चुनाव के आलोक में भारत अमेरिकी मित्रता

चुनाव के आलोक में  भारत अमेरिकी मित्रता

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डोनाल्ड ट्रंप को जीत की बधाई

राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय मूल की कमला हैरिस डेमोक्रेट दल की प्रत्याशी है तो डोनाल्ड ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद हेतु उम्मीदवार है। अमेरिकी चुनाव को मीडिया ने वैश्विक समाचार बना दिया है। एक ध्रुवीय विश्व की परिकल्पना में अमेरिका अपने को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए प्रत्येक मोर्चे पर अग्रणी है। परन्तु अमेरिका में यह 60वें राष्ट्रपति का चुनाव इस बात का द्योतक है कि अब तक के चुनाव में किसी महिला उम्मीदवार ने राष्ट्रपति पद को प्राप्त नहीं किया है।
ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप का पड़ला भारी है। कमला हैरिस मूल रूप से तमिलनाडू की है परन्तु उनकी पार्टी भारत विरोधी है।

भारत-अमेरिका संबंध की कथा

अमेरिका से भारत का जुड़ाव व्यापार को लेकर दशकों से रहा है। भारत को सोवियत गुट का समर्थक माने जाने के कारण अमेरिका ने सदैव पाकिस्तान का साथ दिया। परंतु पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर की लाल बहादुर शास्त्री की हत्या, होमी जहांगीर भाभा की विमान दुर्घटना में हत्या को अगर अमेरिका चाहता तो टाल सकता था। बांग्लादेश युद्ध के समय अमेरिका का पाकिस्तान को दिया जाने वाला मदद सभी के स्मरण में है। अमेरिका ने 1962 में चीन के साथ युद्ध में उसके एकदम से चुप्पी साध ली थी।

1971 में सोवियत संघ को मात देने के लिए विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने चीन के साथ हाथ मिलाया और व्यापार हेतु उसे अग्रणी बताया। 1978 से 1988 तक अफगानिस्तान पर सोवियत रूस के कब्जे का पुरजोर विरोध अमेरिका ने चरमपंथियों को समर्थन देकर किया। तत्पश्चात कश्मीर में आतंकवादियों का समय समर्थन पाकिस्तान द्वारा किया गया क्योंकि यह उग्रवादी अफगानिस्तान से कश्मीर भेज दिए गए। इन कट्टर चरमपंथियों के उत्पाद के कारण 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडित अपने कश्मीर से भगा दिया गये। ये आज भी अपने ही देश में निर्वासित जीवन व्यतीत करने को विवश है।

अमेरिकी राष्ट्रपतियों की भारत यात्रा

भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन की बात की जाए तो सर्वप्रथम 1959 में डी आइजनहावर ने चार दिवसीय भारत की यात्रा की, जबकि जुलाई 1959 में रिचर्ड निक्सन केवल 22 घंटे के लिए भारत आए फिर पाकिस्तान चले गए। उन्होंने ही अपना सातवां बेड़ा पाकिस्तान की मदद के लिए भेजा था। जबकि 1978 में जिम कार्टर भारत आए। प्रधानमंत्री मोदी देसाई से हुए बातचीत में परमाणु परीक्षण को लेकर हुए खटास पर पैबंद लगाया। इसके ठीक 21 वर्ष बाद मार्च 2000 में बिल क्लिंटन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के आमंत्रण पर भारत आए।

मार्च 2006 में जार्ज डब्लू बुश भारत आए भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनका स्वागत किया,यह वहीं दौर था जब भारत ने परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इसके बाद बराक ओबामा 2010 एवं 2015 में भारत आए। बराक ओबामा तो 2015 में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि भी रहे। फिर 2020 में डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की यात्रा करते हुए अहमदाबाद में 22 किलोमीटर सड़क आकर्षण के कार्यक्रम ‘नमस्ते ट्रंप’ में भी सम्मिलित हुए। तत्पश्चात 2023 में जी-20 के समय में जो वाइडेन भारत आए। ऐसे में अब तक आठ अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने भारत का भ्रमण किया है।

भारत के प्रधानमंत्रियों का अमेरिकी दौरा


भारत के प्रधानमंत्रियों की अमेरिका यात्रा करने की बात की जाए तो अब तक सभी प्रधानमंत्री ने 35 बार अमेरिका की यात्रा की है। इसमें नेहरू जी चार बार 1949, 1956, 1960, 1961 में यात्रा की। इंदिरा गांधी ने तीन बार 1966, 68 और 1917 में यात्रा की। मोरारजी देसाई ने एक बार 1978 में, जबकि राजीव गांधी तीन बार 1985, 1985 ,1987 में यात्रा की। मनमोहन सिंह ने आठ बार यात्रा की।

जबकि अटल बिहारी वाजपेई चार बार 2000, 2001, 2002, 2003। वहीं पीवी नरसिम्हा राव तीन बार 1993, 1994, 1995 और इंद्र कुमार गुजराल ने एक बार 1997 में यात्रा की है। जबकि नरेंद्र मोदी ने नौ बार अमेरिका की यात्रा की है। ऐसे तो मोदी जी 2024 से 2024 अक्टूबर तक 82 विदेशी यात्राओं में 70 देश का दौरा कर चुके हैं।

खाड़ी युद्ध के समय भारत-अमेरिकी मित्रता

1990 में अमेरिका ने खाड़ी देशों विशेष का इराक पर चढ़ाई की क्योंकि उसने कुवैत पर कब्जा कर रखा था और अंतत: सद्दाम हुसैन को फांसी दिलवा कर ही दम लिया। भारत ने खाड़ी देशों से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाल लिया। देश में धन की कमी होने के कारण सोना गिरवी रखा गया परंतु भारतीय भूमि पर अमेरिकी विमान को तेल भरने की छूट नहीं दी गई।

परन्तु 1991 में सोवियत संघ के भूगोल में परिवर्तन हुआ। यह परिवर्तन भारत में पहुंचा और अमेरिका निकट आने लगा।
भारत में हुए आम चुनाव से 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बनी, कांग्रेस की नीतियों में परिवर्तन हुआ। इजराइल से राजनीतिक संबंध बने, दूतावास खुला, अमेरिका से निकटता बढ़ी। कहा गया कि हम दोनों देश विश्व के पुराने लोकतंत्र हैं। हमारे भारतीयों की संख्या अमेरिका में बहुत अधिक है जो प्रमुख पदों को सुशोभित कर रहे हैं।

चीन के कारण अमेरिका का भारत प्रेम

1988 में राजीव गांधी चीन की राजनयिक यात्रा करके उनसे राजनीतिक संबंध स्थापित कर लिए। चीन ने बड़ी तेजी से विनिर्माण क्षेत्र में कदम रखा और मात्र तीन दशकों में अपने तीस करोड़ नागरिकों को गरीबी रेखा से उबार लिया। पूरे देश में संरचना का विकास हुआ। तिब्बत तक के दुर्गम स्थलों तक रेलवे व सड़क का निर्माण कराया गया। मेट्रो ट्रेन व बुलेट ट्रेन का निर्माण कराया गया। उसका सफल संचालन भी करके चीन ने विश्व को अचंभित किया है। पूरे विश्व में विनिर्माण क्षेत्र से जुड़े वस्तुओं का निर्यात करके सब की आवश्यकता की पूर्ति करते हुए चीन अपने आर्थिक कोष का अभूतपूर्व विकास किया। वह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाकर अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान को चुनौती दिया।

चीन सदियों से भारत की संस्कृति और संस्कार से प्रभावित रहा है। परन्तु अंग्रेजों के भारत में 400 वर्षों तक शासन करने के बाद यहां के समाज में वह आमूल परिवर्तन होता देखता है। वह ऐसा मानता है कि भारत हमेशा से विदेशी शक्तियों के लिए एक आश्रय स्थल रहा है। अब अमेरिका को लेकर चीन ऐसा मानता है कि भारत को वह लॉन्चिंग पैड के रूप में प्रयोग कर रहा है। ऐसे में भारतीय सीमा पर तनाव एवं पाकिस्तान से दोस्ती करके भारत से संतुलन बनाए रखना चाहता है। वर्तमान संदर्भ में जब तक चीन पूरे संसार में आर्थिक समृद्धि की बांसुरी बजाता रहेगा तब तक अमेरिका का भारत के साथ व्यापारिक दोस्ती अनिवार्यता बनी रहेगी।

भारत की मित्रता भाव-भावना-भारतीयता के साथ होती है। अमेरिका की मित्रता क्षणिक एवं व्यापारिक संबंधों पर आधारित होती है।यही इन दोनों की दोस्ती में मूलभूत अंतर है परंतु अमेरिका में पिछले 30 वर्षों में भारतीयों की उच्च पदों पर धमक, श्रेष्ठ रणनीतिकार, सफल उद्यमी, पेशेवर कर्मी के रूप में है,ये भारत अमेरिका के मित्रता में एक अनिवार्य कड़ी है। आज अमेरिका में 50 लाख से अधिक भारतीय मूल के नागरिक हैं जो प्रमुख पदों पर पदस्थापित हैं। वहीं हजारों की संख्या में अमेरिकी विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहे है, ये छात्र भी दोनों देश की सांस्कृतिक मित्रता में अहम भूमिका निभा रहे है।

भारत का वैश्विक विस्तार

भारत में 1993 में बाबरी ढांचा ध्वस्त होने के बाद देश में व्यापक राजनीतिक परिवर्तन का वातावरण तैयार होने लगा। 13 दिन एवं 13 महीना की सरकार के बाद देश में दक्षिणपंथी सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में आई। विदेश नीति में परिवर्तन हुआ। हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके थे। हमारे पास पढ़े-लिखे, पेशेवर, योग्य, कुशल कर्मियों की बड़ी संख्या में नवयुवक तैयार थे, जो विश्व में भारत का परचम फैला सकते थे। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने वाले को यहां लाभ हुआ और हम बड़े आसानी से अमेरिका की संस्कृति में सम्मिलित हो गए।

पूरे विश्व में तकनीक, प्रौद्योगिकी के स्तर पर कंप्यूटर संसार में फैल रहा था, अपनी जड़े जमा रहा था। हमारे पास पेशेवर थे जो अमेरिका के साथ जुड़कर पूरे विश्व की सूरत बदल सकते थे और उन्होंने ऐसा किया।देश के 50 नामचीन विश्वविद्यालय से निकले विद्वान छात्र पूरी तरह से अमेरिका को अपना कर्मभूमि बनाया।

पाकिस्तान-अमेरिका-भारत सम्बन्ध
भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान का सदैव अमेरिका का प्रशंसक एवं समर्थक रहा है। जबकि पाकिस्तान का मिला भूगोल उसको ईश्वरीय देन है। कहा जाता है कि इस्लाम और कम्युनिस्ट में अच्छी खासी दोस्ती होती है परन्तु पाकिस्तान सोवियत रूस के तरफ ना जाकर अमेरिकी गुट में शामिल हो गया, जबकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश होने के साथ-साथ गुटनिरपेक्षता का लंबरदार होते हुए भी सोवियत संघ के समर्थक देश नेहरू जी के कारण बन बैठा।

1999 में पाकिस्तान के साथ बस कूटनीतिक के तहत अटल सरकार ने मित्रता का हाथ बढ़ाया। बस पलट गई और मई 1999 में कारगिल युद्ध हुआ। अमेरिका ने गुप्त रूप से बीच बचाव किया, हमें अपनी भूमि वापस मिल गई। भारत एवं अमेरिका के संबंधों में पहला परिवर्तन 1990 में सोवियत संघ के टूटने के बाद आया। पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा नई आर्थिक नीति लागू करने और 19 2001 में न्यूयॉर्क के जुड़वा टावर पर चरमपंथियों के हमले से उपजे घटना क्रम में भारत-अमेरिका संबंध को एक आयाम मिला।

अमेरिका पहली बार भारत को एक भरोसेमंद मित्र समझा। उसे शीत युद्ध के दौर का सूचना प्रदान करने वाला,समाजवादी प्रश्रय देने वाला देश समझना भूल गया। इधर भारत भी कश्मीर में बढ़ते चरणपंथी घटनाओं, 1999 के कारगिल युद्ध एवं कंधार विमान अपहरण, चीन के बढ़ते आर्थिक दबाव, देश में बढ़ती बेरोजगारी, आर्थिक स्थिति के संकट को लेकर चिंतित था। ऐसे में वह भी एक ऐसे एक समृद्ध, संपन्न, लोकतांत्रिक अंग्रेजी भाषा बोलने वाले अमेरिका को अपना भरोसेमंद मित्र बनाया।

भारत अमेरिका स्वाभाविक मित्र

भारत अमेरिका दोनों देशों में लोकतंत्र है। दोनों देश में लिखित संविधान है।एक विश्व का सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था हैं तो एक में विश्व की सबसे पुरातन लोकतांत्रिक व्यवस्था 1774 से चल रही है। ऐसे में भारत एवं अमेरिका की मित्रता को स्वाभाविक माना जा सकता है। दोनों एक दूसरे के शासन प्रशासन से लाभ उठा सकते है।

यही कारण है किभारतीय जनता पार्टी सदैव से अमेरिका की तरह अध्यक्षीय शासन प्रणाली की पक्षधर रही है। वहीं कांग्रेस के बसंत साठे ने भी इस प्रणाली का समर्थन किया था। मान्यता यह है कि भारत जैसे देश में जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा जैसे विचारों को लेकर सदैव टकराव की स्थिति चुनाव में बनी रहती है। यहां वर्ष भर कहीं ना कहीं चुनाव होते रहते है। ऐसे में राजनीतिक-प्रशासनिक- आर्थिक गति रुक जाती है, देश का विकास नहीं हो पता है। देश के सर्वागीण विकास हेतु राष्ट्रपति शासन ही सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था है, इसे अपनाया जाना चाहिए।

बहरहाल प्रत्येक भारतीय अमेरिका में सांस्कृतिक दूत है जो अपनी संस्कृति-संस्कारों से जनमानस में घुल मिल गया है। उनके व्यवहार, शिष्टाचार, सतयनिष्ठा के सभी प्रशंसक है। ऐसे में भारत अमेरिका की मित्रता व्यापारी एवं राजनयिक से बढ़कर संस्कृति एवं जातीय है जिसे हिंदी भाषा एवं महात्मा गांधी के विचारों ने निरंतर समृद्ध करके रखा है।

 

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