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भारतीय शिक्षा प्रणाली को 'हमारी संस्कृति' पर देना होगा ध्यान-उपराष्ट्रपति - श्रीनारद मीडिया

भारतीय शिक्षा प्रणाली को ‘हमारी संस्कृति’ पर देना होगा ध्यान–उपराष्ट्रपति

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100 साल : शिक्षा और साहित्य की अनवरत यात्रा

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने रविवार को कहा कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को ‘हमारी संस्कृति’ पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर किसी बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाए तो वे इसे समझ सकेंगे। अगर किसी अन्य भाषा में दी जाती है, तो पहले उन्हें भाषा सीखनी होगी और फिर वे समझेंगे।

उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चों को पहले अपनी मातृभाषा सीखनी चाहिए और फिर दूसरी भाषाएं सीखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी को भी अपनी भाषाओं में प्रवीणता होनी चाहिए और मूल विचार होने चाहिए।

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, जो विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी इस कार्यक्रम में उपस्थिति रहे। इस दौरान उपराष्ट्रपति ने सौ रुपये का एक स्मारक सिक्का, एक स्मारक शताब्दी टिकट और एक स्मारक शताब्दी खंड (किताब) को लान्च किया। इस किताब में विश्वविद्यालय की यात्रा का एक सचित्र प्रतिनिधित्व दर्शाया गया।

उपराष्ट्रपति ने दिल्ली विश्वविद्यालय को 100 साल पूरे करने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि मैं इस विश्वविद्यालय के विकास और प्रगति के लिए इसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक बनाने के लिए सभी लोगों को बधाई देना चाहता हूं। नायडू ने अंडरग्रेजुएट करिकुलर फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) 2022 (हिंदी संस्करण), अंडरग्रेजुएट करिकुलर फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) 2022 (संस्कृत संस्करण), और एक ब्रोशर, दिल्ली विश्वविद्यालय: एक झलक भी लान्च किया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा के महत्व पर दिया गया जोर: धर्मेन्द्र प्रधान

कार्यक्रम में बोलते हुए शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने से छात्रों की रचनात्मकता को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा के महत्व पर जोर दिया गया है। स्थानीय भाषा छात्र की रचनात्मकता को दिशा देने में मदद करती है। उन्होंने तीन भाषाओं अंग्रेजी, हिंदी और तेलुगु में ब्रोशर जारी करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय को बधाई दी।

इस दौरान कुलपति योगेश सिंह ने कहा कि हमने अकादमिक उत्कृष्टता के 100 साल पूरे कर लिए हैं। डीयू बहुत अच्छा कर रहा है। हम भारतीयों के जीवन में अपना योगदान देना जारी रखेंगे।

अतीत से आज तक हमसफर हैं…तीन महाविद्यालय
91 संबद्ध कॉलेज के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में इस वक्त बेशक सात लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं, लेकिन एक मई 1922 को तीन कॉलेजों व 750 बच्चों के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। इनके नाम हैं जाकिर हुसैन, सेंट स्टीफंस और हिंदू कॉलेज। तीनों महाविद्यालय डीयू से पहले अस्तित्व में थे।

जाकिर हुसैन कॉलेज
इस कॉलेज को पहले दिल्ली कॉलेज और एंग्लो अरबी कॉलेज के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना 17वीं सदी के आखिरी दशक में मुगल सम्राट औरंगजेब के दक्कन के अमीर और हैदराबाद के पहले निजाम के पिता गाजीउद्दीन खान ने की थी। उस समय इसे मदरसा गाजीउद्दीन खान नाम से जाना जाता था। हालांकि, मुगल साम्राज्य के कमजोर पड़ने के साथ मदरसा को बंद करना पड़ा।

थोड़े समय बाद 1972 में दिल्लीवालों ने साहित्य, विज्ञान और कला के लिए इस कॉलेज की स्थापना की। बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के अशिक्षित लोगों के उत्थान के लिए अंग्रेजी भाषा और साहित्य में पाठ्यक्रम पढ़ाना शुरू किया। यह निर्णय चार्ल्स ट्रेवेलियन ने लिया था। वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी के समय की सरकार ने प्रसिद्ध शिक्षक और भारत के राष्ट्रपति रहे डॉ. जाकिर हुसैन के नाम पर कॉलेज का नाम बदल दिया था। डीयू का यह एकमात्र कॉलेज है, जो बीए-ऑनर्स अरबी और फारसी में डिग्री प्रदान करता है।

यहां से निकलीं कई हस्तियां : कॉलेज से प्रसिद्ध उर्दू लेखक अली सरदार जाफरी और दिल्ली के नेता चौधरी प्रेम सिंह पढ़े हुए हैं, जिन्होंने एक ही पार्टी और निर्वाचन क्षेत्र से 12 बार जीत हासिल की थी। प्रेम सिंह ने लगातार 55 साल तक अजेय रहते हुए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया था।

सेंट स्टीफंस कॉलेज, स्थापना वर्ष : 1881
यह कॉलेज कला और विज्ञान वर्ग में उत्कृष्ट शिक्षाविदों के लिए जाना जाता है। एक फरवरी 1881 में कॉलेज की स्थापना कैम्ब्रिज मिशन ने की थी। मिशन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातकों का एक समूह था। कॉलेज की स्थापना का मकसद भारत में अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देना था। उस समय इसके लिए ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा आदेश दिया गया था। कॉलेज में रेवरेंड सैमुअल स्कॉट ऑलनट ने पहले प्रिंसिपल के तौर पर अपनी सेवाएं दी। 1922 में दिल्ली विश्वविद्यालय के अस्तित्व में आने के बाद कॉलेज विश्वविद्यालय के अंतर्गत आ गया।

यहां से निकले कई दिग्गज:  इस कॉलेज से ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के प्रमुख राजनेता सर छोटू राम, प्रतिष्ठित लेखक खुशवंत सिंह और कैबिनेट मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर पढ़कर निकले हैं।

हिंदू कॉलेज, स्थापना वर्ष : 1899
हिंदी कॉलेज विज्ञान, मानविकी, वाणिज्य और सामाजिक विज्ञान में विभिन्न स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए जाना जाता है। कॉलेज की स्थापना आधिकारिक तौर पर कृष्ण दासजी गुरवाले ने ब्रिटिश राज के खिलाफ राष्ट्रवादी संघर्ष को लेकर की थी। स्थापना का मुख्य उद्देश्य युवाओं को राष्ट्रवादी शिक्षा देना था। कॉलेज स्वतंत्रता संग्राम और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बौद्धिक और राजनीतिक बहस का गवाह भी रहा है। इस दौरान कुछ प्रोफेसरों और छात्रों को गिरफ्तार भी कर लिया गया था और कॉलेज कुछ महीनो तक बंद भी रहा था।

यहां से ये निकली ये शख्सियत : कॉलेज से रूडू लेखक मिर्जा फरहतुल्ला बेग, राजनीतिज्ञ व अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी और फिल्म लेखक व निर्देशक इम्तियाज अली पढ़े हुए हैं।

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