International Yoga day: आत्मा और परमात्मा के संयोग को हम योग कहते हैं।

International Yoga day: आत्मा और परमात्मा के संयोग को हम योग कहते हैं।

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अयोग्य वह है जो असंतुलित है। असंतुलन आलस्य की निशानी है। आलसी व्यक्ति असंतुलित होता है। अयोग्य व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए अनुपयुक्त होता है। योग आलस्य और प्रमाद को दूर कर व्यक्ति को संतुलित करता है। संतुलन कर्मठता की निशानी है। कर्मठ व्यक्ति संतुलित होता है। योग्य व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त होता है। योग व्यक्ति को योग्य बनाता है। अहंकार अयोग्यता का प्रतीक है। विनम्रता योग्यता की निशानी है।

भगवान् राम विनम्र थे। इसलिए वह पुरुषोत्तम राम कहलाए। रावण अहंकारी था। अतएव वह असुर कहलाया। योग हमे कर्म, ज्ञान और भक्ति तीनो से जोड़ता है। ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग ये तीन मुख्य योग हैं। असुर शक्तियों से जुड़ना अयोग्यता है। दैवीय शक्तियों से जुड़ना योग्यता है। योग के माध्यम से व्यक्ति दैवीय शक्तिओं से जुड़ता है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। योग्यता चरैवेति-चरैवेति के सिद्धांत पर आधारित है।

ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ में चरैवेति शब्द का उल्लेख मिलता है। चरैवेति अर्थात चलते रहना, रुकना नहीं। हर स्थिति और परिस्थिति में आगे ही आगे बढ़ते चलने का नाम जीवन है। जिस प्रकार बहते हुए जल में पवित्रता बनी रहती है उसी प्रकार निरंतर चलने वाले व्यक्ति में कर्मठता बनी रहती है। अयोग्यता ठहराओ के सिद्धांत पर आधारित है। अयोग्य व्यक्ति ठहरे हुए जल के समान है जबकि योग्य व्यक्ति बहते हुए जल के समान है।

योग आंतरिक शांति या मन की शांति बनाए रखता है, जो मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है। योग से शांति, सामंजस्यता और शालीनता का विकास होता है। योग आत्मनिर्भरता के मार्ग को प्रशस्त करता है। आत्मनिर्भरता, रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है।

हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्श शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रूप (प्रतीक) के तौर पर किया जाता है। रामराज्य, लोकतन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधी जी की चाह थी। योग रामराज्य की परिकल्पना को स्थापित करता है।

आत्मनिर्भर भारत की नींव गांधी के रामराज्य पर टिकी थी। योग का अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाना वसुधैव कुटुंबकम(पूरी धरती एक परिवार है) को चरितार्थ करता है। अतएव किसी भी देश के विकास में योग की अहम् भूमिका होती है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रत्येक वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2023 की थीम/प्रसंग है- ‘वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग’। वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ है- पृथ्वी एक कुटुंब (परिवार) के समान है। इस थीम से तात्पर्य धरती पर सभी लोगों के स्वास्थ्य के लिए योग की उपयोगिता से है।

योग एक आध्यात्मिक प्रकिया है। योग शरीर, मन और आत्मा को एक सूत्र में बांधता है। योग जीवन जीने की कला है। योग दर्शन है। योग स्व के साथ अनुभूति है। योग से स्वाभिमान और स्वतंत्रता का बोध होता है। योग, मनुष्य व प्रकृति के बीच सेतु का कार्य करता है। योग मानव जीवन में परिपूर्ण सामंजस्य का द्योतक है। योग ब्रह्माण्ड की चेतना का बोध करता है। योग बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक है। योग सूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है।

यह छः दर्शनों में से एक शास्त्र है और योग शास्त्र का एक ग्रंथ है। योग सूत्रों की रचना 3000 साल के पहले पतंजलि ने की। योगसूत्र में चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान है। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) ही योग है। अर्थात मन को इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है। महर्षि पतंजलि ने योग को ‘चित्त की वृत्तियों के निरोध’ (योगः चित्तवृत्तिनिरोधः) के रूप में परिभाषित किया है।

आजकल के भौतिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से पीड़ित है। ज्यादातर बीमारियों की जड़ तनाव है। योग तनाव से मुक्ति का साधन है। तनाव शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है- तन और आव। तन  का तात्पर्य शरीर से है और आव का तात्पर्य घाव से है। अर्थात वह शरीर जिसमे घाव है। द्वेष, जलन, ईर्ष्या रूपी घाव व्यक्ति को तनाव रूपी नकारात्मकता की ओर धकेल देता है। तनाव वो खिचाव है जो शरीर को स्वतंत्र नहीं होने देता जिसके परिणाम स्वरुप शरीर में कई प्रकार की बीमारी जन्म ले लेती है। तनाव एक बीमारी है जो दिखाई नहीं देती है।

शरीर का ऐसा घाव जो दिखाई न दे, तनाव कहलाता है। तनाव से ग्रसित इंसान को सारा समाज पागल दिखाई देता है। तनाव वो बीमारी है जिसमे इंसान हीन भावना से ग्रसित होता है। तनाव मूल रूप से विघर्सन है। घिसने की क्रिया ही विघर्सन कहलाती है। घिसना अर्थात विचारों का नकारात्मक होना या मन का घिस जाना। अतएव तनाव मनोविकार है। तनाव नकारात्मकता का पर्यायवाची है। तनाव से ग्रसित इंसान जो खुद बीमार है वो दूसरों को भी बीमार करता है। तनाव से ग्रसित इंसान दूसरों को भी तनाव में डालता है। ऐसे नकारात्मक लोग जिनमे करुणा और दया का भाव न हो उनसे दूर रहना चाहिए।

नकारात्मकता के विशेष लक्षण- 1. अपने स्वार्थ के लिए दूसरों पर आरोप लगाना। 2. अपने को सही और दूसरों को गलत समझना। हमेशा नकारात्मक चीजों पर बात करना। 3. सकारात्मक विचार और सकारात्मक लोगों से दूरी बनाना। 4. दूसरे की सफलता से ईर्ष्या करना। ऊपर दिए गए लक्षणों से बचना है तो योग को अपनाना होगा। अयोग्यता बीमारी का कारण है। योग्यता स्वास्थ्य का परिचायक है। योग करने से नकारात्मकता का नाश होता है।

तनाव में ही मानव अपराध करता है। तनाव अंधकार का कारक है। समाज की अवनति का कारण है तनाव। प्रेम, करुणा और दया से तनाव पर विजय पाई जा सकती है। योग करने से ही प्रेम, करुणा और दया का विकास होता है। योग व्यक्ति को असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर, और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाता है। अतएव हम कह सकते हैं कि योग व्यक्ति को अयोग्यता से योग्यता की ओर ले जाता है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!