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भारतीयों ने विदेशी धरती से बुलंद की थी आवाज,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश की आजादी के 75 साल पूरे हो गए हैं। खुशी में जश्न मना रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की ओर से इसे आजादी का अमृत महोत्सव नाम दिया गया है। देश को आजादी दिलाने के लिए सेनान‍ियों को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। आजादी की इस लड़ाई में हजारों लोगों ने आहूतियां दी। इसमें विदेशी धरती से भी भारतीय मूल के लोगों ने अपना अमूल्‍य योगदान दिया। आइए जानें किन भारतीय महापुरुषों ने विदेश में रहते हुए इस लड़ाई में महत्‍वपूर्ण भूमिकाएं निभाई…

महेंद्र प्रताप सिंह

जाट परिवार से ताल्‍लुक रखने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस जि‍ले के मुरसान रियासत के राजा थे। वह विद्वान और विलक्ष्‍ण प्रतिभा के धनी थे। उन्‍होंने आजादी की लड़ाई में लेखक और पत्रकार की भूमिका भी निभाई। उन्होंने पहले विश्वयुद्ध के दौरान अफगानिस्तान जाकर पहली निर्वासित सरकार बनाई। उन्‍होंने एक दिसंबर, 1915 में खुद को इस सरकार का राष्‍ट्रपति घोषित किया।

सुभाष चंद्र बोस से पहले उठाया था कदम

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ब्रिटिश राज के दौरान स्वतंत्र भारतीय सरकार की घोषणा करके अंग्रेजों के खिलाफ देश के बाहर भारत की आजादी का बिगुल फूंक दिया था। राजा महेंद्र प्रताप सिंह के बाद सुभाष चंद्र बोस ने भी ऐसा ही किया था। इस कदम के लिहाज से दोनों नेताओं में काफी समानता दिखती है।

रूस, जर्मनी और जापान जैसे देशों से मांगी मदद

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक राजा महेंद्र प्रताप सिंह 32 साल तक देश से बाहर रहे। उन्‍होंने आजादी की लड़ाई में रूस, जर्मनी और जापान जैसे देशों से मदद मांगी। वह साल 1946 में भारत लौटे। वतन लौटने के बाद उन्‍होंने सबसे पहले वर्धा में महात्मा गांधी से मुलाकात की। चूंकि राजा महेंद्र प्रताप सिंह घोषित तौर पर कांग्रेस में नहीं रहे… इसलिए उन्हें कांग्रेस सरकारों में कोई महत्‍वपूर्ण जि‍म्मेदारी निभाने का मौका नहीं मिला…

लाला हरदयाल

लाला हर दयाल सिंह माथुर यानी लाला हरदयाल का जन्म 14 अक्टूबर, 1884 को दिल्ली में हुआ था। दिल्ली के सेंट स्टीफंस कालेज से संस्कृत स्नातक लाला हरदयाल ने सन 1905 में आक्सफोर्ड से दो छात्रवृत्तियां ली। लाला हरदयाल ने अमेरिका से भारत की आजादी को लेकर आवाज बुलंद की।

अमेरिका से फूंका आजादी का बिगुल

लाला हरदयाल को लगा कि अमेरिका में रह रहे भारतीयों को शिक्षित करना जरूरी है। इसके लिए उन्‍होंने गदर नाम का उर्दू और गुरुमुखी में एक साप्ताहिक पत्र निकाला। वह खुद इसके संपादक थे। बाद में यह लड़ाई और परवान चढ़ी और 1913 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में अंग्रेजी साम्राज्य को जड़ से उखाड़ने के लिए गदर पार्टी का गठन किया गया। इसने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष का एलान किया। यह लड़ाई भारत छोड़ो आंदोलन के लिए भी प्रेरणास्रोत बनी।

राश बिहारी बोस

पश्चिम बंगाल में साल 1886 में जन्‍में रासबिहारी बोस ने कम उम्र से ही अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत शुरू कर दी थी। वह अंग्रेजों को बलपूर्वक भारत से बाहर खदेड़ने के समर्थक थे। उन्होंने अमेरिका में गठित हुई गदर पार्टी का भी नेतृत्व किया। लाला लाजपत राय की सलाह पर वह जापान गए ‘न्यू एशिया’ नाम का अखबार निकाला। राश बिहारी बोस ने मार्च 1942 में टोक्यो में ‘इंडियन इंडिपेंडेंस लीग’ की स्थापना की। इसमें भारत की आजादी के लिए एक सेना के गठन का प्रस्ताव था। यहीं से आजाद हिंद फौज के गठन की शुरुआत हुई। सुभाष चंद्र बोस को इसका अध्यक्ष बनाया गया।

दादाभाई नौरोजी

ब्रिटेन के पहले भारतीय सांसद दादाभाई नौरोजी ने भी भारत की आजादी में अमूल्‍य योगदान दिया था। दादाभाई नौरोजी सात बार इंग्लैंड गए। उन्‍होंने लंदन में अपनी जिंदगी के तीन दशक से ज्‍यादा वक्त बिताया। उन्‍हें ‘द ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है! उन्होंने ब्रिटेन में संसद सदस्य रहते हुए भारत के विरोध को रखा और अंग्रेजों की लूट के मुद्दे को ब्रिटिश संसद में उठाया।

सरदार सोहन सिंह भकना

सरदार सोहन सिंह भकना का जन्म जनवरी 1870 में अमृतसर के खुत्रा खुर्द गांव में हुआ था। सरदार सोहन सिंह भकना सन 1907 में अमेरिका पहुंचे और वहां से भारत की आजादी के पक्ष में आवाज बुलंद की। किसान परिवार से ताल्‍लुक रखने वाले सरदार सोहन सिंह भकना अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेकने के लिए गठित हुई गदर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष थे। गदर पार्टी ने साम्राज्यवाद के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष का एलान किया था।

 

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