भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय लालू नगर मधेपुरा के हिंदी विभाग द्वारा दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन माननीय कुलपति प्रोफेसर डॉक्टर आर के पी रमन ,प्रति कुलपति डॉ आभा सिंह, मानविकी संकाय के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर विनय कुमार चौधरी ,हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ उषा सिन्हा, प्रो. डॉ शंकर प्रसाद ,डॉक्टर जंगबहादुर पांडे व अन्य के द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया गया।इससे पूर्व आए तमाम अतिथियों के द्वारा महामना भूपेंद्र नारायण मंडल के तैलीय चित्र पुष्पांजलि अर्पित की गई तत्पश्चात विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया गया। मंचस्थ अतिथियों का पौधा व अंगवस्त्र से सभी अतिथियों का स्वागत किया गया। उसके बाद विद्यालय के छात्रों के द्वारा स्वागत गीत की प्रस्तुति हुई।

उद्घाटनकर्ता भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा के माननीय कुलपति डॉ आरकेपी रमन ने कहा हिंदी विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का सफलतापूर्वक आयोजन होना विश्वविद्यालय के लिए गर्व की बात है उन्होंने सेमिनार की महत्ता पर विशेष रूप से प्रकाश डाला। प्रति कुलपति डॉ आभा सिंह ने कहा हिंदी विभाग द्वारा पहली बार अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन होने से सुखद अनुभूति हो रही है।

इससे पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ उषा सिन्हा ने स्वागत वक्तव्य देते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया।
संगोष्ठी का विषय प्रवेश करते हुए मानविकी संकाय के संकाय अध्यक्ष डॉक्टर डॉक्टर विनय कुमार चौधरी ने कहा की साहित्य में राष्ट्र की चर्चा भक्तिकाल से शुरू होती है और रीति काल में भूषण जैसे कवियों ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया।


उन्होंने भारतेन्दु की पंक्ति को दोहराया कि
” आबहुं मिलके रोईं सब हाह भारत भाई।”
बीज वक्तव्य देते हुए हिंदी विभाग पटना विश्वविद्यालय ,पटना के डॉ शंकर प्रसाद ने कहा कि हमारी हिंदी काफी समृद्ध है उन्होंने क्लिस्ट हिंदी के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि सिगरेट और स्टेशन जैसे शब्द हिंदी में धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है ।इनका हिंदी बताते हुए हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग करने की बात कही।

ऑनलाइन गूगल मीट के माध्यम से जुड़े हिंदी संगम फाउंडेशन न्यू जर्सी अमेरिका के अध्यक्ष श्री अशोक ओझा ने भारत की राष्ट्रभाषा अब तक हिंदी नहीं होने का दर्द साझा करते हुए कहा कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी का ना होना अत्यंत चिंताजनक है।
आमंत्रित वक्ता रांची विश्वविद्यालय से आए डॉक्टर जंग बहादुर पांडे ने अत्यंत जोशीले अंदाज में कहा कि आज हिंदी को जितना समृद्धक्षहोना चाहिए उसमें कहीं ना कहीं कुछ कमी है।

राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्ति दोहराते हुए कहा कि
” रे रोक युधिष्ठिर को ना यहां जाने दो इनको स्वर्गाधीर ।
पर फिरा हमें गांडीव गदा लौटा दे अर्जुन- भीम वीर।।”

आज हिंदी को समृद्ध करने के लिए हमें अर्जुन औल भीम जैसे योद्धाओं की जरूरत है जो समय आने पर अपना गांडीव और गदा उठा सके।कबीर पारख निकेतन के संस्थापक श्री अभय साहब ने हिंदी भाषा और साहित्य पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य वह हाथी का पांव है जिसमें सब समा जाता है।


फिनलैंड से जुड़े मिको विटा माकी ने कहा कि सातवीं भाषा के रूप में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल करने के लिए हमें अभी और अपनी मजबूती से पक्ष रखना होगा।आइक्यूएसी के निदेशक डॉ नरेश कुमार, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ वीणा कुमारी ने भी उपरोक्त विषय पर अपनी बातें रखीं।

संगोष्ठी का संचालन विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉक्टर पूजा गुप्ता व धन्यवाद ज्ञापन सहायक प्राध्यापक डॉ प्रफुल्ल कुमार ने किया।इस अवसर पर वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह काश्यप, सह सचिव मुन्ना कुमार, डॉ रश्मि कुमारी, विभीषण कुमार, सहित विश्वविद्यालय के पदाधिकारी विभिन्न महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य, प्राध्यापक ,शिक्षक व सैकड़ों की संख्या में शोधार्थी व छात्र उपस्थित रहे।

संगोष्ठी का द्वितीय सत्र जो वैचारिकी सत्र था। डॉ विनय कुमार चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित की गई।
इस सत्र में डॉ आलोक कुमार, डॉक्टर कंचन झा ने उपरोक्त विषय “हिंदी भाषा ,साहित्य और राष्ट्रीय चेतना पर विस्तार से अपनी बातें रखीं। संचालन सह सचिव डॉ प्रफुल्ल कुमार ने किया।

सांस्कृतिक संध्या:

अंतिम सत्र सांस्कृतिक कार्यक्रम का था जिसमें डॉ शंकर प्रसाद ने प्रख्यात ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह के द्वारा गाये होश वालों को खबर क्या…. हम तो हैं परदेस में…..सहितविभिन्न गीतों को बखूबी निभाया। अभय साहब ने भजन “जंगल सा दृश्य हो गया बाजार देखिए” की शानदार व प्रभावपूर्ण प्रस्तुति दी। तबले पर संगत ओम आनंद ने किया। युवा गायक आलोक कुमार ने भी अपनी प्रस्तुति दी।
अंत में लोक नृत्य की प्रस्तुति सृजन दर्पण के कलाकारों द्वारा दी गई ।संगोष्ठी में राजकमल प्रकाशन समूह पटना‌ व साहित्य सागर मधेपुरा द्वारा बुक स्टॉल भी लगाया गया है।

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