य की दौड़ में दो अंक फिसला भारत.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आधुनिकता और तरक्की के लिए प्राकृतिक संपदा का क्षरण और जलवायु परिवर्तन के तौर पर बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। मोटे तौर पर औद्योगिक विकास की अंधी दौड़ ना सिर्फ इंसान, बल्कि धरती पर मौजूद हर जीवित चीज के अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर रही है। वैश्विक संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करते हुए तरक्की करने और इसके लाभ दुनिया के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाने के मकसद से 2015 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 17 सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) तय किए। इस दौरान यूएन के सदस्य देशों ने यह भी तय किया कि इन लक्ष्यों को वर्ष 2030 तक हासिल करना है।
इस प्रकार हैं 17 एसडीजी
1-गरीबी खत्म करना
2-भुखमरी खत्म करना
3-उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली
4-गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
5-लैंगिक समानता
6-स्वच्छ जल और स्वच्छता
7-सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
8-अच्छा काम और आर्थिक विकास
9-उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचे का विकास
10-असमानता में कमी
11-सतत शहरी और सामुदायिक विकास
12-सतत उपभोग और उत्पादन
13-जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाना
14-पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं को सुरक्षा प्रदान करना
15-जमीन पर रहने वाले सभी को सुरक्षा प्रदान करना
16-शांति, न्याय और सशक्त संस्थान
17-लक्ष्य प्राप्ति में सामूहिक साझेदारी की हिस्सेदारी बढ़ाना
इस वर्ष भारत की स्थिति
संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी भारत की पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट-2021 के मुताबिक एसडीजी की सूची में भारत पिछले वर्ष की तुलना में दो पायदान नीचे खिसककर 117वें स्थान आ गया है।
इन्हें हासिल करने में पिछड़ा देश
-भुखमरी खत्म करने और खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में
-लैंगिक समानता के अवसर मुहैया कराने में
-उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचे के विकास में
चार पड़ोसियों से पीछे
इस वर्ष भारत का कुल एसडीजी स्कोर 100 में से 61.9 है, जो भूटान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश से कम है।
झारखंड और बिहार बहुत पीछे
रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड और बिहार इन लक्ष्यों को 2030 तक भी हासिल नहीं कर सकेंगे। झारखंड जहां पांच लक्ष्यों को हासिल करने में बहुत पीछे है वहीं बिहार सात लक्ष्यों को हासिल करने में पिछड़ रहा है। एसडीजी हासिल करने के मामले में केरल, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ सबसे अच्छा काम कर रहे हैं।
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भी पीछे
रिपोर्ट के मुताबिक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआइ) में भी भारत 180 देशों में से 168 वें स्थान पर है। इसकी गणना जलवायु, वायु प्रदूषण, स्वच्छता और पेयजल और जैव विविधता जैसे संकेतकों के आधार पर की जाती है।
लोगों की सेहत पर हो रहा बुरा असर
पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिहाज से भारत 172वें स्थान पर रहा। यह इस बात का सूचक है कि देश अपने लोगों को पर्यावरणीय बदलावों की वजह से उपजे स्वास्थ्य जोखिमों से कितनी अच्छी तरह बचा रहे हैं। इस लिहाज से भी देश की स्थिति संतोषप्रद नहीं है।
पाकिस्तान से 21 पायदान पीछे
भारत येल विश्वविद्यालय की तरफ से जारी ईपीआइ 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, जैव विविधता और आवास की श्रेणी में भारत, पाकिस्तान के 127वें स्थान की तुलना में 21 पायदान पीछे 148वें स्थान पर रहा। इस श्रेणी में प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने और उनकी सीमाओं के भीतर जैव विविधता की पूरी श्रृंखला की रक्षा करने की दिशा में देशों के कार्यो का आकलन किया जाता है।
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