भारत पारंपरिक चिकित्सा का विश्व में अगुआ बनेगा,कैसे?

भारत पारंपरिक चिकित्सा का विश्व में अगुआ बनेगा,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जामनगर में ग्लोबल सेंटर फार ट्रेडिशनल मेडिसिन (जीसीटीएम) पारंपरिक चिकित्सा के वैश्विक केंद्र का उद्घाटन किया। पारंपरिक चिकित्सा की दुनिया में यह बड़ा कदम माना जा रहा है और भारत इसका अगुआ बनकर उभरा है। हमारी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है और अब यह अन्य देशों की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ वैश्विक स्वास्थ्य कल्याण की दिशा में सकारात्मक कार्य करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। आइए समझें जीसीटीएम क्या है, कैसे चिकित्सा सेवा में अहम भूमिका निभाएगा और भारत में इसके बनने का क्या आशय है:

विश्व की बड़ी आबादी पारंपरिक चिकित्सा पर निर्भर

पारंपरिक चिकित्सा या लोक चिकित्सा मानव सभ्यता द्वारा विकसित ज्ञान प्रणालियां हैं। इनके प्रयोग से आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से अलग शारीरिक व मानसिक रोगों की पहचान, रोकथाम, निवारण और इलाज किया जाता है।

-डब्ल्यूएचओ के 194 सदस्य देशों में से 170 में 80 प्रतिशत आबादी प्राथमिक स्वास्थ्य उपचार के रूप में स्थानीय पारंपरिक चिकित्सा पर ही निर्भर है। जब यह पद्धतियां काम नहीं आती हैं, तब आधुनिक चिकित्सा का सहारा लिया जाता है।

-जब एक स्थान की पारंपरिक चिकित्सा शैली उस जगह के अलावा अन्य स्थानों पर भी उपयोग होने लगती है तो उसे वैकल्पिक चिकित्सा कहते हैं।

इन चिकित्सा पद्धतियों को विश्वभर में मान्यता : विश्व की प्रमुख पारंपरिक चिकित्सा शैलियों में आयुर्वेद, योग, होम्योपैथी, भारतीय एक्यूप्रेशर, यूनानी, सिद्ध, प्राचीन ईरानी चिकित्सा, पारंपरिक चीनी चिकित्सा, कोरियाई चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, मुटी (दक्षिणी अफ्रीकी पारंपरिक चिकित्सा), इफा (पश्चिमी अफ्रीकी पारंपरिक चिकित्सा) सहित अन्य कई विधाएं हैं।

पारंपरिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी चिकित्सा, नृजाति चिकित्सा विज्ञान, लोक वानस्पतिकी और चिकित्सक मानव शास्त्र सम्मिलित हैं। भारत में आयर्वेद, योग, होम्योपैथी देशभर में प्रचलित है। सिद्ध चिकित्सा का उपयोग मुख्य रूप से केरल और तमिलनाडु में होता है। सोवा और रिग्पा का उपयोग लद्दाख, सिक्किम, लाहुल स्पीति, अरुणाचल प्रदेश सहित हिमालय के क्षेत्र में किया जा रहा है। यह तिब्बती चिकित्सा पद्धति है।

2020 में हुआ था अनुबंध : डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेडोस अधनोम घेरबयेसस ने 3 नवंबर 2020 को भारत में जीसीटीएम बनाने की घोषणा की थी। इस साल मार्च में कैबिनेट से इसे मंजूरी दी। इसके जरिये पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में डाटा एनालिसिस, नवाचार और साक्ष्यों को वैज्ञानिक तरीके से प्रामाणिक किया जाएगा।

भारत करेगा 1875 करोड़ रुपये का निवेश : डब्ल्यूएचओ के इस ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन में भारत ने प्रमुख निवेशक के रूप में 250 मिलियन डालर (लगभग 1875 करोड़ रुपये) निवेश करने का अनुबंध किया है। सेंटर के लिए जामनगर में 35 एकड़ जमीन, एक भवन और इस कार्यालय को संचालित करने के लिए 10 साल का खर्चा भी वहन करेगी।

… इसलिए चुना गया जामनगर : जामनगर सुलभ, पर्यावरण के अनुकूल और बेहतर कनेक्टिविटी वाला शहर है। यहां 13.49 करोड़ रुपये की लागत से आयुर्वेद में शिक्षण और अनुसंधान संस्थान (आईटीआरए) एक अंतरिम कार्यालय स्थापित किया जा रहा है। यह डब्ल्यूएचओ के सहयोगी केंद्र के रूप में काम करने के साथ ही राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है। केंद्र के सहयोग से गुजरात सरकार द्वारा स्थापित आईटीआरए पहला विश्वविद्यालय होगा, जहां वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद पढ़ाया जाएगा और प्रशिक्षण दिया जाएगा।

40 प्रतिशत फार्मूलेशन प्राकृतिक उत्पादों पर आधारित : 40 प्रतिशत से अधिक फार्मास्युटिकल फॉर्मूलेशन प्राकृतिक उत्पादों और पारंपरिक दवाओं से उत्पन्न प्रोडक्ट पर ही आधारित है। इस बाजार में लगातार मांग बढ़ रही है। ऐसे में अरबों-खरबों के इस बाजार को बढ़ाने में भी जीसीटीएम की मुख्य भूमिका रहेगी।

नंबर गेम

Leave a Reply

error: Content is protected !!