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क्यों और कैसे मनाया जाता है विश्व डाक दिवस? - श्रीनारद मीडिया

क्यों और कैसे मनाया जाता है विश्व डाक दिवस?

क्यों और कैसे मनाया जाता है विश्व डाक दिवस?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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हर साल दुनिया भर में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है। इस तारीख को चुनने के पीछे की वजह यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का स्थापना दिवस है।

इस डिजिटल दौर में जब संचार इंटरनेट के भरोसे होता जा रहा है, तब डाक संचार दिवस एक उम्मीद पैदा करता है। 100 साल से भी अधिक समय तक संचार क्षेत्र में डाक व्यवस्था ने लाइफलाइन की तरह काम किया है। अब इसका स्थान इंटरनेट ले रहा है। ऐसे में जरूरत है कि डाक व्यवस्था में कुछ जरूरी बदलाव कर उसे पुनर्स्थापित किया जाए। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए आज दुनिया भर में विश्व डाक दिवस मनाया जा रहा है।

कहा गया था, खत्म हो जाएगी डाक सेवा
जब 1990 के दशक में इंटरनेट ने एंट्री मारी तो सबने कहा कि अब डाक सेवा बहुत दिनों तक नहीं टिक पाएगी। इस बात को कहने के पीछे अपने तर्क थे। खबर और संदेश पहुंचाने का जो काम डाक सेवा तीन से चार दिन में कर पा रही थी। इंटरनेट ने वह काम मिनटों में संभव कर दिया। इंटरनेट ने संचार की दुनिया में समय और दूरी को बहुत छोटा कर दिया। इसके बाद भी डाक सेवा का महत्व और उसकी साख बरकरार रही।

यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन
साल 1874 में स्विटजरलैंड में यूपीयू यानी यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन
की स्थापना की गयी। इसके बाद से कई देश दुनिया भर में पोस्टल सेवा का लाभ ले रहे हैं। प्रति वर्ष यूपीयू के स्थापना दिवस के अवसर पर 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जाता है।

भारत मना रहा है राष्ट्रीय डाक सप्ताह
9 से 15 अक्टूबर के बीच भारत राष्ट्रीय डाक सप्ताह सेलिब्रेट कर रहा है। इसका उद्देश्य लोगों के बीच डाक सेवा के महत्व के प्रति जागरुकता पैदा करना है। साथ ही, डाक सेवा से जुड़े लोगों के काम के महत्व को जानना भी है।

इनोवेट टू रिकवर
विश्व डाक दिवस 2021 के लिए नई थीम रखी गयी है। इनोवेट टू रिकवर इसका मतलब है, बहाली के लिए परिवर्तन लाएं। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि हम सभी को मिलकर डाक सेवा को बचाने के साथ ही सुधारने का भी प्रयास करना है। जो इंटरनेट के दौर में एक बड़ी जरूरत है। यूपीयू ने निवेदन किया है कि डाक सेवा को पुनर्सथापित करने में मदद करें और इसे बेहतर बनाने के लिए नये विचार दें।

कैसे शुरू हुआ विश्व डाक दिवस
साल 1969 में यूपीयू कांग्रेस ने जापान के टोक्यो में सबसे पहले विश्व डाक दिवस मनाया था। इसे प्रस्तावित किया था भारतीय दल के एक सदस्य श्री आनंद मोहन नरूला ने। इसके बाद से प्रतिवर्ष 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मनाया जा रहा है। ताकि लोग संचार की दुनिया में डाक सेवा की अहमियत को समझ सकें।

डाक ने खुद को दिया है विस्तार
डाक सेवाओं ने अब स्वयं को सिर्फ दस्तावेजों के आदान-प्रदान तक ही सीनित नहीं रखा है। उन्होंने विस्तार के रूप में अब ई-कॉमर्स और ऑनलाइन शॉपिंग को भी शामिल कर लिया है।

तकनीक के बढ़ते दखल के बाद भी पोस्टकार्ड भेजने की परंपरा आज भी जिंदा है। इसे गति प्रदान की है भाजपा के मेरा पोस्टकर्ड पीएम को अभियान ने। प्रधानमंत्री तक संदेश भेजने वाले शहरवासियों के लिए महाराज बाड़ा स्थित मुख्य डाकघर के बाहर अलग से बाक्स लगा दिया है। विश्व डाक दिवस की पूर्व संध्या पर नईदुनिया ने शहर में स्थित पोस्ट आफिसों की स्थित का पता किया तो सामने आया लगातार पोस्ट कार्ड भेजने वालों की संख्या बढ़ रही है।

महाराज बाड़ा मुख्य डाकघर के पोस्टमास्टर ब्रजेश शर्मा ने बताया भाजपा के अभियान ने पोस्टकार्ड की उपयोगिता को बढ़ा दिया है। एक अक्टूबर से लेकर शुक्रवार की शाम तक पोस्ट आफिस से शहरवासियों ने आठ हजार पांच सौ पोस्टकार्ड खरीदे हैं। यह स्थिति बेहतर है।

भेजते हैं भाई को पोस्ट कार्ड: मुरार क्षेत्र में रहने वाले हरिकिशन कहते हैं वे इंटनेट मीडिया का उपयोग भलीभांति जानते हैं, लेकिन फिर भी शिवपुरी जिले के सिरसौद गांव में रहने वाले अपने भाई पोस्टकार्ड पर समाचार लिखकर भेजते हैं। खास बात यह है हरिकिशन के एंड्रायन फोन नहीं है, जबकि वे सक्षम हैं। 55 वर्षीय हरिकिशन का कहना वे पुरानी आदतों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। मानते हैं इस तकनीक की वजह से रिश्ते कमजोर हो चुके हैं। इसलिए अपने भाई को पोस्टकार्ड पर समाचार लिखकर भेजते हैं और उसके भी पोस्टकार्ड का इंतजार करते हैं।

हमारे लिए खुशी की बातः रेलवे स्टेशन के पोस्टमास्टर एलपी गुप्ता ने बताया शहरवासियों ने सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए फिर से पोस्टकार्ड का उपयोग करना शुरू कर दिया है। यह हमारे लिए खुशी की बात है। यह सब पोस्टकार्ड पीएम को अभियान की वजह से हुआ है। पहले एक माह में 200 पोस्ट कार्ड बिका करते थे, लेकिन अब चार दिन में आंकड़ा 700 तक पहुंच गया है।

आज भी पोस्टकार्ड से बताते हैं फरमाइशः आकाशवाणी के अधिकारियों का कहना है आज भी श्रोता अपनी फरमाइशों को पोस्टकार्ड पर लिखकर भेजते हैं। इससे स्पष्ट है पोस्टकार्ड का जमाना कभी नहीं जा सकता। हर दिन के एक घंटे के फरमाइशी कार्यक्रम के लिए हमारे पास लगभग 35 पोस्टकार्ड आते हैं। कोविड की वजह से बीच में संख्या कम हो गई थी, लेकिन फिर वृद्धि हो चुकी है।

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