भारत-UAE खाद्य सुरक्षा: वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये प्रमुख चुनौतियाँ क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संयुक्त अरब अमीरात (UAE), जिसकी खाद्य सुरक्षा वैश्विक बाज़ारों से होने वाले आयात पर निर्भर है, अब आपूर्ति शृंखला संकट का सामना करने के लिये खाद्य पहुँच और तत्परता के दोहरे उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

  • भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक है और खाद्य सुरक्षा को मज़बूती प्रदान  करने की संयुक्त अरब अमीरात की महत्त्वाकांक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है।
  • भारत-UAE खाद्य सुरक्षा साझेदारी अभिसरण के कई बिंदुओं से लाभान्वित होती है।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा साझेदारी को मज़बूत करने की दिशा में भारत-संयुक्त अरब अमीरात  की भूमिका:

  • भारत की क्षमता:
    • कृषि-निर्यात पर मज़बूत पकड़:
      • प्रचुर कृषि योग्य भूमि, अनुकूल जलवायु और बढ़ता खाद्य उत्पादन तथा प्रसंस्करण क्षेत्र के परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर कृषि-निर्यात के प्रमुखतम स्रोत के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत है।
    • मानवीय सहायता:
      • भारत क्षेत्रीय और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए विकासशील देशों को मानवीय खाद्य सहायता प्रदान करने में भी शामिल रहा है।
    • फूड पार्क और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन:
      • भारत ने द्विपक्षीय व्यापार समझौतों से लाभान्वित होने के लिये फूड पार्क और आधुनिक आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण निवेश किया है, जो वैश्विक खाद्य बाज़ार में उत्कृष्टता प्राप्त करने के अपने इरादे को प्रदर्शित करता है।
    • सरकारी पहल:
      • भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम– सार्वजनिक वितरण प्रणाली चलाता है, लगभग 800 मिलियन नागरिकों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराता है, दैनिक भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
      • भारत का पोषण अभियान बच्चों और महिलाओं के लिये विश्व का सबसे बड़ा पोषण कार्यक्रम है, जो खाद्य सुरक्षा में पोषण के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
  • UAE’s का योगदान: 
    • निवेश:
      • UAE ने I2U2 शिखर सम्मेलन 2022 के दौरान भारत में फूड पार्कों के निर्माण के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
    • खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर: 
      • संयुक्त अरब अमीरात ने वैश्विक खाद्य मूल्य शृंखला में भारत की उपस्थिति को और अधिक बढ़ाते हुए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के साथ-साथ एक खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर पर हस्ताक्षर किये हैं। 
    • एग्रीओटा: 
      • दुबई मल्टी कमोडिटीज़ सेंटर ने कृषि-व्यापार और कमोडिटी प्लेटफॉर्म एग्रीओटा लॉन्च किया है, जो भारतीय किसानों को UAE के खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ता है तथा अमीरात के बाज़ारों तक सीधी पहुँच में सक्षम बनाता है।
  • महत्त्व:
    • भारत के लिये नए बाज़ारों का प्रवेश द्वार:
      • एशिया और यूरोप के बीच संयुक्त अरब अमीरात का रणनीतिक स्थान पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका के लिये भारत के खाद्य निर्यात प्रवेश द्वार के रूप में कार्य कर सकता है, जो अपने खाद्य भंडार को बनाए रखने तथा उसमें विविधता लाकर लाभ प्रदान कर सकता है।
      • भारत, संयुक्त अरब अमीरात की निजी क्षेत्र की परियोजनाओं, गैर-कृषि-रोज़गार पैदा करने और किसानों के उत्पादों का बेहतर मूल्य प्रदान कर लाभान्वित होने के लिये तत्पर है।
    • वैश्विक खाद्य सुरक्षा भागीदारी के लिये संरचना: 
      • भारत की G-20 अध्यक्षता ग्लोबल साउथ में खाद्य सुरक्षा के लिये सफल रणनीतियों और रूपरेखाओं को प्रदर्शित करने का एक उपयुक्त अवसर प्रदान करती है।
      • भारत खाद्यान्न के एक स्थायी, समावेशी, कुशल और लचीले भविष्य के निर्माण के लिये UAE के साथ समुद्री व्यापार मार्गों का लाभ उठा सकता है और स्थति को मज़बूत कर सकता है क्योंकि यह वैश्विक विकास एजेंडा निर्धारित करता है।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:

  • जलवायु परिवर्तन का खतरा: संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन तथा चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ती खाद्य असुरक्षा का प्रमुख कारक बताया है।
    • बढ़ते तापमान, मौसम की परिवर्तनशीलता, आक्रामक फसलें एवं कीट तथा लगातार बढ़ते चरम मौसमी घटनाओं का खेती पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण कृषि उत्पादन में कमी तथा खेतों की उत्पादकता व पोषण गुणवत्ता कमज़ोर होती है जो अंततः किसानों की आय में कमी का कारण बनता है।
  • अस्थिर बाज़ार मूल्य: वैश्वीकरण की अवधारणा ने कृषि वाणिज्य को अधिक खुलापन प्रदान किया है, लेकिन यह अधिक स्थिर बाज़ार मूल्य निर्धारण का आश्वासन देने में असमर्थ है। 
    • अंतिम वस्तुओं हेतु लाभकारी कीमतों की कमी, संकटग्रस्त बिक्री, अनुपयुक्त बाज़ार कीमतों के साथ संयुक्त उच्च कृषि लागत खाद्य सुरक्षा के मार्ग में बाधा के रूप में कार्य करती है।
  • व्यापार व्यवधान: भू-राजनीतिक तनाव एवं व्यापार विवादों के परिणामस्वरूप व्यापार में व्यवधान आ सकता है, जिसमें व्यापार प्रतिरोध, प्रतिबंध एवं टैरिफ शामिल हैं, जो खाद्य व्यापार तथा खाद्य कीमतों एवं उपलब्धता को प्रभावित कर सकते हैं।
    • यह विशेष रूप से उन देशों को प्रभावित कर सकता है जो खाद्य आयात पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं, इससे खाद्य की कमी एवं खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है, जिससे कमज़ोर आबादी हेतु भोजन कम सुलभ हो पाता है।

आगे की राह

  • जलवायु लचीलापन बढ़ाना: जल प्रबंधन, मृदा संरक्षण एवं जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियों जैसे जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन उपायों में निवेश, खाद्य उत्पादन तथा खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
  • जलवायु अनुकूल फसलों को प्रोत्साहन: जलवायु-लचीली फसलों के विकास एवं वितरण के लिये निवेश की आवश्यकता है जो तापमान भिन्नता और वर्षा में उतार-चढ़ाव को सहन कर सके
    • सरकारों को जल और पोषक तत्त्व-कुशल फसलों (जैसे बाज़रा और दालें) के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के साथ ही किसानों के लिये आकर्षक न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा इनपुट सब्सिडी की घोषणा करनी चाहिये।
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा द्वारा अपने 75वें सत्र में वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया जाना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • कृषि कूटनीति: भारत अफ्रीका और एशिया के अन्य विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी साझेदारी, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने में संयुक्त अनुसंधान, जलवायु स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने के माध्यम से अपने समर्थन में वृद्धि कर सकता है जिससे भारत को वैश्विक दक्षिण के एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित होने में मदद मिल सकती है।
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