भारतीय राजनीतिक पर कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रभाव
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
साम्यवाद क्या है?
- परिचय:
- साम्यवाद कार्ल मार्क्स से जुड़ी एक राजनीतिक और आर्थिक विचारधारा है। यह एक वर्गहीन समाज की वकालत करता है जहाँ सभी संपत्ति और धन का सामूहिक स्वामित्व हो।
- मार्क्स ने वर्ष 1848 में अपनी रचना “कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र” में इन विचारों को लोकप्रिय बनाया।
- मार्क्स ने तर्क दिया कि पूंजीवाद असमानता और शोषण को जन्म देता है, जिससे श्रमिक वर्ग (सर्वहारा वर्ग) की कीमत पर कुछ धनी लोगों को लाभ होता है।
- उद्देश्य:
- मार्क्स ने एक ऐसे संसार की कल्पना की थी जहाँ श्रम स्वैच्छिक हो और धन सभी नागरिकों के बीच समान रूप से साझा किया जाए।
- मार्क्स ने प्रस्ताव दिया कि अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण वर्ग भेद को समाप्त कर देगा।
- साम्यवाद के प्रमुख उदाहरण सोवियत संघ और चीन थे। वर्ष 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया लेकिन चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में कुछ पूंजीवाद को शामिल करने के लिये बड़े पैमाने पर संशोधन किया है।
- साम्यवादी आर्थिक प्रणाली:
- साम्यवाद का लक्ष्य एक ऐसी प्रणाली स्थापित करना था, जिसमें वर्ग भेद समाप्त हो जाए और उत्पादन के साधनों पर जनता का स्वामित्व हो।
- इसकी विशेषता एक नियंत्रित अर्थव्यवस्था है, जहाँ संपत्ति का स्वामित्व राज्य के पास होता है और वस्तुओं का उत्पादन स्तर एवं कीमतें राज्य द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
- व्यक्ति शेयर या अचल संपत्ति जैसी निजी संपत्ति के मालिक नहीं हो सकते।
- इसका मुख्य लक्ष्य पूंजीवाद (निजी स्वामित्व द्वारा शासित एक आर्थिक प्रणाली) को खत्म करना है।
- मार्क्स पूंजीवाद से घृणा करते थे इसमें क्योंकि सर्वहारा वर्ग का शोषण किया जाता था और राजनीति में उसका अनुचित प्रतिनिधित्व किया जाता था।
भारत में साम्यवाद का इतिहास और प्रभाव क्या है?
- गठन: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का गठन 17 अक्तूबर 1920 को ताशकंद में एम.एन. रॉय जैसे भारतीय क्रांतिकारियों के योगदान से हुआ था।
- दिसंबर 1925 में, कानपुर में एक खुले सम्मेलन में CPI की स्थापना हुई जिसका मुख्यालय बॉम्बे में था।
- स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- साम्यवादी विचारों ने कॉन्ग्रेस को प्रभावित किया, जिससे वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मज़बूत रूख की ओर बढ़ गई, जो हल्के प्रतिरोध से अलग था।
- अंग्रेज़ों ने गिरफ़्तारियाँ करके और षड्यंत्र के मामले चलाकर प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिनमें सबसे उल्लेखनीय मेरठ षड्यंत्र मामला (वर्ष 1929-1933) था।
- वर्ष 1943 के बंगाल अकाल के दौरान कम्युनिस्टों ने राहत प्रयासों का आयोजन किया।
- जन संघर्ष: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में मज़दूर वर्ग के संघर्षों और किसान लामबंदी में उछाल देखा गया, जिसमें वर्ष 1946 में रॉयल इंडियन नेवी का विद्रोह भी शामिल था।
- तेभागा आंदोलन: बंगाल में बेहतर काश्तकारी या शेयरक्रॉपिंग अधिकारों की मांग को लेकर एक महत्त्वपूर्ण किसान आंदोलन, जिसमें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रदर्शन किया गया।
- तेलंगाना आंदोलन (वर्ष 1946-1951): उन्होंने सामंती शोषण और निरंकुश शासन के खिलाफ युद्ध लड़ा, जिसके परिणामस्वरूप भूमि पुनर्वितरण हुआ।
- स्वतंत्रता के बाद (वर्ष 1947):
- पहली लोकसभा (वर्ष 1952-57) में विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) थी।
- वर्ष 1957 में, CPI ने केरल में राज्य चुनाव जीता। केरल स्वतंत्र भारत का पहला राज्य था जिसने लोकतांत्रिक तरीके से कम्युनिस्ट सरकार का चुनाव किया।
- साम्यवाद आंदोलन में विभाजन: CPI के कुछ सदस्यों का मानना था कि कम्युनिस्टों को कॉन्ग्रेस पार्टी के भीतर वामपंथी समूह के साथ सहयोग करना चाहिये जो साम्राज्यवाद और सामंतवाद दोनों का विरोध करता था।
- इससे वर्ष 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दो भागों में विभाजित हो गई।
- कॉन्ग्रेस के साथ सहयोग करने के मार्ग का विरोध करने वाले गुट ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), या CPI (M) का गठन किया, जबकि दूसरे गुट ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) नाम बरकरार रखा।
- वर्ष 1969 में माओत्से तुंग की तरह सशस्त्र संघर्ष की आवश्यकता पर विश्वास करते हुए, कम्युनिस्टों के एक अन्य समूह ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) या CPI (ML) का गठन किया।
माओवाद क्या है?
- परिचय:
- माओवाद चीन के माओ त्से तुंग द्वारा विकसित साम्यवाद का एक रूप है।
- यह सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और सामरिक गठबंधनों के संयोजन के माध्यम से राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा करने का एक सिद्धांत है।
- माओवादी अपने विद्रोह सिद्धांत के अन्य घटकों के रूप में राज्य संस्थाओं के खिलाफ अधिप्रचार और दुष्प्रचार का भी प्रयोग करते हैं।
- माओ ने इस प्रक्रिया को ‘दीर्घकालिक जनयुद्ध’ कहा, जहाँ सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिये ‘सैन्य लाइन’ पर ज़ोर दिया जाता है।
- केंद्रीय विषय:
- माओवादी विचारधारा का केंद्रीय विषय राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा करने के साधन के रूप में हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का प्रयोग है।
- माओवादी विद्रोह सिद्धांत के अनुसार ‘हथियार रखना अपरिहार्य है’।
- माओवादी विचारधारा हिंसा का महिमामंडन करती है और पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) के कैडरों को उनके प्रभुत्व में आबादी के बीच आतंक उपन्न करने के लिये हिंसा के सबसे बुरे रूपों में विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है।
- माओवादी विचारधारा का केंद्रीय विषय राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा करने के साधन के रूप में हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का प्रयोग है।
- भारत में माओवादियों का प्रभाव:
- भारत में सबसे बड़ा और सबसे हिंसक माओवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (Maoist / माओवादी) है।
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन वर्ष 2004 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्स वार (पीपुल्स वार ग्रुप) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (MCCI) के विलय के माध्यम से हुआ था।
- CPI (माओवादी) और इसके सभी फ्रंट संगठन संरचनाओं को गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल किया गया है।
- फ्रंट संगठन मूल माओवादी पार्टी की शाखाएँ हैं, जो कानूनी दायित्व से बचने के लिये एक पृथक अस्तित्व का दावा करती हैं।
मार्क्सवाद और माओवाद के बीच क्या अंतर है?
- क्रांति का फोकस: दोनों ही सर्वहारा क्रांति, जो समाज को बदल देगी, के सिद्धांत पर केंद्रित हैं।
- मार्क्सवाद शहरी श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित करता है जबकि माओवाद किसान या खेती करने वाली आबादी पर ध्यान केंद्रित करता है।
- औद्योगीकरण पर दृष्टिकोण: मार्क्सवाद एक आर्थिक रूप से सुदृढ़ राज्य में विश्वास करता है जो औद्योगिक है।
- माओवाद का एक व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण है जो कृषि को भी आवश्यक महत्त्व देता है।
- सामाजिक परिवर्तन की प्रेरक शक्ति: मार्क्सवाद के अनुसार सामाजिक परिवर्तन अर्थव्यवस्था द्वारा संचालित होता है।
- हालाँकि माओवाद ‘मानव स्वभाव के लचीलापन’ पर ज़ोर देता है। माओवाद इस बारे में उल्लेख करता है कि कैसे केवल इच्छाशक्ति का प्रयोग करके मानव स्वभाव को बदला जा सकता है।
- समाज पर अर्थव्यवस्था का प्रभाव: मार्क्सवाद का मानना था कि समाज में होने वाली हर चीज़ अर्थव्यवस्था से जुड़ी होती है।
- माओवाद का मानना था कि समाज में होने वाली हर चीज़ मानव इच्छा का परिणाम है।
भारत में साम्यवाद का एक महत्त्वपूर्ण और जटिल इतिहास रहा है, जिसने राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों परिदृश्यों को प्रभावित किया है। बुद्धदेव भट्टाचार्य जैसे नेताओं ने राज्य की नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेषकर पश्चिम बंगाल में जहाँ साम्यवाद दशकों तक हावी रहा। जबकि विचारधारा ने सामाजिक न्याय और श्रमिकों के अधिकारों को बढ़ावा दिया, इसके कार्यान्वयन को अक्सर चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विशेषकर समानता एवं सांप्रदायिक सद्भाव के सिद्धांतों के साथ औद्योगिक विकास को संतुलित करने में।
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