अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस:लैंगिक असमानताओं और पूर्वाग्रहों को दूर कर ही होगा किशोरियों और महिलाओं का बेहतर भविष्य सुनिश्चित:  नफीसा बिंते शफ़ीक़, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ़ बिहार

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस:लैंगिक असमानताओं और पूर्वाग्रहों को दूर कर ही होगा किशोरियों और महिलाओं का बेहतर भविष्य सुनिश्चित:
नफीसा बिंते शफ़ीक़, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ़ बिहार

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श्रीनारद मीडिया‚ पटना,  (बिहार)

 

बिहार एक बढ़ते हुए युवा आबादी वाला राज्य है जिसमें 20% से अधिक किशोर (10-19 वर्ष) आयु वर्ग के हैं। 2011 में, 2.3 करोड़ से अधिक किशोर थे जिसमें एक करोड़ से अधिक लड़कियाँ थीं (महापंजीयक कार्यालय, भारत सरकार और जनगणना आयुक्त, भारत सरकार)। किशोरावस्था के दौरान, उनमें कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं जैसे नए कौशल सीखना, नए अवसरों की तलाश करना, अपरिचित भावनाओं को अनुभव करना और जोखिम उठाना। इस दौरान वयस्क जीवन की तैयारी शुरू हो जाती है। परिवार, समाज और औपचारिक संस्थानों जैसे- स्कूलों और कॉलेजों में जो कुछ भी एक किशोर सीखता है उसका समामेलन ही जीवन कौशल है। सभी किशोर समान रूप से लाभान्वित नहीं होते क्योंकि जीवन कौशल को सीखने में अनेक कारकों का योगदान होता है। जीवन कौशल के अनुभव गरीबी और अभाव, लैंगिक असमानता और भेदभाव के साथ साथ आते हैं। जेंडर हमारे समाजीकरण, सामाजिक अंतःक्रिया और इसके विस्तार में एक बड़ी भूमिका निभाता है और यह निर्धारित करता है कि क्या कोई अपनी पूरी मानवीय क्षमता हासिल करता है या अपने जीवन में केवल लैंगिक रूढ़िबद्धता के साथ रहता है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: पिछले दशक की उपलब्धि
हर साल की भाँति, राज्य 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है, इस वर्ष का विषय “पूर्वाग्रह तोड़ो” है। हमारे समाज में लड़कियां और महिलाएं हर कदम पर पूर्वाग्रह की शिकार होती हैं। लड़कियों और महिलाओं के अस्तित्व, विकास और भागीदारी के स्पेक्ट्रम को सुनिश्चित करने के लिए उनके पूरे जीवन चक्र में इस पूर्वाग्रह को तोड़ने के लिए सामूहिक प्रयासों की तब तक आवश्यकता है जब तक कि उन्हें पूरी क्षमता का एहसास न हो जाए। लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए लैंगिक असमानताओं और पूर्वाग्रहों को दूर करने हेतु , बिहार राज्य ने किशोरियों और महिलाओं के बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर एक समृद्ध राज्य के लिए निवेश करने की दिशा में अग्रणी कदम उठाए हैं।

पिछले दो दशकों मे बिहार ने कई सार्थक उपलब्धियाँ हासिल की हैं । 2011 में हमने महिला साक्षरता में 50% का आंकड़ा पार किया। पंचायती राज संस्थाओं के विभिन्न स्तरों में 50% आरक्षण सुनिश्चित किया गया जिससे उनकी भागीदारी लक्ष्य से अधिक हो गयी। जबकि सामान्य तौर पर, प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर तो लड़कों और लड़कियों की समान भागीदारी है और राज्य ने उच्च माध्यमिक शिक्षा में किशोरियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए हाई स्कूलों की दूरी कम करने की दिशा में सार्थक काम किया है। मैट्रिक, इंटरमीडिएट और स्नातक पास करने की उपलब्धियों को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना के अंतर्गत प्रोतशहन राशि सुनिश्चित किया गया और लड़कियों के लिए रियायती दर पर शिक्षा ऋण को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक करोड़ से अधिक महिलाओं की सामूहिक सदस्यता वाली महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) वित्तीय स्वायत्तता और महिलाओं की संस्था निर्माण की दिशा में एक उपलब्धि है। SHG की सदस्य न केवल कुछ व्यावसायिक मॉडल और उद्यम का नेतृत्व कर रहीं हैं जैसे कि किसान उत्पादक कम्पनियाँ, और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अग्रणी सामाजिक उद्यमों विशेष रूप से सरकारी अस्पतालों में कैंटीन चलाने के साथ साथ शराब, दहेज, बाल विवाह और अन्य लिंग आधारित हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध भी लड़ रहीं है। राज्य का सर्वोच्च नेतृत्व महिलाओं और लड़कियों के लिए एक समान और समावेशी राज्य के लिए गहरे पितृसत्तात्मक और लिंग मानदंडों की सोच को तोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

जेंडर ट्रैन्स्फ़र्मेशन: लिंग परिवर्तनकारी दृष्टिकोण
गहरे पितृसत्तात्मक मानदंडों और लिंग भेदभाव को कम करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि लिंग परिवर्तनकारी दृष्टिकोण पर काम किया जाए जो समय की आवश्यकता भी है । इसका सीधा सा मतलब है कि लड़कों और लड़कियों के लिए एक समान दुनिया तब तक हासिल नहीं की जा सकती जब तक कि जेंडर के संरचनात्मक ढाँचे पर काम न हो और भेदभाव को दूर नहीं किया जाए। इसके लिए मौजूदा सत्ता संबंधों और यथास्थिति को चुनौती किया जाना ज़रूरी है साथ ही पुरुषों एवं लड़कों को परिवर्तन प्रक्रिया में भागीदार और समर्थक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। विश्व बैंक द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था तब आगे बढ़ती है जब कार्यबल में महिलाओं का समान रूप से प्रतिनिधित्व रहता है। इसके लिए महिलाओं और लड़कियों को उनके पूरे जीवन चक्र में समान अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है, जैसे कि शिक्षा और कौशल में समान अवसर देना और उसे सतत रखना और अंत में पुरुषों और परिवारों द्वारा लिंग समान लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सहयोग करना। इसके लिए यह भी अनिवार्य है कि राज्य में लिंग अनुकूल नीतियां और कार्यक्रम हों और संस्थागत तंत्र के माध्यम से प्रभावी कार्यान्वयन भी सुनिश्चित हो ।

यूनिसेफ़ के साथ कई देशों (बांग्लादेश, तिमोर-लेस्ते, लेसोथो, नेपाल, अजरबैजान, सीरिया और सूडान) में किशोरों-किशोरियों के लिए और उनके साथ काम करने के मेरे अपने अनुभव ने सिखाया कि उचित और पर्याप्त ज्ञान तथा समुचित कौशल प्रदान करके और एक सक्षम और सुरक्षात्मक वातावरण सुनिश्चित कर किशोरों किशोरियों की मानसिकता को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। वे सामाजिक परिवर्तन के सक्रिय वाहक बन जाते हैं और सामाजिक मानदंडों पर भी सवाल उठाने लगते हैं। हमने किशोरों-किशोरियों में पूर्वाग्रहों को तोड़ने और आगे बढ़ने की असीम शक्ति देखी है। बांग्लादेश का अनुभव किशोर लड़कियों पर केंद्रित कार्यक्रम को प्रदर्शित करता है, जिसमें बाद में लड़कों को सहयोगी के रूप में शामिल किया गया और इससे बाल विवाह को कम करने में मदद मिली। इस कार्यक्रम में सकारात्मक मर्दानगी प्रदर्शित करने के लिए लड़कों को भी बेहतर भाई, पति और पिता तथा सक्रिय सामाजिक परिवर्तन एजेंट बनने के लिए संवेदनशील बनाया गया।

क्या कर सकती है सरकार और सामाजिक संस्थाए:
सरकार – दहेज और बाल विवाह, शराब पर प्रतिबंध और अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रासंगिक कार्यक्रम चला रही है। लगभग सभी लड़कियां स्कूल जाना शुरू कर दी हैं और उन्हें स्कूल में नियमित उपस्तिथि बनाए रखने के लिए कई प्रोत्साहन सुनिश्चित किए गए हैं। साथ ही, सरकार अपने प्रमुख 7 संकल्पों के तहत समग्र विकास के माध्यम से विकास के उच्च स्तर को प्राप्त करने पर भी काम कर रही है। यूनिसेफ किशोर विकास पर निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो एक -बड़ा अवसर प्रदान करता है। यह सही समय है कि राज्य एक बहु-क्षेत्रीय, लिंग परिवर्तनकारी, जोखिम-सूचित और न्यायसंगत कार्य योजना को अपनाए, जिसे उच्चतम स्तर की राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिबद्धता द्वारा बजट और समन्वित किया जाए। इन उद्देश्यों को पाने के लिए यह ज़रूरी है कि योजना और वित्त विभागों को राज्य के बेहतर भविष्य के लिए किशोरों- किशोरियों के विकास को ध्यान में रख कर निवेश योजनाओं को देखना चाहिए।

नागरिक समाज संगठन समाज में परिवर्तनकारी परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अक्सर, ये वो होते हैं जो कई नवाचार करते हैं, लोगों को शामिल करते हैं, लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं और जानकारी को जमीन पर लाने में सेतु की तरह कार्य करते हैं। बड़ी संख्या में SHG की सदस्यता में परिवार और समाज में कुछ लिंग आधारित भूमिकाओं को फिर से परिभाषित करने के लिए लिंग परिवर्तनकारी एजेंडा चलाने की क्षमता है। पुरुषों और लड़कों के साथ सहयोगी के रूप में काम करना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे सरकार, व्यवसाय और घर के बाहर कार्यकारी भूमिका का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी मानसिकता को लिंग समान मानदंडों में बदलने से राज्य में बेहतर लिंग परिणामों में तेजी लाने में मदद मिलेगी जिससे देश को 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।

लेखिका: यूनिसेफ बिहार की राज्य प्रमुख हैं; यह उनके अपने विचार हैं

 

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